Chhath Puja Sandhya Arghya: लोक आस्था का महापर्व छठ चार दिनों तक चलता है और यह छठ मैया और सूर्य देव को समर्पित है। छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन संध्या अर्घ्य (शाम का अर्घ्य) और चौथा दिन उषा अर्घ्य (सुबह का अर्घ्य) होता है। छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा है। यह बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के शहरों में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। आमतौर पर उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इससे कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि छठ के दौरान डूबते सूरज को अर्घ्य क्यों दिया जाता है? आइए हम आपको इसका कारण बताते हैं।
छठ पूजा के संध्या अर्घ्य (शाम का अर्घ्य) का समय क्या है?
इस साल (2025) छठ पूजा का संध्या अर्घ्य सोमवार, 27 अक्टूबर को शाम 5:40 बजे दिया जाएगा। यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है, और अगले दिन, मंगलवार, 28 अक्टूबर को उगते सूरज को उषा अर्घ्य दिया जाएगा।
1: संध्या अर्घ्य (डूबते सूरज को): 27 अक्टूबर, सोमवार, शाम 5:40 बजे।
2: उषा अर्घ्य (उगते सूरज को) और पारण: 28 अक्टूबर, मंगलवार।
डूबते सूरज को अर्घ्य क्यों दिया जाता है? Chhath Puja Sandhya Arghya
छठ पूजा के दौरान डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह है कि यह जीवन के उतार-चढ़ाव और संतुलन का प्रतीक है। यह एक नई शुरुआत और कड़ी मेहनत और तपस्या के फल की प्राप्ति का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, इसलिए इस समय पूजा करने से जीवन की परेशानियां दूर होती हैं, इच्छाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।
क्या है डूबते सूरज को अर्घ्य देने के महत्व? Chhath Puja Sandhya Arghya
- जीवन चक्र का प्रतीक: डूबता सूरज यह दिखाता है कि हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है।
- कड़ी मेहनत और नतीजों की प्राप्ति: यह इस बात का प्रतीक है कि अब किसी व्यक्ति को अपनी कड़ी मेहनत और तपस्या का फल मिलने का समय आ गया है।
- समस्याओं का समाधान: डूबते सूरज को जल चढ़ाने से जीवन की परेशानियों और कानूनी विवादों से राहत मिलती है।
- पॉजिटिव एनर्जी: डूबते सूरज को जल चढ़ाने से जीवन में पॉजिटिव एनर्जी, ताकत और संतुलन बना रहता है।
क्या है छठ पूजा की पौराणिक कथा? Chhath Puja Sandhya Arghya
पौराणिक कथाओं के अनुसार, डूबते सूरज की पूजा करने से अकाल मृत्यु से बचाव होता है और जीवन सुरक्षित रहता है।
पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, सूर्यास्त के समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं। प्रत्युषा को शाम की देवी माना जाता है। वहीं, सूर्य देव की पहली पत्नी उषा को सुबह की किरणों की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि शाम को डूबते सूरज को जल चढ़ाने से मानसिक तनाव कम होता है और जीवन में शांति आती है।
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