“घर के लड़िका गोही चाटयं मामा खांय अमावट” उक्खान की मजेदार कहानी

Bagheli Kahavat Ki Kahani Hindi Mein: चूंकि जेठ के महीना आय गा है, अउर इया समय आमा पकय के समय चलत लाघ हय। हम पंचे सब कोउ अपने लड़कईं मा आमा ता खूब ताकेन होब, इया उक्खान के बारेउ मा कईयक बेर सुने होब, लेकिन इया उखान बनी कइसन के, एखे बारे मा शायदय हय कोउ जानत होइ, ता चली मनई आज एखर कहानी जानित हैन। जऊन मनई सयनमन से सुनिस ही।

विंध्य में आमा बिनय के समय

अपने विंध्य क्षेत्र मा सुंदरजा अउ मालदहा समेत कईयकठे बेराइटी के नामी आमा पाए जात हें। हालांकि महुआ के विपरीत आमा अपने विंध्य के मूल फल ना होय, बल्कि गंगा-जमुना के मैदानन से आबा है। लेकिन जो एकबे आबा, ता इहन के रिमही लोकसंस्कृति मा बेलकुल रचि बसि गा। अपने इहन बघेलखंड के लोकमान्यता मा आमा का लड़िका के जात माना जात हय, ओखर नाम रक्खा जात हय। अउर साथय-साथ बरुआ कीन जात हय, ओखे बादय लगाबय बाला ओखा खात हय।
इहन आमा का लयके कईउठे किस्सा, कहनूत अउ उक्खान बने हें। एकठे ऐसनय उक्खान हय “घर के लड़िका गोही चाटयं मामा खांय अमावट”।

“घर के लड़िका गोही चाटयं मामा खांय अमावट” के मतलब

मने- घरे के लड़िका आमा के गोही चूसयं अउर आमा के गूझा से बनी सगली अमावट मामा खांय। इया कहावत जादातर हंसी-मजाक अउर व्यंग्य मा कही जात ही। जब कोउ अपने घर कैन के जघा कउनऔ चीज दूसरेन का देत हें। मतलब घरे के लोगन का थोरेन मा संतोष करय का पड़त हय और दूसर बढ़िया मजा लेत हें।

पहिले के समय के परिवेश

दरसल पहिले के समय मा जब समाज आज के जइसन साधन सम्पन्न नहीं रहा, गाँव-गमइन मा खाय-पियय के सब्जी बारहौ महीना ना रहय। ता इहन बघेलखंड मा सयानबे बरी, अचार, अमचुर, अमहरी अउर अमावट बनाय के रखि लेत रहे हें। जेसे जब सब्जी ना रहय अउर कोउ नात आय जायं, ता उनके खाय-पियै के प्रबंध आराम से होइ जाय। अमावट पके आमा का मीज के ओखे गूझा से बनत हय, फेर ओखा घामे मा सुखबाबा जात हय। फेर ओखा साल भरे के खाय खितिर रखि लीन जात हय। जब पहिले के जमाने मा अमावट डारयं, ता गूझा निचोड़े का बाद जउन गोही रहय, उया घरे के छोटकए लड़िका चूस लेबा करैं।
पहिले के समय के बात आय, कउनउ गाँव मा एकठे बड़ा साझे मा परिवार रहय। उनके पास कईउ पेड़ आमा के रहंय, जऊन गरमी मा खूब पकैं। अब जब गरमी के छुट्टी होय, ता घरे के सब लड़िका एकट्ठा होइ जांय। अब रहय का आमा ता आमा आय सबके घरे मा नही होय, ता बिना ताके खाय का नहिन मिलै, लोग चोरी से टोड़ बिनि लेंत रहें। ता एहिन से जे घरे के सयान रहैं ता लड़कन के ड्यूटी आमा ताकय मा लागय दिहिन। अब लड़िका सो लड़िका पका आमा के लालच मा, पूरे चइत बईशाख के खड़ी दुपहरिया मा आमा ताकैं। अउ सगले मिलि के आमा ताक डारिन।

“घर के लड़िका गोही चाटयं मामा खांय अमावट” के कहानी

अब पहिले के जमाने मा का होय, बरसात से पहिले आमा टोरबाय लीन जात रहा। अउर पकाबय खातिर बुसौला मा भार देयं। फेर पना, अमावट बनाबा जाय। अब एत्ता बड़ा साझे के परिवार, ता सगले लड़िकन का दुइ-दुइ के हिसाब से रोज आमा मिलय। अब लड़िका ता लड़िका आमा के अउ लालच करैं। ठीकय आय आमा जइसन चीज, बिचारे पूरी दुपहरिया भर एतने मेहनत से ताकिन अउ खाय का दुइ ठे आमा। लेकिन जऊन घरे के मलकिन रहय, उया लड़िकन का अमावट के लालच दइ-दइ के, साल भरे के निस्तार खीतिर अमावट डारे रहय। अब बाह रे लड़कईं, अमावट डारे के बाद जऊन गोही बचय लड़िका ओहु का चाट लेंय। मन मा इहौ संतोष रहै कि दुइ-दुइ ठे आमा पाइन जइत चला साल भर अमावट खाय का मिली। अब अमावट बनी, झुरान, लड़िका खाय का मांगयं। अब मलकिन कउनौ ना कउनौ आड़ से टरकायं देयं।

लड़िकन के लड़कई

अब कुद दिना बाद का भा कि, कउनउ लड़िकन के बाहर शहर मा रहय बाला मामा आबा। जब बियारी के बेरा आई ता खाना के साथेन-साथ अमावटौ फुलाई गई, लड़िकन का संतोस भा चला आज अमावट खाइका मिली। लेकिन अब रहा का पहिले के जमाने मा इया रीत रहय पहिले नातभाई खाय लेंय, ओखे बादय घरे के बाकी जने लड़िका लेबा खायं। लेकिन नातन के साथ घरे के सयान जरूर बइठयं। अब होइगा बियारी शुरू भय, ओसारिया मा खबाइया खाय लागें। शहर-नगर से आबा बपुरा मामा अमाबट खाए परे रहा अउर बिचारे लड़िका लुपुर-लुपुर निहारयं। मामा का अमाबट खात देखिके लड़िका अउरउ ललचिआय के देखत रहें।

अउर उक्खान चलि पड़ी

लड़िकन के बाप-पीती, जिनकर मामा से मजाक के रिश्ता रहय, इया सब देखि के मजाक भरे व्यंग्य मा बोल उठें- “घर के लड़िका गोही चाटयं मामा खांय अमावट”। मने बिचारे जउन ईं लड़िका घामे मा आमा ताकिन, उनका गोही चाटय का मिली, अउर अमावट मामा खात लाग हय। इया सुनिके जेतने जने ओसारे मा बईठ रहें, सब हंसय लागे। अउर बड़े सुआद से अमावट खात रहा बिचारा मामा मामा लजाय गा। अउर ओहिन के बाद इया कहाबत चल पड़ी।

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