Pankaj Udhas Biography In Hindi: हम ज़्यादा गीत सुनते हों या न सुनते हों पर कुछ गीत कभी न कभी हमारे कानों तक ज़रूर पहुंचते हैं और उनकी शीरी सी मिठास हमारे दिल में उतर जाती है और शायद यही वजह है कि वो कभी न कभी हमारी ज़ुबां पर आ ही जाते हैं जैसे
चिट्ठी आई है …,फिल्म नाम का गीत, आज फिर तुमपे प्यार आया है …,फिल्म दयावान, तुमने रख तो ली तस्वीर हमारी…,फिल्म लाल दुपट्टा मलमल का, मोहब्बत इनायत करम देखते हैं …,फिल्म बहार आने तक से या आदमी खिलौना है फिल्म का गाना-मत कर इतना गुरुर…, गीत-खुदा करे की मोहब्बत में वो मकाम आए, फिल्म सनम, दिल जबसे टूट गया…, फिल्म सलामी.
पंकज उधास जिनके गाने दिल को छू लेते हैं
आपको नहीं लगता इन गीतों का सदियों से हमारे दिलों पे ऐसे कब्ज़ा है कि इनकी जगह कोई और गाना नहीं ले पाता, तो ज़रा सोचिए इन गीतों को किसने इतनी शिद्दत से गाया है की वो हमारे दिल के इतने क़रीब हो गए, या फिर उस आवाज़ की इतनी मुख्तलिफ तासीर है कि वो दिल में उतर जाने का माद्दा रखती है। ज़रा गौर से सोचेंगे तो याद आ जायेगा कि इस आवाज़ ने तो हमें ग़ज़लो के ज़रिए भी अपना दीवाना बनाया है। जिसमें- वो हर गोरी को धनवान बताते हुए ग़ज़ल, चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल ….,गाते हैं, तो कभी घूंघट को मत खोल के गोरी घूंघट है अनमोल ….,कहते हैं। और बेशक वही मुस्कुराते हुए धीरे से कहते थे और आहिस्ता कीजिए बातें कान रखते हैं ये दर ओ दीवार……, उनकी मखमली आवाज़ कानों में यूं रस घोलती है कि आज भी जब उनके रिकॉर्ड्स हम सुनते हैं, तो उनका मुस्कुराता चेहरा आंखों के सामने आ जाता हैं उनके मुख्तलिफ शाहाना अंदाज़ के साथ।
ग़जल गायिकी के उस्ताद पंकज उधास
खूब पहचाना आपने ये हैं गायकी के उस्ताद पंकज उधास, फिल्म साजन में तो आप उन्हें गाते हुए भी देख सकते हैं, जी हां गाना है, जिए तो जिए कैसे हाय बिन आपके …, जिनकी गायकी इतनी पुर असर थी कि उनका कोई सानी नहीं है, यूं तो ग़ज़ल का अपना एक मकाम है लेकिन उसे इस क़दर मक़बूलियत दिलाना कि हर कोई उसका दीवाना हो जाए। आसान नहीं था लेकिन पंकज उधास की मखमली आवाज़ और मासूमियत से भरे गायकी के दिलकश अंदाज़ ने ये कर दिखाया जिसके लिए उन्हें सन 2005 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया । सके अलावा 2003 में – ग़ज़ल को पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने के लिए न्यूयॉर्क के बॉलीवुड म्यूज़िक एवार्ड में स्पेशल अचीवमेंट एवार्ड से सम्मानित किया गया। 2003 में ही गज़ल और संगीत उद्योग में योगदान के लिए दादाभाई नौरोजी इंटरनेशनल सोसायटी द्वारा दादाभाई नौरोजी मिलेनियम एवार्ड से सम्मानित किया गया।
ऐसे और कई अवार्डों से आपको नवाज़ा गया जब भी आपके गीतों और ग़ज़लाे ने धूम मचाई या हमारे दिलों को जीता। पर ये सफ़र आसान नही रहा, क्योंकि ज़िंदगी बिना इम्तेहान लिए आपको नहीं तराशती वो हर पल हमें आज़माती है कि क्या हम किसी नेमत को पाने के लायक़ हैं, या नहीं!
