महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार और उसकी नीतियों के विरुद्ध कई जनआंदोलन छेड़े और उनका नेतृत्व भी किया, उनके प्रभाव भी दूरगामी ही सही सुखद ही रहे, जिसने देश की स्वतंत्रता के मांग की नींव को मजबूत किया। उनके जनांदोलनों ने देश को कई उत्कृष्ट जननेता और राजनेता भी दिए। आइये जानते हैं महात्मा गांधी के कुछ प्रमुख आंदोलनों के बारे में।
चंपारण सत्याग्रह :- यह आंदोलन 10 अप्रैल 1917 को प्रारंभ हुआ था। नेपाल से सटे बिहार के चंपारण जिले में नील किसानों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक आंदोलन किया था, जिसे चंपारण सत्याग्रह कहा जाता है। महात्मा गांधी द्वारा भारत में किया गया यह पहला आंदोलन था। यूरोप में आई औद्योगिक क्रांति के फ़लस्वरूप यूरोप में नील की बहुत मांग बढ़ी, नील का प्रयोग कपड़ों को चमकाने के लिए किया जाता था, अंग्रेजों ने बंगाल और बिहार के किसानों को नील की खेती करने को मजबूर किया, और उस पर किसानों पर भारी टैक्स, बेईमान ब्रिटिश व्यापारी, जिसके कारण किसान नील की खेती से परेशान हो चुके थे। उस समय क्षेत्र में अंग्रेजों ने यह व्यवस्था कर रखी थी, कि हर किसान को एक बीघे खेत के तीन कट्ठे जमीन पर नील की खेती करनी होती थी, यह व्यवस्था तिनकठिया व्यवस्था कहलाती थी। महात्मा गांधी को इस आंदोलन से जोड़ने का काम किया था सुप्रसिद्ध वकील राजकुमार शुक्ल ने, उन्हें यह सलाह लोकमान्य तिलक ने दी थी। महात्मा गांधी 10 अप्रैल 1917 को चंपारण पहुंचे और इस आंदोलन की शुरुआत हुई, अंततः ब्रिटिश सरकार को इस आंदोलन से झुकना पड़ा। इस आंदोलन को नील किसानों के साथ-साथ ही बिहार के बुद्धिजीवी वर्ग का साथ भी मिला। इस आंदोलन ने देश को डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसा नेता भी दिया था।
असहयोग आंदोलन :- असहयोग आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में हुआ, पहला राष्ट्रव्यापी आंदोलन था, इसकी औपचारिक शुरुआत 1 अप्रैल 1920 को हुई थी। यह प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्ति के बाद हुआ था, और इसका त्वरित कारण ब्रिटिश सरकार का रॉलेट एक्ट था, जो क्रांतिकारियों के लिए काला कानून था, और इसके प्रयोग से ब्रिटिश सरकार भारतीयों के राष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलना चाहती थी, जिसके कारण इसका जगह-जगह शांतिपूर्ण ढंग से विरोध हो रहा था, अमृतसर के जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने आग में घी का काम किया, महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन छोड़ दिया, इस आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा था, लेकिन चौरी-चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने यह आंदोलन वापस ले लिया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन :-सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों के बनाए गए कानूनों का विरोध करने के लिए हुई थी, इस आंदोलन की शुरुआत और नेतृत्व किया था महात्मा गांधी ने, यह आंदोलन 12 मार्च, 1930 को दांडी मार्च के साथ शुरू हुआ था। सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत का मुख्य कारण था ‘नमक कानून’, भारत की समाजिक और आर्थिक स्थिति उस समय बेहद दयनीय थी, गरीब लोगों के लिए केवल रोटी या चावल के साथ खाने के लिए नमक ही था, अंग्रेज नमक के निर्माण पर एकाधिकार रखते थे, उन्होंने नमक पर भारी कर भी लगा दिया था, महात्मा गांधी ने इस आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च को दांडी से की, दांडी अहमदाबाद से करीब 385 किलोमीटर दूर समुद्र के किनारे एक स्थान था, साबरमती आश्रम के अपने 78 साथियों के साथ यहाँ तक की यात्रा की और हाथों से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा, और इसके साथ ही देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन में विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और उनकी होली भी जलाई।
भारत छोड़ो आंदोलन :- भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान से हुई थी, इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया था। यह आंदोलन भारत में क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद हुआ था। दरसल द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत के नेताओं से पूछे बिना भारत को ब्रिटिश सरकार द्वारा युद्ध में झोंक दिया गया था, इसके अलावा देश में ब्रिटिश विरोध की तीव्र लहर भी थी, परिणामस्वरूप यह आंदोलन हुआ था, इस आंदोलन के लिए तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड लिनिथिन्गों ने कहा था, यह आंदोलन 1857 की क्रांति के बाद सबसे तेज और प्रभावी आंदोलन था। इसका प्रभाव विश्वजगत पर भी पड़ा था, जब अमेरिका समेत कई देशों ने भारतीयों को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता देने का समर्थन किया था। चूंकि यह आंदोलन की शुरुआत अगस्त में हुई थी, इसीलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं। गांधी जी के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन में भारतीयों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिनमें महिलाएं भी काफी संख्या में थीं।
भारतीय उपमहाद्वीप को जितना गांधी गांधी ने प्रभावित किया उतना शायद ही और किसी ने किया हो। लार्ड मॉउंटबैटन ने तो यहाँ तक कहा था, अगर इतिहास ने कभी आपका निष्पक्ष आंकलन किया तो, आप बुद्ध और ईसा के बराबर नजर आएंगे।