Asirgarh fort history: महाभारत से मुमताज तक,असीरगढ़ के श्रापित किले का खुनी इतिहास

History Of The Cursed Fort Of Asirgar

History Of The Cursed Fort Of Asirgarh: द्वापर युग का वो काला अध्याय जब कुरुक्षेत्र का रणक्षेत्र लाशों से सना हुआ था अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य का अमर पुत्र, पांडवों के पांचों पुत्रों का संहार कर चुका था। क्रोध में आग्नेयास्त्र चला दिया, लेकिन भगवान कृष्ण के शाप ने उसे अमर बना दिया—एक शाप जिसने कलयुग के अंत तक उसे भटकने पर मजबूर कर दिया “तू कभी शांति न पाएगा, तेरी ज्वाला-सी आग कभी ठंडी न होगी!” कृष्ण की वो गूंजदार सजा आज भी असीरगढ़ के पहाड़ों में गूंजती है। मान्यता है कि अश्वत्थामा इसी किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में रोज सुबह आता है, भगवान शिव को फूल चढ़ाने। लेकिन रात के अंधेरे में वो भटकता फिरता है चेहरे पर खुला घाव, माथे से खून टपकता हुआ, तिलक के लिए हल्दी और तेल मांगता हुआ। यूँ तो उसे ज्यादा लोगों ने नहीं देखा लेकिन जिसने उसे देखा , वो पागल हो गया। ये किला महाभारत से जुड़ा है क्योंकि ये खांडव वन का हिस्सा माना जाता है, जहां अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि से जंगल जलाया था। मंदिर तो 5,000 साल पुराना है, महाभारत काल काअश्वत्थामा का शाप यहीं का है, और किले का नाम ‘असीर’ (अटल ऊंचाई) भी उसी ज्वाला से प्रेरित है। ये तो वो बातें है जो हम में से कई लोगो को मालूम ही होंगी। अब चलिए, इस किले की सच्ची इतिहास की कहानी सुनाते हैं शुरू से, असीरगढ़ किला, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से 20 किमी उत्तर में सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसा है। ये नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच का वो दर्रा नियंत्रित करता था, जिसे ‘डेकन की चाबी’ कहा जाता था उत्तर भारत से दक्षिण की राह यहीं से होकर गुजरती है.

शुरुआत: 9वीं शताब्दी से राजपूतों का किला

किले की नींव 9वीं शताब्दी में तंक राजपूतों ने डाली, जो निमाड़ इलाके पर राज करते थे। 13वीं शताब्दी तक ये उनके हाथ रहा। फिर तोमर और चौहान राजपूतों ने इसे अधीन कर लिया। लेकिन असली निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ अहीर वंश के राजा आसा अहीर ने इसे बनवाया। तब इस किले का नाम पड़ा ‘आसा अहीरगढ़’, जो बाद में ‘असीरगढ़’ हो गया। पत्थर, चूना और सीसे से बना ये किला अटल था 60 एकड़ में फैला, तीन कृत्रिम तालाबों से पानी की आपूर्ति, और ऊंची दीवारें जो दुश्मन को कभी किले में घुसने न दें। फिर 14वीं शताब्दी में खानदेश के फारूकी सुल्तानों ने इस किले पर कब्जा कर लिया। नासिर खान ने इसे अपनी राजधानी बनाया। दो सदी तक फारूकी यहां राज करते रहे बुरहानपुर शहर भी इन्होंने ही बसाया। लेकिन 1599 में मुगल बादशाह अकबर ने आक्रमण किया और बुरहानपुर को फतह कर लिया यानि जीत लिया , मगर इतनी भीषण लड़ाई के बाद भी किला नहीं झुक फिर जहांगीर और शाहजहां ने इसे मजबूत किया।

मुमताज महल और शाहजहां का दर्द: 1631 का वो काला दिन

शाहजहां के समय आसिरगढ़ मुगलों का गढ़ था। 1631 में शाहजहां दक्षिण अभियान पर थे जहाँ वो अपनी बेगम मुमताज महल के साथ बुरहानपुर पहुंचे तो मुमताज ने 14वें बच्चे गौहर आरा बेगम को जन्म दिया, लेकिन 30 घंटे की पीड़ा के बाद खून बहने से उनकी मौत हो गई। किले के पास ही, ताप्ती नदी के किनारे जैनाबाद बाग में उन्हें दफनाया गया था ये शाहजहां के चाचा दानियाल का बाग था। बाद में लाश को ताजमहल ले जाया गया, लेकिन बुरहानपुर और असीरगढ़ का ये दर्दनाक कनेक्शन आज भी याद किया जाता है। मुमताज की मौत ने शाहजहां को तोड़ दिया, लेकिन असीरगढ़ जैसे किले मुगल साम्राज्य की ताकत के प्रतीक बने रहे।

