Musician Chitragupta’दिल का दिया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में…’

CHITRGUPT (1)

Birth Anniversary Of Musician Chitragupta:’ दिल का दिया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में…’ ‘दगा दगा वई वई. ..’,’ इक रात में दो दो चांद..’, ‘लागी छुटे न…’,’ कोई बता दे दिल है जहाँ …’,’ छेड़ो न मेरी ज़ुल्फ़ें ..’, ‘चांद जाने कहां खो गया…’, ‘अंखियन संग अखियाँ लागी आज..’, ‘ चल उड़ जा री पंछी.. ‘,’ये पर्वतों के दायरे …’, ‘क्या आपको भी ये गाने आज भी अपनी ओर खींच लेते हैं और क्या इन सब गीतों की फिल्मों के नाम आपको याद हैं ? हो सकता है आपमें से कुछ लोगों को याद हों कुछ को न याद हों क्योंकि अक्सर ये होता है कि हमें गानें तो पसंद होते हैं पर ज़्यादातर फिल्मों के नाम हमें याद नहीं रहते शायद इसकी वजह ये भी होती है कि कुछ फिल्में उतना नहीं चलती पर गानें यादगार हो जाते हैं ,और यही खूबी थी इन गानों का संगीत तैयार करने वाले चित्रगुप्त की जिनके संगीत निर्देशन में आई फिल्में म्यूज़िकल हिट साबित होती हीं थीं इसीलिए हो सकता है कि आप के पसंदीदा गानों की फेहरिस्त में उनके गीत भी शामिल हों पर आपने कभी गौर नहीं किया हो कि इनकी धुन किसने बनाई है तो हम आपको बता दें कि इस तरह का दिलकश संगीत रचते थे चित्रगुप्त श्रीवास्तव जो न केवल फिल्मों को नई ऊंचाई देता था बल्कि बी या सी ग्रेड फिल्मों के गीतों को भी ए ग्रेड फिल्मों के जैसा यादगार बना देता था और शायद स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की संगीत यात्रा भी चित्रगुप्त के संगीत के बिना अधूरी है क्योंकि उनके संगीत निर्देशन में लता जी ने लगभग 240 गाने गाए हैं।

अर्थशास्त्री संगीतकार :-

साठ के दशक में अपनी धुनों को सदाबहार नग़्मो में संजोते चित्रगुप्त बिहार से ताल्लुक़ रखते थे और इस लिए भी उन्हें ज़्यादा इज़्ज़त मिलती थी क्योंकि वो बहुत पढ़े लिखे थे , उन्होंने अर्थशास्त्र से एम ए करने के बाद पण्डित शिवप्रसाद त्रिपाठी से संगीत की शिक्षा ली थी और भातखण्डे संगीत विद्यालय, लखनऊ से भी जुड़े थे , उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, पश्चिमी संगीत और उसकी बारीकियों को सीखा था, साथ ही वे एक बेहतरीन हारमोनियम वादक भी थे। उन्होंने ज़्यादातर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों को संगीतबद्ध किया और भोजपुरी सिनेमा की शुरुआती गीतों में उन्होंने अपने संगीत के ज़रिए एक सुंदर पृष्ठभूमि तैयार की थी जिसमें ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ का संगीत आज भी याद किया जाता है इसके अलावा मगही, गुजराती और पंजाबी फिल्मों में 1,500 से ज़्यादा गानों को संगीतबद्ध किया ।

संगीतकार नहीं पार्श्वगायक बनने आये थे मुंबई :-

आप को ये जानकार हैरानी होगी कि जिनका संगीत आज भी सदाबहार है , उन्होंने पहले संगीत निर्देशक बनने के बारे में सोचा ही नहीं था वो तो माया नगरी यानी मुंबई आए थे ‘पार्श्वगायक’ बनने जहां उनकी मुलाकात कुछ संगीत निर्देशकों से हुई पर बतौर गायक मौका मिलना आसान नहीं था लेकिन किसी तरह कोरस में गाने का मौका मिल गया ,वो बड़े मायूस हो गए तभी एक भोला भाला मासूम नौजवान उनके पास आया और उनसे उनका परिचय पूछा ,इसके बाद चित्रगुप्त जी ने भी उनका नाम पता पूछा तो पता चला कि वो कोटला सुल्तान सिंह, मजीठा, ज़िला अमृतसर, पंजाब से आए मोहम्मद रफी हैं ये एक गायक और संगीतकार बनने वाली दो महान हस्तियों का फिल्मी दुनिया में पहला क़दम और एक दूसरे से पहली मुलाक़ात थी ।

अदब और लेहाज़ के दायरे में बंधे चित्रगुप्त :-

एक बात और हम उनके बारे में बता दें कि वो कभी बुरे शब्द या अपशब्द नहीं बोलते थे लेकिन एक बार वो ‘अंजान’ का लिखा भोजपुरी गीत पढ़ रहे थे तो उनके मूँ से कोई बुरा शब्द निकल गया जिसे बदलवाने के लिए उन्होंने ‘अंजान ‘जी को इशारे से कहा कि दूसरी लाइन में बाएं से तीसरा शब्द बदल दीजिए। ऐसे थे चित्रगुप्त जो अपने संगीत में भी बड़ी संजीदगी से बहोत नये -नये प्रयोग करते हुए कुछ बेहद बेशक़ीमती और मुख़्तलिफ़ संगीत खोज लेते थे। जैसे अगर गद्य की भी वो धुन बनाते तो पहले कविता की तरह उसकी पंक्तियों में फेर बदल करके उसमें रस भरते और माधुर्य की मिसाल बना देते उदाहरण के लिए ‘अंगारे’ फिल्म का गीत, ‘ज़रा हँस लूँ क्या ,डर लगता है …’,आप सुन सकते हैं जिसे गीत की शक्ल में लाने के लिए तर्ज़ और साज़ों की खनक को निहायत खूबसूरती से संजोया गया है यहां तक कि उनकी बनाई ‘आधी रात के बाद’ फिल्म का गीत ,’मेरा दिल बहारों का वो फूल है जिसे गुलिस्ताँ की नज़र लग गई’, की धुन बड़ी प्यारी लगती है लेकिन आप उसके बोलों को ग़ौर से सुनेंगे तो वो एक कहानी जैसा गीत है , इसी तरह उन्होंने ग़ज़लों, क़व्वालियों, लोकगीतों, भजनों, लोरी और मुजरा में भी दिलकश धुनों से अपनी अलग छाप छोड़ी हैं । 1998 में प्रदर्शित ‘चंडाल’ आपके संगीत निर्देशन में आई आखिरी फिल्म थी।
14 जनवरी 1991 को अपनी मंज़िल ए मकसूद पर पहुंच कर उन्होंने चैन की साँस ली और इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए पर वो अपने बेमिसाल संगीत के ज़रिए अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा जावेदाँ रहेंगे।

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