1975 Emergency In Rewa: आपातकाल देश के इतिहास का वो काला अध्याय, जिसने एक लोकतांत्रिक देश के इतिहास पर एक स्याह दाग छोड़ दिया। इस वर्ष आपातकाल को लगे 50 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। आपातकाल के विरोध की गूंज उस दौर में पूरे देश के साथ ही ‘रीवा’ में भी सुनाई दी थी, जब यहाँ इंदिरा सरकार के विरुद्ध आवाज उठी थी, जिसकी वजह से कई लोगों को मीसा कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया था। रीवा में आपातकाल के दौर में स्थिति और हालात कैसे थे, यहाँ उसका कैसा प्रभाव था? आइए जानते हैं।
इंदिरा गांधी ने क्यों लगाया आपातकाल
25 जून 1975 को आधी रात के समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में विदेशी दखल के माध्यम से होने वाली आंतरिक अशांति का हवाला देकर देश में आपातकाल लगाया था, लेकिन राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं। इसका प्रमुख कारण, इंदिरा गांधी द्वारा अपनी सत्ता को बचाना था।
आपातकाल का रीवा में प्रतिरोध
आपातकाल की घोषणा के बाद रीवा में भी स्थानीय प्रशासन के निगरानी में यहाँ के जनसंघ, समाजवादी पार्टी और जेपी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को मीसाबंदी के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। कुछ प्रमुख नेताओं को रासुका के तहत भी गिरफ़्तार की गई थी। कई लोगों को तो रात में घर से गिरफ्तार किया गया। रीवा में स्थित उच्चशिक्षा के संस्थानों में भी छात्र नेताओं की गतिविधियों को लेकर उन पर भारी निगरानी रखी गई और कईयों को गिरफ्तार भी किया गया। उनके परिजनों को छह महीने बाद खबर लगी कि वे जेल में हैं। रीवा के वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा ऐसे ही छात्र थे, जिन्हें उस दौर में गिरफ्तार किया गया, जिस वक्त उनकी उम्र केवल 18 वर्ष थी।
रीवा जेल में 18 सितंबर की घटना
गिरफ्तार लोगों को रीवा की सेंट्रल जेल में रखा गया था। वह दौर था, जब प्रेस और मीडिया में सेंसरशिप थी। इसीलिए स्पष्ट खबरें जनता तक नहीं पहुँच पाती थी। ऐसी ही एक दिन खबर उड़ी, रीवा के सेंट्रल जेल में समस्त मीसाबंदियों को गोली मार दी गई। बाद में धीरे-धीरे यह खबर साफ हुई कि ऐसा नहीं हुआ था। दरसल हुआ यह था कि जेल की अव्यवस्था से नाराज समाजवादी नेता कौशल प्रसाद मिश्रा अनशन कर रहे थे, जेल में आए तात्कालीन कलेक्टर धर्मेन्द्रनाथ ने उनके साथ बड़ी बदसलूकी का व्यवहार किया, जिससे नाराज होकर युवा मीसाबंदियों ने कलेक्टर साहब की जम कर पिटाई कर दी। खिसियाए कलेक्टर साहब ने तब फायरिंग का आदेश दिया, लेकिन तब के रीवा एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए ऐसा कुछ भी करने से इंकार कर दिया। इसके बाद मीसाबंदियों को कड़ी यातनाएं दी गईं, रात को कंबल परेड निकलवाई गई और उनको दुर्दांत अपराधियों की तरह बेड़ियों में जकड़कर रखा गया, कईयों को रीवा जेल से बाहर भी शिफ्ट कर दिया गया।
यमुना प्रसाद शास्त्री का मार्गदर्शन
स्व यमुना प्रसाद शास्त्री जी ने भी इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध किया था, लेकिन आँखों में हुई परेशानी के कारण उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था। लेकिन शास्त्री जी इसके बाद भी आपातकाल के विरुद्ध सक्रिय रहे। उनका गृहग्राम सूरा उस दौर में आपातकाल के विरुद्ध कार्य कर रहे लोगों की शरणस्थली थी। शायद ही बहुत कम लोगों को यह बात पता हो, इंदिरा सरकार द्वारा बडोदा डायनामाइट केस के मुजरिम बनाए गए जार्ज फर्नांडिस ने भी यमुनाप्रसाद शास्त्री के गांव वाले घर में महीनों तक इस दौर में शरण ले रखी थी।
रीवा में आपातकाल के कार्यकर्ता
इस आपातकाल के समय रीवा से चंद्रमणि त्रिपाठी, रामलखन सिंह, प्रेमलाल मिश्र, मणिराज सिंह, सीता प्रसाद शर्मा, कौशल सिंह, रामलखन शर्मा, बृहस्पति सिंह, जनार्दन मिश्रा और सुभाष श्रीवास्तव समेत हजारों राजनैतिक कार्यकर्ताओं को मिसाबंदी के तहत गिरफ्तार कर जेल में रखा गया था। आज भी रीवा के पुराने राजनीतिक कार्यकर्ता और पत्रकार उस दौर को याद करते हैं, जब “लोकतंत्र” अचानक तानाशाही में बदल गया था। मीसाबंदी का तमगा आज उनके सीने पर गर्व की तरह टंगा हुआ है।
संजय गांधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम का विरोध
कहा जाता है प्रधानमंत्री भले ही इंदिरा गांधी रही हों, लेकिन समानांतर सरकार चलती थी संजय गांधी और उनके चौकड़ी की। उसी दौर में संजय गांधी ने अपने महत्वाकांक्षी 5 सूत्रीय कार्यक्रम में जनसंख्या नियंत्रण के लिए जबरन नसबंदी का कार्यक्रम भी प्रारंभ किया था। सभी शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को नसबंदी का लक्ष्य दिया गया था। अपने लक्ष्य को पूरा करने कई जगह से खबरें आती थीं, कि कुँवारों लड़कों की भी जबरन नसबंदी करवा दी जाती थी। इस तरह की खबरों से रीवा भी अछूता नहीं था, जब अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई बार लोगों को धोखे से या धमकाकर नसबंदी शिविरों में लाया गया था। यह सब तब तक चलता रहा, जब तक इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में करीब 21 महीने बाद आपातकाल को हटा लिया और देश में आम चुनावों की घोषणा कर दी।
आपातकाल के बाद जनता पार्टी की कामयाबी
जिसके बाद देश ने इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया। जनता पार्टी की सरकार बनी, और लोकतंत्र फिर से बहाल हुआ। रीवा ने भी इस बदलाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यहाँ जनता पार्टी और विपक्षी दलों को व्यापक जनसमर्थन मिला। रीवा भले ही देश के नक्शे पर एक छोटा शहर हो, लेकिन 1975-77 के उस कठिन काल में इसने लोकतंत्र के मजबूती के लिए अपनी एक सशक्त आवाज उठाई, जिसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दी।