औरंगजेब का खूनी खेल: 1685 की घेराबंदी

इसके बाद एंट्री होती है औरंगजेब की , मुगल का सबसे क्रूर बादशाह जिसकी 1685 में दक्षिण जीतने के चक्कर में आसिरगढ़ पर नजर पड़ती है जिस पर उसके बेटे मिर्जा आजम ने कब्जा कर रखा था, लेकिन पिता-पुत्र का झगड़ा भड़क गया। औरंगजेब ने किले की घेराबंदी की महीनों चली लड़ाई में तोपें गर्जीं, लेकिन किला अटल रहा। आखिरकार, आजम ने हार मान ली और किला सरेंडर कर दिया। औरंगजेब ने इसे अपनी दक्षिणी सीमा का गेट बना लिया। ये घटना मुगल परिवार की कलह का प्रतीक बनी औरंगजेब की महत्वाकांक्षा ने न सिर्फ किला, बल्कि उसके अपने खून को भी लील लिया।

मराठा और ब्रिटिश युग: अंतिम सांसें

इसके बाद 18वीं शताब्दी में मराठों ने इस किले पर कब्जा किया जहाँ होल्कर और सिंधिया ने इसे संभाला। 1803 में एंग्लो-मराठा युद्ध में ब्रिटिश ने आसानी से इस किले पर कब्जा कर लिया। 1819 के तीसरे युद्ध में ये आखिरी मराठा गढ़ था लेकिन ब्रिटिशों ने तोपों से हमला किया, और 9 अप्रैल को किला फतह कर लिया फिर ब्रिटिश काल में ये किला खंडहर बन गया। जो आज एक पर्यटन स्थान बन कर रह गया है लेकिन 2025 में बॉलीवुड फिल्म ‘छावा’ इस किले को लेकर फिर हलचल मचा दी।फिल्म में दिखाया कि मुगलों ने संभाजी के कैंप से लूटा सोना आसिरगढ़ में छिपा दिया। जिसके बाद कई लोगों ने फिल्म देखने के बाद मार्च 2025 में किले के आसपास खेतों में, पहाड़ियों परखजाने की लालच में खुदाई करने लगें। जिसके बाद पुलिस ने रोक लगाई, लेकिन लोकल लेजेंड कहते हैं खजाना किले के गुप्त तहखानों में या गुप्तेश्वर मंदिर के नीचे है। कोई ठोस जगह नहीं मिली, लेकिन अफवाहें कहती हैं रात में चमकती रोशनी वो खजाने की चेतावनी है।

खजाने का रहस्य: कहां छिपा है वो सोना?

इस किले के बारे में कई भूतिया जानकारी भी सामने आयी हैं जो वहां के स्थानीय लोग आज भी कांपते हुए सुनाते हैं। लोगों का कहना है की , “रात को किले पर चढ़ो तो अश्वत्थामा मिलेगा माथा रगड़ते हुए तेल मांगेगा। एक व्यक्ति ने बताया की उसके किसी रिश्तेदार ने देखा, लेकिन अगले दिन पागल हो गया।” बभूतिया कहनियाँ मुगलों से भी जुडी हुई हैं स्थानीय लोगों का कहँ है की किले की दीवारों में फारूकी सुल्तान का भूत घूमता है, जो अकबर से हार का बदला लेता है। इस किले में , ब्रिटिश सिपाहियों की कब्रें दफन है जो युद्ध में मरे गए थे उन शिपहीयों की रात में चीखें सुनाई देती हैं।ये कहानियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रही हैं, जो किले को ‘भूतिया गढ़’ बना देती हैं। लेकिन सच्चाई ये कि इतिहास की दीवारें ही सबसे बड़ा भूत हैं जो हमें याद दिलाती हैं, हमरी धरोहर की इन कहानियों इन लोक कथाओं में कितनी सच्चाई हैं ये तो सिर्फ इस किले की दीवारों को ही पता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *