तड़पाओगे तड़पालो गाना नायक नायिका के बीच की लव केमिस्ट्री है या कुछ और !

TADAPAOGE

Viral Song From Film Barkha: आजकल एक गाना बड़े ज़ोरों से सोशल मीडिया में अपना रंग बिखेर रहा है या ट्रेंड कर रहा है लोग उसे अपने -अपने अंदाज़ में कॉपी कर रहे हैं, ख़ास कर कपल क्योंकि उसके बोल हैं “तड़पाओगे तड़पालो हम तड़प तड़प के भी तुम्हारे गीत गाएंगे , ,ठुकराओगे, ठुकरालो हम ठोकर खाकर भी तुम्हारे दर पे आएंगे “ये गाना बेहद दिलकश है पर फिल्म में इसे गाने के बाद नायक अनंत कुमार से शुभा खोटे पूछती हैं, मै तो तुम्हे अच्छी नहीं ही लगती पर क्या तुम्हें अब मेरा संगीत भी नहीं अच्छा लगता तो नायक कहता है नागिन की फुंकार भी किसी को अच्छी लगती है भला ? तो ऐसा क्यों कहा नायक ने? ऐसा कुछ कहा भी कि नहीं ,तो इस गाने के आगे भी वीडिओ ज़रूर देखिये ये फिल्म है “बरखा” जो 1959 को रुपहले पर्दे पर जगमगाई ,निर्देशन है कृष्णन पंजू, जो आर. कृष्णन  और एस. पंजू की जोड़ी है जिसने दक्षिण भारतीय भाषाओं और हिंदी में 50 से ज़्यादा फिल्मों का निर्देशन किया है।  निर्माता हैं, एवी मयप्पन जो तमिल सिनेमा के अग्रदूतों में से एक थे।” “बरखा ” फिल्म 1958 में आई फिल्म थाई पिरंधल वाझी पिरक्कम  का रीमेक है।

आश्चर्य चकित होने वाली क्या बात है :-

हैरानी की बात ये है कि जगदीप और नंदा मुख्य भूमिका में हैं और भाई बहन हैं। नंदा को बड़ी अभिनेत्री माना गया इसलिए उनकी फीस फिल्म कास्ट में सबसे ज़्यादा थी वहीं नायक जगदीप को बतौर हास्य अभिनेता ज़्यादा पहचान मिली ,उनका असली नाम सैयद इश्तियाक़ अहमद जाफरी है और वो ‘शोले’ फ़िल्म में अपने किरदार “सूरमा भोपाली” के नाम से भी याद किये जाते हैं। “बरखा ” फिल्म की बात करें तो इसमें उनके किरदार का नाम है अजीत जो फिल्म में धमाके दार एंट्री करता है बुलफाइट के ज़रिये जिसमें जगदीप बड़ी दिलेरी से बैल से लड़ते नज़र आते हैं ये सीन शुरू में ही फिल्म में रोमाँच पैदा कर देता है, अब सवाल ये उठता है कि फिर हमें हँसाने गुदगुदाने के लिए फिल्म में कौन है, तो ये रोल निभाया है शंभू के रूप में मुकरी जी ने।

क्या शुभा खोटे फिल्म की नायिका नहीं हैं :-

शुभा खोटे की बात करें तो उनकी पहचान हिंदी सिनेमा में एक सह-अभिनेत्री और कॉमेडियन की रही। लेकिन अपने छह दशक लंबे करियर में इन्होंने कुछ गंभीर ,यादगार और दमदार किरदार निभाए,फिल्मों ही नहीं टीवी शोज़ में भी खूब काम किया। बचपन से वो स्टेज पर एक्टिंग करने लगीं थीं लेकिन उनकी दिलचस्पी खेलों में ज़्यादा थी हालाँकि ये दोनों इंट्रेस्ट उनमें, पापा नंदू खोटे से आये थे क्योंकि वो अभिनेता होने के साथ-साथ एक एथलीट भी थे इसलिए शुभा जी ने भी दोनों फील्ड में अपनी पकड़ बनाई थी , उन्होंने साइक्लिंग में नेशनल चैंपियन का खिताब जीता , साइक्लिंग ही नहीं, स्विमिंग के लिए भी वो खूब मशहूर हुईं और इंटर कॉलिजिएट चैंपियनशिप अपने नाम की थी। अब आते हैं ,फिल्म बरखा की तरफ जिसमें नंदा ने पार्वती यानी अजीत की बहन का रोल निभाया है और बेहद भोली भाली और खूबसूरत लग रहीं हैं, शुभा खोटे भी मधु के रूप में खूबसूरत लग रही हैं, अपने नये -नये ,आउटलुक और स्टाइल के साथ लेकिन भोली भाली नहीं लग रहीं हैं ,क्योंकि वो ऐसी खलनायिका हैं जो नायक का प्यार न मिलने की वजह से उसका खून भी करवा देती है हालाँकि हीरो बनके अजीत उसे बचा लेता है और आख़िर में वो अपनी ग़लती मान कर अजीत का प्यार बन जाती हैं । फिल्म के और किरदारों को जीवंत किया है, हरिदास के रूप में डेविड ने, उनकी पत्नी का किरदार निभाया है लीला चिटनिस ने। डॉ. मनोहर यानी उनके बेटे और पार्वती के पति हैं – अनंत कुमार। उल्हास बने हैं, इंस्पेक्टर।

गानों के क्यों हुए सब दीवाने:-

साउंडट्रैक की बात करें तो फिल्म के सभी गाने दिलकश हैं, जिन्हें लिखा है राजेन्द्र कृष्ण ने और संगीतबद्ध किया है चित्रगुप्त ने, और बतौर गीतकार-संगीतकार इस जोड़ी ने हमेशा सदाबहार गीत दिए हैं हमें । भाई बहन के प्यार को दर्शाता एक प्यारा सा चंचल गीत है “वो दूर जो नदिया बहती है, वहाँ एक अलबेली रहती है”  जिसे आवाज़ दी है लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने, और गीत हैं ,लता मंगेशकर की आवाज़ में सबसे शुरू में टाइटल सांग- “बरखा बहार आई. ..”इसके अलावा ,”पूछूँगी एक दिन. ..” और “ऊँचे पर्वत गहरे सागर …”. मोहम्मद रफ़ी जे ने गाए हैं -“सुर बदले कैसे कैसे देखो ..” जो हमें फिल्म के हर बदलते रुख़ के साथ कई बार सुनाई देता है, इसके अलावा “प्यार किया नहीं जाता….”जिसने बतौर हीरो जगदीप के किरदार में चार चाँद लगाया और “आदमी चिराग है. …” पर एक गाने ने उस वक़्त भी ख़ास जगह बनाई और आज भी सदाबहार है जी हाँ मुकेश और लता मंगेशकर के युगल स्वर में, “एक रात में दो-दो चाँद खिले,एक घूँघट में एक बदली में अपनी -अपनी मंज़िल को मिले एक घूँघट में एक बदली में ….”.

कैसा था फिल्म बरखा का दौर :-

“बरखा” फिल्म की पटकथा तैयार की है, डी एन देवेश और गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने ,फिल्म की कहानी में जहाँ एक भाई का अपनी बहन की शादी का सपना जिसकी वजह से टूटता है ,वो जेल चला जाता है ,उसी आदमी के बेटे से उसकी बहन शादी कर लेती है और ये बात उसे तब पता चलती है जब वो अपनी ही बहन को उस आदमी की बहू समझकर अँधेरे में वार कर देता है। ऐसा क्यों हुआ ये हम दर्शक तो जान रहे होते है लेकिन वो भाई नहीं जनता ये सोचकर हमारी साँसे रुक जाती हैं कि अगर एक भाई के हांथो उसकी बहन मर गई तो कहानी जाने कौन सा मोड़ लेगी ! आगे भी ऐसे बहोत से सस्पेंस हैं तो हम तो यही कहेंगे कि अगर आपको इन आला किरदारों के नए जलवे को देखना हो, 1958 के दौर को समझना हो तो “बरखा” फिल्म ज़रूर देखिये ,क्योंकि पूरी टीम के लिए नया अनुभव थी, फिल्म “बरखा” तो आपके लिए भी कुछ नया और बेमिसाल हो सकता है इसमें तो चलिए खोज निकालिये कुछ अपने लिए भी ।

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