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दुनिया कौन होती है हमें…

न्याज़िया

मंथन। दुनिया कुछ भी कहे, हम अच्छे हैं ,बुरे हैं या अजीब हैं तो हमें क्यों फर्क पड़ता है? आख़िर दुनियां वाले हमारी तारीफ या बुराई भी करें तो हमें क्या दे देते हैं? कि हम उनकी इतनी परवाह करते हैं। हम अक्सर ये क्यों भूल जाते हैं ,हम जो हैं, जैसे हैं अपने लिए हैं ,हमारे कर्मों का फल हमें ही भुगतना पड़ेगा कोई और उसमें कोई भागीदारी नहीं निभा सकता।

अपनी नज़र तो अपना नज़रिया

जब ज़िंदगी हमारी,दिल दिमाग़ हमारा ,सोच हमारी ,तो चीज़ों को देखने का नज़रिया भी हमारा होना चाहिए न! और हमसे जुड़े फैसलों में दुनिया की परवाह करके क्यों हम किसी की सोच को खुद पे हावी होने देते हैं ,जब वो फैसला सिर्फ हम अपना भला बुरा सोचकर कर रहे हैं, जबकि ये भी ,ज़रूरी नहीं कि जो चीज़ हमारे लिए अच्छी है वो सबके लिए अच्छी हो,या जिस चीज़ की वैल्यू हमारे लिए हो ,उसकी दुनिया भी क़द्र करे।

दुनिया के रंगमंच में सबका अपना , किरदार है

हर इंसान की अपनी मुख्तलिफ ज़िंदगी है और उसके घर परिवार में उसका अपना रोल है , किरदार है, जो वो निभाता है ,इसलिए वैसे भी एक दूसरे को समझना आसान नहीं होता साथ रहकर भी लोग एक दूसरे को समझ नहीं पाते, क्योंकि सबकी अपनी खुशियां अपने ग़म और अपनी उलझनें हैं ,तो क्यों न पहले खुद को समझा जाए ,हमारे लिए क्या अच्छा क्या बुरा है ये भी जानने की कोशिश की जाए ,खुद को खुश रखने के साथ – साथ खुद को पसंद भी किया जाए और अपने किरदार में रंग भरा जाए।

क्या काफ़ी है

दुनिया के बारे में बस इतना सोचें कि हमारी वजह से किसी को नुकसान न पहुंचे हम अपनी नज़र में सही हों , और हमसे जुड़े लोग भी हमसे खुश हों क्योंकि अगर हम अपनी नज़र में सही होंगे तभी हम सर उठाकर इस दुनियां का सामना कर सकेंगे ,या किसी के काम आ पाएंगे ,अपने फ़र्ज़ निभा पाएंगे। समाज का हिस्सा होने के नाते समाज के नियमों को मानना जहां तक ज़रूरी है वहीं तक मानें ,नहीं तो हम जीना ही भूल जाएंगे, अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से चलाने के लिए जब हमें किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं तो फिर किसी की राय हमारे लिए क्यों मायने रखे और जब हम ग़लत नहीं तो ,किसी से डरे क्यों? दुनिया क्या कहेगी इसकी फ़िक्र क्यों करें ? अपने आप से, हम खुद खुश हों ,खुद को भी प्यार करते हों ,अपने लिए अहम बातों की अहमियत समझते हों ,बस यही ज़रूरी है अपने लिए। ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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