दिवाली के लगभग 11वें दिन देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष के 11वें दिन पड़ती है और हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में आती है. माना जाता है कि 4 महीने बाद श्रीहरि विष्णु जागते हैं और इसके साथ ही सभी धार्मिक कार्यक्रम और शुभ काम भी शुरू हो जाते हैं. तो आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी के बारे में-
कब है देवउठनी एकादशी?
साल 2023 में देवउठनी एकादशी 23 नवंबर, गुरूवार को है. इस दिन ज्योतिष के मुताबिक सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. एकादशी तिथि की शुरुआत 23 नवंबर को सुबह 11 बजकर 3 मिनट पर शुरू होगी और रात 9 बजकर 1 मिनट पर खत्म हो जाएगी। इसका मतलब है कि उदया तिथि के मुताबिक 23 नवंबर को देवउठनी एकदशी मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु 4 महीने बाद नींद से जागने वाले हैं और सभी मांगलिक कार्यक्रम भी शुरू हो जाएंगे। साथ ही देवउठनी एकादशी की रात को शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह भी होता है.
देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवता जाग जाते हैं और शुभ कामों की शुरुआत हो जाती है. इस तिथि में भगवान विष्णु की पूजा का महत्व है. इसके अलावा इस दिन तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह भी किया जाता है. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन टोटका करने वाले मंत्र जागरण भी करते हैं.
कैसे हुई एकादशी की शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार ‘मुर नामक दैत्य’ ने बहुत आतंक मचा रखा था यहां तक कि स्वयं भगवान विष्णु ने भी उसके साथ युद्ध किया लेकिन लड़ते-लड़ते उन्हें नींद आने लगी और युद्ध किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा, जब विष्णु जी शयन के लिए चले गए तो मुर ने मौके का फायदा उठाना चाहा, लेकिन श्रीहरि से ही एक देवी प्रकट हुईं और दैत्य के साथ युद्ध आरंभ कर दिया। युद्ध में मुर मूर्छित हो गया तभी देवी ने उसका सिर, धड़ से अलग कर दिया। वह तिथि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि थी. मान्यता है कि भगवान विष्णु से एकादशी ने वरदान मांगा था कि जो भी एकादशी का व्रत करेगा उसका कल्याण होगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से प्रत्येक मास की एकादशी का व्रत की परंपरा आरंभ हुई.