All About Udant Martand News Paper In Hindi: आज भारत में हिंदी भाषा के हजारों की संख्या में न्यूज पेपर निकलते हैं और न्यूजपेपर ही क्यों? बल्कि कई पत्रिकाएँ टीवी न्यूजचैनल, यूट्यूब चैनल और वेबसाइट्स भी आज हिंदी में अपनी खबरें और प्रस्तुति दे रहे हैं, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब संसाधन विहीन होते हुए हिंदी से एक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकला गया था। समाचार निकालने वाले व्यक्ति थे पंडित जुगल किशोर शुक्ला, जिन्होंने यह साप्ताहिक समाचार पत्र कलकत्ता से प्रकाशित किया था। हालांकि कई आर्थिक चुनौतियों के बाद जल्द ही इसका प्रकाशन बंद हो गया था।
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उदंत मार्तंड का इतिहास
उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था, जिसका प्रकाशन 30 मई 1826 को कलकत्ता (अब कोलकाता) से हुआ। यह एक साप्ताहिक पत्र था, और इसी दिन को आज हम हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाते हैं। इसकी स्थापना और संपादन का कार्य पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने किया, जो एक प्रबुद्ध वकील, भाषाविद् और समाज सुधारक थे।
उदन्त मार्तण्ड नाम का अर्थ
“उदन्त मार्तण्ड” का शाब्दिक अर्थ है “समाचार सूर्य” या “उगता सूरज”। यह नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रकाश, ज्ञान, और सच की चेतना का प्रतीक बना।
प्रकाशन और स्थान
उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन कलकत्ता के कोलू टोला, 37 नंबर अमरतल्ला लेन (वर्तमान कैनिंग स्ट्रीट के पास, बड़ा बाजार) से हुआ। यह अखबार हर मंगलवार को प्रकाशित होता था। इसके प्रथम अंक की 500 प्रतियाँ छपीं, जो खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मेल में लिखी गई थीं।
उदंत मार्तंड की स्थापना का उद्देश्य
पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने यह पत्र हिंदी भाषियों के हित में इस उद्देश्य से शुरू किया कि वे अपनी मातृभाषा में समाचार और विचार पढ़ सकें, न कि अंग्रेजी, फारसी या बांग्ला पर निर्भर रहें। उनका प्रमुख उद्देश्य हिंदी समाज में जागरूकता लाना, अज्ञानता और रूढ़ियों को तोड़ना, भारतवासियों को उनके अधिकारों से परिचित कराना था। उन्होंने अपने लेख में लिखा-
“यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले-पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया… इससे सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देख आप पढ़ ओ समझ लेयँ ओ पराई अपेक्षा न करें।”
उदंत मार्तंड के सामने मुख्य चुनौतियाँ
चूंकि उस समय देश के राजकाज की भाषा फारसी थी, अंग्रेजी धीरे-धीरे उसका स्थान ले रही थी। उस समय हिंदी पाठकों की संख्या बहुत कम थी, और ऊपर से हिंदी भाषी इलाकों से कलकत्ता की दूरी एक बड़ी बाधा थी। और यह पत्रिका अर्थात अखबार कलकत्ता से प्रकाशित होता था।
ऊपर से उस समय परिवहन के साधन बहुत थे नहीं, डाक शुल्क बहुत अधिक था। शुक्ल जी ने सरकार से डाक दरों में रियायत की माँग की, लेकिन जाहिर है अंग्रेज सरकार ने अस्वीकार कर दी। सरकारी सहायता नहीं मिली, और उस समय विज्ञापन जैसी आर्थिक सहायता भी उपलब्ध नहीं थी।
क्यों बंद हुआ उदंत मार्तंड
इसीलिए लगातार आ रहे आर्थिक कठिनाइयों के कारण, केवल 79 अंकों के बाद, 4 दिसंबर 1827 को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद हो गया। अंतिम अंक में लिखा गया-
“आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त,
अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त।”
अर्थात उदंत मार्तंड रूपी सूर्य आज के दिवस तक उग चुका है, अब दिन बीत चुका है, इसीलिए दिनकर अस्ताचल हो रहा है। यह पंक्ति न केवल उसकी विदाई है, बल्कि उस युग की पत्रकारिता की पीड़ा और संघर्ष की गवाही भी है।
उदंत मार्तंड का प्रभाव
उदन्त मार्तण्ड लंबे समय तक न चल सका, पर इसने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने बाद में 1850 में “समदन्त मार्तण्ड” नाम से एक और पत्रिका शुरू की, पर वह भी अल्पजीवी रही। आज भी उदन्त मार्तण्ड को हिंदी पत्रकारिता का प्रकाशस्तंभ माना जाता है।
उदन्त मार्तण्ड ने हिंदी भाषी समाज को अपनी भाषा में समाचार और विचारों की दुनिया से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया। यह परतंत्र भारत में हिंदी की पहली आवाज बना और उसने भविष्य की हिंदी पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) ने अपने पुस्तकालय को जुगल किशोर शुक्ल के नाम पर समर्पित किया है।
कौन थे पंडित जुगल किशोर शुक्ल
मूल रूप से कानपुर निवासी थे। संस्कृत, फारसी, बांग्ला और अंग्रेज़ी के ज्ञाता थे। पेशे से वकील थे और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा के सिलसिले में कलकत्ता आए थे। उन्होंने न केवल पत्रकारिता, बल्कि सामाजिक चेतना और स्वतंत्रता के बीज बोने का साहसिक कार्य किया।