Poem On World Environment Day
पर्यावरण दिवस पर अखबारों में
बड़े बड़े आलेख छपेंगे।
जल जंगल और जमीन बचाने
पर्यावरण पाखंडी बड़े बड़े जतन करेंगे।
वैश्विक तापमान वृद्धि को
जलवायु परिवर्तन का कारक ठहराएंगे
खुद एसी में दिन रात बिताएंगे
सबको पौधारोपण की सलाह बताएंगे।
एक वृक्ष को दस मिलकर लगाएंगे
फोटो खिचाएंगे ।
पर्यावरण हितैषी बन जायेंगे।पर्यावरण दिवस मनाये जायेंगे ।
दिवस विशेष पर व्याख्यान होंगे।
गोष्ठियां होंगी संगोष्ठियां होंगी ।
ये पर्यावरण पाखंडी इत्ती से बात ना समझ पाएंगे।
बात बहुत छोटी सी है, पर तथाकथित आधुनिक बनने की होड़ में हमारी भोजन संस्कृति हमने उसे विस्मृत कर दी है। बड़ा महत्व था पत्तल दोने पर परोसने का। इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाने का. भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था। जब कोई भी मांगलिक कार्य होता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था।
पत्तल विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी। भोजन पत्तल में ही परोस कर क्यों खाया जाता था? हमने जानने की कभी कोशिश ही नहीं की। गर हम पंगत की संगत का महत्व जानते। तो देश मे कभी ये बुफे जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति नही पनपती।
पत्तलें अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जाती थीं। अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग- अलग होते थे। लकवा पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन कराया जाता था। जो बेहद फायदेमंद होता था । जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की व्याधि होती थी। उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन कराते थे। जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती थी। उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करवाया जाता था।
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है। पलाश दाद खाज खुजली से मुक्ति की गारंटी देता था। सयाने कहते थे पीपल पत्ते में भोजन करने से अस्थमा दूर होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा भरपूर मिलता है।
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता था। केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता था। कदली पत्र में बहुत से ऐसे तत्व होते हैं जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते थे।पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती हैं। पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है।
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है। वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है। पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ है, जहरीले रसायनों से मुक्त है। पत्तल पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार के हानि की संभावना शून्य होती है।
हम पत्तलों का अधिकाधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा। क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्राम्यांचलों में ही पाये जाते हैं। अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा रोपेंगे, सीचेंगे सहेजेंगे प्लास्टिक प्रदूषण कम होगा। प्लास्टिक दैत्य बन गया है। हमारी मिट्टी, नदियों, तालाबों में प्रदूषण फैला रहा है।
पत्तल के अधिक उपयोग से प्लास्टिक डिस्पोजल कम हो जायेगा। मासूम जानवर प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे। गर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होता है। सबसे बड़ी बात पत्तले, पर्यावरण अनुकूल हैं, बहुत सस्ती हैं।
ये बदलाव आप और हम ही ला सकते हैं अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे । वसुंधरा सहित हम भी स्वस्थ और सुंदर हो जायेंगे।आरोग्य बढ़ेगा रोग घटेंगे।हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है। हमे इस बात का गर्व होना चाहिए. पत्तल दोने के प्रयोग से कोई छोटा नहीं होगा. पर्यावरण संरक्षण के राग अलापने के बजाय। हम सब पर्यावरण पाखंडी इतना तो कर ही सकते हैं। दोना पत्तल से अपने बाजार भर सकते हैं।