जन्म और परिवार
17 मई 1951 को गुजरात राज्य में राजकोट के पास चारखड़ी-जैतपुर में एक ज़मींदार चारण परिवार में जन्मे पंकज बचपन से ही संगीत को बड़ी बारीकी से समझते थे और बड़े दिलकश अंदाज़ में गाते थे। आपके पिता केशूभाई उधास और माँ जीतूबेन उधास थीं, उनके दादाजी गाँव से पहले स्नातक करने वाले इन्सान थे और भावनगर राज्य के दीवान (राजस्व मंत्री) थे। उनके पिता केशुभाई उधास एक सरकारी कर्मचारी थे और प्रसिद्ध वीणा वादक अब्दुल करीम खान के क़रीब थे। जिन्होंने उन्हें दिलरुबा वादन सिखाया था।
बचपन से ही था संगीत से लगाव
अपने बचपन में उधास अपने पिता को दिलरुबा वाद्य बजाते हुए बड़े गौर से देखते थे। संगीत में उनकी और उनके भाइयों की रुचि को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें राजकोट में संगीत अकादमी में दाखिला दिलाया। पंकज उधास ने शुरू में तबला सीखने के लिए खुद को आगे किया लेकिन बाद में गुलाम कादिर खान साहब से हिंदुस्तानी मुखर शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। इसके बाद पंकज उधास ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर के संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चले गए।
आपके बड़े भाई मनहर पहले से भजन गायक थे और पार्श्वगायन भी कर रहे थे, जिसकी वजह से पंकज भी फिल्म संगीत से अछूते नहीं थे।
संगीत कैरियर का प्रारंभ
ओपन स्टेज पर उन्होंने अपना पहला गाना 11 साल की उम्र में ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ राजकोट में गया था ये वो दौर था जब भारत-चीन युद्ध के शहीदों के लिए श्रद्धांजलि स्वरूप लता मंगेशकर ये गाना गा चुकी थी और लोग इस गाने को सुनकर ही भावुक हो जाते थे। ऐसे में रेडियो में सुन सुन कर याद करके ये गाना जब बिना गलती के आपने गाया तो उस वक्त एक दर्शक ने उनको पुरस्कार स्वरूप 51 रुपये का इनाम दिया गया और लोग ये जानने के लिए उत्सुक हो गए की ये बच्चा आख़िर कौन है। क़रीब चार साल बाद वो राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी में भर्ती हो गए और तबला बजाने की बारीकियों को सीखा. उसके बाद, उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से विज्ञान स्नातक डिग्री की पढ़ाई की और एक ‘बार’ में काम शुरू कर दिया, जहां समय निकालकर गायन का अभ्यास भी करते रहे।
प्रारंभिक असफलताएँ
पंकज उधास ने पहली बार 1972 की फिल्म कामना में अपनी आवाज दी जो कि एक असफल फिल्म रही थी। इसके बाद उधास ने ग़ज़ल गायन की तरफ़ रुख़ किया और ग़ज़ल गायक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उर्दू भी सीखी। सफलता न मिलने के बाद वो कनाडा चले गए और वहां तथा अमेरिका में छोटे-मोटे कार्यक्रमों में ग़ज़ल गायिकी करके अपना समय बिताने के बाद फिर भारत आ गए।
एल्बम से मिली तारीफ़ें
उनका पहला ग़ज़ल एल्बम आहट 1980 में रिलीज़ हुआ था और यहाँ से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गयी। 2009 तक उन्होंने गुजराती, बंगाली और पंजाबी में भी एक से बढ़कर एक दिलनशीं 40 एल्बम रिलीज़ किए जिसे बेहद पसंद किया गया। 1986 में उधास को नाम फिल्म में गाने का अवसर प्राप्त हुआ जिससे उनको काफी प्रसिद्धि भी मिली। वे पार्श्व गायक के रूप में काम जारी रखा वे साजन, ये दिल्लगी और फिर तेरी कहानी याद आई जैसी कुछ फिल्मों में दिखाई भी दिए।
पंकज उधास ग़जल को लोकप्रिय बनाया
पंकज उधास को भारतीय संगीत में तलत अज़ीज़ और जगजीत सिंह जैसे कई बड़े फनकारों के साथ ग़ज़ल गायकी को लोकप्रिय संगीत के दायरे में लाने का श्रेय दिया जाता है। आप फिल्म ‘नाम’ से बेहद मशहूर हुए जिसमें उन्होंने गीत “चिठ्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है” गाया जो काफी लोकप्रिय हुआ, उसके बाद से उन्होंने कई फिल्मों के लिए एक पार्श्व गायक के रूप में अपनी आवाज़ दी। इसके अलावा वो कई एल्बम भी रिकॉर्ड करते रहे, मगर कई गज़लें अपने बोलों में मय या जाम का शुमार करने की वजह से ज़्यादा पसंद नहीं की गई। पर पंकज जी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी ग़ज़लो को तराशते हुए एक कुशल गज़ल गायक के रूप में पूरी दुनिया में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे देखते ही देखते वो बतौर गुलूकार हर दिल अज़ीज़ हो गए।
टेलीविजन शो
बाद में पंकज उधास ने टेलीविजन पर ‘आदाब अर्ज़ है’ नाम से एक टेलेंट हंट कार्यक्रम की शुरुआत की जिसे लोगों ने खूब पसंद किया इसके अलावा उनके ग़ज़लों और गीतों से सजे एल्बम आते रहे और हमारे दिल में समाते रहे, पर एक दिन गायकी का मुख्तलिफ अंदाज़ और मुस्कुराते चेहरे में सादगी को समेटे वो खामोश हो गए। 26 फ़रवरी 2024 को, 72 वर्ष की उम्र में वो हमें अलविदा कह गए।
पुरस्कार और सम्मान
आपको 1985 में वर्ष का सर्वश्रेष्ठ गज़ल गायक होने के लिए के. एल. सहगल एवार्ड से सम्मानित किया गया था। और 1996 में संगीत क्षेत्र में बेहतरीन सेवा उपलब्धि और योगदान के लिए इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी एवार्ड से सम्मानित किया गया। 1994 रेडियो के ऑफिशियल हिट परेड के कई मुख्य गानों की बेहतरीन सफलता के लिए रेडियो लोटस एवार्ड से सम्मानित किया गया। डर्बन यूनिवर्सिट में रेडियो लोटस साउथ अफ्रीका द्वारा प्रदान किया गया। 1993 – संगीत के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ मानकों को प्राप्त करने के लिए असाधारण प्रयासों को करने और इस प्रकार पूरे समुदाय को उत्कृष्टता प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित करने के लिए जायंट्स इंटरनेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया।
तो चलिए आज ज़रा उनकी ग़ज़लों या नग़्मों को सुनकर देखते हैं इन रानाइयों में खो कर देखते हैं क्योंकि ये दिलनशीन खज़ाना वो हमारे नाम कर गए हैं हमारे दिलों में जावेदाँ रहने के लिए ।