Atmamanthan In Hindi | न्याज़िया बेगम: फैसले लेने में जल्द बाज़ी न करें मगर बहुत देर भी न करें क्योंकि कभी कभी हम उन बातों को टालते जाते हैं, जिनके बारे में सोचना और फैसले लेना बहोत ज़रूरी होता है। शायद बेहतर और बेहतर की तलाश में हम समय रहते किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाते और हड़बड़ी में ग़लत निर्णय भी ले लेते हैं। इसलिए हर मामले में कुछ अपने मापदंड तय करना ज़रूरी होता है, हमारे लिए क्या ज़्यादा महत्वपूर्ण है ये हमें ही समझना होगा और उसे वरीयता देनी होगी। तभी हम सही फैसले ले पाएंगे, एक योजना या समय सारिणी बना लेना भी अच्छा है अगर हम पर बहोत ज़िम्मेदारियां हैं या कई उद्देश्य हैं तो, ये समझकर ही बेहतर से बेहतर की तलाश करें कि हमारे पास कितना वक़्त है, जिसके बारे में हम निर्णय ले रहे हैं उसके लिए क्या अहम है, क्योंकि कभी कभी आख़िर में हमारे पास विकल्प भी नहीं बचते और जो हमारे सामने है उसे हमें चुनना पड़ता है।
अगर हम खुद फैसले नहीं ले सकते तो कौन है हमारा मुखिया
आम तौर पर घर में कोई एक मुखिया होता है जो सबके हक़ में फैसले करता है, और पूरा परिवार उसके फैसले मान लेता है बिना कोई आपत्ति जताए, लेकिन ये दोनों ही काम बेहद मुश्किल हैं, जहां एक तरफ डर है कि हम ग़लत फैसला न सुना दें तो वहीं दूसरी ओर ये एहसास भी हमें परेशान कर देता है कि हमारे फैसले को स्वीकार करने वाला भी सही निर्णय ले सकता है। लेकिन या तो उसे इसका अधिकार नहीं या वो हमारे मान को नहीं तोड़ना चाहता, शायद इसलिए कि ये हमारे भारतीय परिवारों में रची बसी ऐसी परंपरा है जिसका विरोध भी बग़ावत से कम नहीं होता कई दिल भी टूट जाते हैं। तो कैसे सुना और सुनाया जाए।
एकता में ही शक्ति है
क्या करें कि किसी का दिल न टूटे, सही समय पर हम सही निर्णय लें, एक रहें सुदृढ़ बने और उन्नति की ओर अग्रसर हों। एक अहम फैसला सही वक्त पर लेकर जीवन को सही दिशा दे सके खुद को और हमसे जुड़े लोगों को खुश रख सकें। पर क्या ऐसा मुमकिन है कि हम सही वक्त पर सही निर्णय लें सकें? शायद इतना मुश्किल भी नहीं है क्योंकि कोई चाहे देश का प्रतिनिधित्व करें या अपने घर परिवार समाज या किसी कंपनी का उसका उन लोगों को समझना बहुत ज़रूरी है जिनके बारे में फैसले लेकर वो उनको, खुद को और दोनों के भविष्य को प्रभावित करता है।
इसलिए ऐसे फैसले लेने चाहिए जिसमें सबका भला हो ,क्योंकि आप जहां भी है ,जिसके लिए भी निर्णायक की भूमिका में हैं उसे आप कुछ दे रहे हैं तो वो भी आपको कुछ दे रहा होगा, चाहे आज चाहे कल पर देगा ज़रूर तो ज़रूरी है कि आप भी उसे समझे उसकी ज़रूरत, उसकी उम्मीदों और चाहतों से बेखबर न हों, उस पर खरा उतरने की कोशिश करें खुद को इस तरह ढालें कि अपनी ख्वाहिशों के पहले हम उनकी तमन्नाओं को पूरा कर सकें।
क्या सबको अपने परिवार का हिस्सा मानना मुश्किल है
ये इतना मुश्किल तो नहीं ! क्योंकि हम जिन भी लोगों के साथ हैं वे या तो हमारे परिवार के सदस्य हैं और अगर नहीं हैं तो हमारे परिवार से कम भी नहीं हैं जिनके लिए, उनके बेहतर कल के लिए हमें निर्णय लेने हैं, फिर चाहे हम किसी भी तरह से ये हक़ रखते हों लेकिन हमें अपनी भी गरिमा बना के रखनी है किसी पर यूं ही अपने फैसले थोपने नहीं है बल्कि ऐसे निर्णय लेने हैं जिनसे सब खुश रह सकें। फिर अगर हम इन्हें अपना परिवार मानते हैं तो इनसे प्यार और हमदर्दी होना तो लाज़मी है और यही वो जज़्बात हैं जो हमें प्रगति की ओर अग्रसर करते हैं। उनकी खुशी में अपनी खुशी ढूंढना ,आसान नहीं पर हमें अगर आगे बढ़ना तो एक परिवार का गठन करना बहुत ज़रूरी है जिसमें हमारे वो अपने रहते हैं जिनके बारे में सोचना हमारा फ़र्ज़ है और वो भी वक़्त रहते क्योंकि अगर हमारे अपने हमसे न उम्मीद हो गए तो फिर हम भी रुक जाएंगे, बढ़ नहीं पाएंगे ग़ौर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।