‘मोहम्मद अज़ीज़’ जिनकी आवाज ‘मोहम्मद रफी’ जैसे थी

Mohammad Aziz Birth Anniversary | न्याज़िया बेगम: फिल्म जगत में उसी वक्त से बड़ी मायूसी छा गई थी, जब मो.रफी साहब की तबियत खराब रहने लगी थी और वो गाने नहीं गा पा रहे थे। ये देखकर फिल्म निर्माता, निर्देशक परेशान थे, कि अब ऐसा गायक कहां मिले जिसकी आवाज़ भी हर दिल अज़ीज़ लगे ऐसे में। मोहम्मद मोहसिन द्वारा निर्देशित ‘जगा हटारे पघा’ नाम की ओडिया फिल्म में, ‘रूपा सस्ती रे सुना कनिया’ गीत की गूंज सुनाई दी, जिसने हर किसी को ये सोचने पे मजबूर कर दिया, कि ये दमदार आवाज़ किसकी है, तो मालूम हुआ कि ये मो. अज़ीज़ हैं, जो एक रेस्तरां में गाते हैं और बचपन से ही संगीत से जुड़े हैं।

रीजनल सिनेमा से की शुरुआत

उन्होंने महान ओडिया संगीतकार राधा कृष्ण भांजा की मानिनी नाम की ओडिया फिल्म से अपने संगीत करियर की शुरुआत की है और ज्योति नामक बंगाली फ़िल्म से फिल्मों में, पार्श्व गायन आरम्भ किया, तो बस हिंदी फिल्मों के लिए उन्हें ढूंढ कर ले आए संगीत निर्देशक सपन-जगमोहन और गाने के लिए दिए (1984) की बॉलीवुड फिल्म अंबर के गाने। पर चूंकि बंगाली फिल्मों से नाता बरक़रार था तो (1986) की बंगाली फिल्म बौमा में वो दिखाई दिए।

‘मर्द’ फिल्म में गाया पहला गाना

तब उन पर नज़र पड़ी संगीतकार अनु मलिक की, जिन्होंने उन्हें ‘मर्द’ फिल्म दी और इस फिल्म का शीर्षक गीत “मर्द तांगेवाला” उनकी आवाज़ में सुपरहिट हो गया। इस गीत की सफलता के बाद मो. अज़ीज़ ने 1985 में कई हिट गाने दिए जिनमें’ जान की बाज़ी ‘ गीत आज भी याद किया जाता है उन्होंने ओडिया में ओलिवुड अभिनेता सिद्धांत महापात्रा के लिए सबसे अधिक गाने गाए हैं।

कलकत्ता में हुआ था जन्म

2 जुलाई 1954 को कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में जन्में सईद मोहम्मद अज़ीज़-उन-नबी, सबके चहीते गायक बनते हुए मोहम्मद अज़ीज़ हुए और उनका गीत मर्द टांगे वाला लोगों के दिलों में बस गया। वो बहुभाषी पार्श्व गायक थे, जिन्होंने बॉलीवुड, ओडिया फिल्मों, बंगाली फिल्मों के लिए तो गाने गाए ही। इसके अलावा दस से अधिक विभिन्न भारतीय भाषाओं में भजन, सूफी भक्ति गीत और अन्य शैलियों सहित लगभग बीस हज़ार गीत गाए।

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए गाए सबसे ज्यादा गीत

उन्होंने कई प्रसिद्ध संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। पर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए लगभग 250 से अधिक गाने गाए। उन्होंने भगवान जगन्नाथ के लिए भजन भी गाने गाए और जब तक हिंदी भाषा की फिल्मों में पार्श्व गायक नही बने थे। 1997 के टीवी धारावाहिक, जय हनुमान में काम करने के अलावा, भारत और अन्य देशों में स्टेज शो भी करते रहे उनकी ये तपस्या ही थी जो आज वो महान पार्श्वगायकों में गिने जाते हैं।

कई सुपरहिट फिल्मों के लिए दी अपनी आवाज

उनकी आखिरी फिल्म काफिला थी। इससे पहले, उन्होंने फिल्म ‘करण-अर्जुन’ के लिए गाया था। उनके अलग अंदाज़ में कुछ गीत आज भी हमारे ज़हेन-ओ-जिया पे सवार हैं। जैसे:- “बहुत जताते हो प्यार हमसे … “अलका याग्निक के साथ, “तू मुझे क़ुबूल…”, “कविता कृष्णमूर्ति के साथ…”, ” मय से मीना से न साक़ी से दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से…”, साधना सरगम के साथ-“लाल दुपट्टा मलमल का”, “ये जीवन जितनी बार मिले…”, अलका याग्निक के साथ, “मैने दिल का हुकम सुन लिया..” अलका याग्निक और कविता जी के साथ।

मोहम्मद रफी के जैसी थी आवाज

इन नग़्मों के दिलनशीं कारवां के बीच वक्त, वो भी आया जब मो. रफ़ी हमें छोड़कर चले गए। इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए थे और आनन्द बख्शी ने फिल्म ‘क्रोध’ में श्रद्धांजलि स्वरूप उनके लिए गीत लिखा। “न फनकार तुझसा, तेरे बाद आया, मो. रफ़ी “तू बहोत याद आया”। जिसे आवाज़ दी मो. अज़ीज़ ने, जो हम सब संगीत प्रेमियों के दिलों के क़रीब है। इसी तरह अपना सफर तय करते हुए, मो.अज़ीज़ भी अपनी मंज़िल ए मक़सूद की आग़ोश में, 27 नवंबर 2018 को 64 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुक जाने के बहाने से, यूं तो खुदा के पास चले गए, पर हमारे लिए उन्हें भूल पाना आसान नहीं है। वो अपनी दिलनशीं आवाज़ में पिरोए नग़्मों के ज़रिए हमेशा जावेदांँ रहेंगे।

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