All About Jyeshtha Purnima In Hindi: ज्येष्ठ पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है, जो ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह आमतौर पर जून के महीने में पड़ता है। 2025 में यह 11 जून को है। इसका धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व अनेक कारणों से है। आइए, इसके महत्व और इससे जुड़े कुछ पहलुओं को समझते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए वट पूर्णिमा का व्रत रखती हैं और बरगद वृक्ष की पूजा भी करती हैं। यह व्रत सावित्री-सत्यवान की कथा से जुड़ा माना जाता है, जिसमें सावित्री ने अपनी भक्ति और बुद्धि से यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन वापस प्राप्त किया था। यह कथा एक स्त्री के दृढ़ संकल्प और पति-पत्नी के अटूट प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। इसीलिए महिलाएँ वट वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटती हैं, जल अर्पित करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
पूर्णिमा का दिन चंद्रमा की पूर्ण शक्ति का प्रतीक होता है, जो मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है, क्योंकि यह पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, क्योंकि यह पूर्णिमा भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती है।
माना जाता है ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण शक्ति में होता है, जिसका ज्योतिष में विशेष प्रभाव माना जाता है। इस दिन किए गए दान, जप और तप से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह समय नई शुरुआत, संकल्प और आध्यात्मिक साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है।
कैसे मनाई जाती है ज्येष्ठ पूर्णिमा
इस दिन सुहागिन महिलाएँ वट सावित्री पूर्णिमा व्रत रखती हैं। सुबह स्नान के बाद वट वृक्ष की पूजा की करती हैं, जिसमें धूप, दीप, फूल, जल और धागा चढ़ाया जाता है। पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। लोग गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन दान करते हैं। इस दिन सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है। कुछ लोग भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं।