हाल ही में वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट आयी.नयी बात नहीं है बहुत सालों से आ रही है और इसके नए न होने का कारण मात्र ये नहीं है बल्कि जिस तरह से देशों की रैंकिंग की गयी है वो भी इसको नयेपन से कोसों दूर रखता है. इस पर बहुत सारे तथाकथित वोक क्रिएटर्स अपना वीडियो जारी करते हुए दिखाएंगे कि देखिये किस तरह से भारत के हालात तो पाकिस्तान से भी ज्यादा ख़राब हैं.
जी हाँ,पाकिस्तान इस लिस्ट में 108वें स्थान पर है वहीँ भारत की रैंकिंग है 126 और सिर्फ यही नहीं भारत इस लिस्ट में यूक्रेन और फिलिस्तीन जैसे देशों से भी पीछे है. हर साल आने वाली ये रिपोर्ट The Wellbeing Research Centre at the University of Oxford द्वारा पब्लिश की जाती है.
टॉप पर तो हमेशा की तरह फ़िनलैंड है. फिर है डेनमार्क,आइसलैंड,स्वीडन और पांचवें नंबर पर इजराइल।वही इजराइल जो युद्ध में है.लोग यहाँ प्रोटेस्ट कर रहे हैं.20 वें पायदान पर है ब्रिटेन.एकदम हाल ही की Mental State of the World” report के मुताबिक ब्रिटैन दुनिया का दूसरा सबसे दुखी देश है और वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में ये बेहतरीन जगह.हो सकता है यहाँ कोई अलग स्ट्रेटेजी चलती हो क्योंकि रिपोर्ट बनाने वाले खुद इसे बेहद कम्प्रेहैन्सिव रिपोर्ट बताते हैं .इसके लिए हर साल देशों से हज़ार लोगों का सैंपल लिया जाता है मतलब भारत की 1.42 बिलियन की जनसँख्या उसपर भी इतनी विविधता और उसको रिप्रेजेंट कर रहे हैं ये 1000 लोग.ये कैसी सैंपलिंग हैं!अमेरिका,सुपरपावर, तथाकथित लीड करता हुआ देश.इसकी रैंकिंग है 23 पिछले साल से गिरी है. पहले इसका स्थान सोलहवां था लेकिन है बेहतर ही.इसी अमेरिका में पिछले साल 600 मास शूटिंग्स हुई हैं.साल भर में भारत के ही कितने स्टूडेंट्स की मौत हो चुकी है उनमे गन शूटिंग्स के भी मामले थे.600 मॉस शूटिंग का मतलब है 2 क़त्ल हर रोज़.अमेरिका में लोगों से ज्यादा बंदूकें हैं.एक एक मामलों की बात करें तो अमेरिका के गन कल्चर पर पूरा अलग कच्चा चिट्ठा खोला जा सकता है.
आपको क्या लगता है कि वेस्ट जो इमेज हमेशा से खुद की पोर्ट्रे करता रहा है मात्र वो सही है.मतलब मीडिया अपना चुनिए,रिपोर्ट अपनी बनाइये और विनर भी खुद बन जाइये।आपको क्या लगता है इनकी सड़कों पर गरीब नहीं हैं,भुखमरी नहीं है,बीमारियां नहीं हैं.किसी भी तरह से मै इस बात से नहीं नकारती की भारत में समस्याएं नहीं हैं लेकिन अगर बात कमियों की हों तो तथ्य,लॉजिक और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर हो. बात बस इतनी सी है.वही बात खूबियों पर भी लागू होती है.
भारत फिलिस्तीन और पाकिस्तान से भी ज्यादा दुखी!
फिलिस्तीन, यहाँ ये हालात हैं कि लोग भूख से तड़प रहे हैं.खाने की ट्रकों को देखकर जानवरों जैसे दौड़ते हैं लेकिन इसकी रैंक भारत से कहीं ऊपर 103 है.अब आते हैं जनाब पाकिस्तान पर.ऐसा देश जो जबसे बना एक सरकार नहीं टिक पायी।कट्टरपंथी इतना कि मोहम्मद पैगम्बर पर टिप्पणी करने वाले को मौत की सजा सुना दी जाए,पिछले साल 800 आतंकी हमले हुए हैं यहाँ,अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है.बीता चुनाव सबने देखा कि कितने लोकतान्त्रिक तरीकों से हुआ है,पाकिस्तान की 40 फ़ीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है.कल की ही खबर है इस्लामाबाद हाई कोर्ट के 8 में से 6 जजों ने सुप्रीम जुडिशल काउंसिल को पत्र लिखकर कहा है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI कोर्ट के काम में दखल दे रही है.ये दखल ऐसा है कि जजों के रिश्तेदारों और दोस्तों को अगवा कर लिया जाता है,डराया धमकाया जाता है और फैसला अपने मन मुताबिक करवाने का दबाव बनाया जाता है.पिछले साल एक जज के बेडरूम से CCTV कैमरा मिला उन्होंने शिकायत की पर कुछ नहीं हुआ.इस खत में लिखा है कि पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई को जब आयोग्य ठहराया गया दो जजों के दोस्त और रिश्तेदारों को डराना धमकाना शुरू कर दिया गया.स्थिति ये हो गयी कि एक जज साहब होस्पिटलिज़्ड हो गए.मतलब न्यायतंत्र चलाने वालों की ये स्थिति।ऐसे देश में छोटे मोठे पत्रकार तो कहाँ ठिकाने लगा दिए जाते होंगे आप सोच नहीं सकते।यही पाकिस्तान प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट में भारत से ऊपर है.हैप्पीनेस इंडेक्स की बात हम कर चुके हैं और यही नहीं अफ़ग़ानिस्तान भी भारत से आगे है.मतलब भारत जो आज के समय में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है वो इनसब से पीछे है. हम इसकी बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसी हैप्पीनेस इंडेक्स की रिपोर्ट का एक क्राइटेरिया जीडीपी भी है.करप्शन भी इसका एक क्राइटेरिया है.फिर तो पाकिस्तान को इस लिस्ट में शायद शामिल ही नहीं होना चाहिए।
रिपोर्ट्स और भी बहुत सी हैं जिसमे वेस्ट के पूर्वाग्रह को एकदम स्पष्ट तरीके से देखा जा सकता है.भारत लम्बे समय से इस बारे में बोल भी रहा है और अब भारत खुद के भी सूचकांक बनाने की तैयारी कर रहा है.ये कितना सही जाएगा ये वक्त ही बताएगा लेकिन एक बात तो साफ़ है कि अपने ही घर में बैठ के अपने ही रूल्स बना कर खुद को विजेता साबित करने वाली वेस्ट की आत्ममुग्धता पर सवाल उठाना जरुरी है और समय आ रहा है कि इससे हमे बाहर निकलना होगा।यहाँ किसी से कट के रहने की बात नहीं है.वैश्वीकरण के दौर में ये संभव भी नहीं है लेकिन अभिभूत न होने का चुनाव सबसे बेहतर है और खुशी की बात है कि ये चुनाव हमारे लिए खुला हुआ है.