Shivraj Singh Chauhan को Modi ने क्यों हटाया?

Shivraj Singh Chauhan

मध्य प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिल गया है. सूबे के नए मुख्यमंत्री होंगे मोहन यादव काफी मशक्कत और पूरे 9 दिन सोच विचार के बाद आखिरकर भारतीय जनता जनता पार्टी ने प्रदेश की जनता को उनका मुख्यमंत्री दे दिया है. क्यों मध्य प्रदेश वालों चौंक गए न, मुख्यमंत्री का नाम सुन के. अरे हम भी चौंक गए यहां तक खुद प्रदेश के नए नवेले मुख्यमंत्री मोहन यादव को भी चौंक ही गए थे। अब बात शिवराज की भोपाल का सबसे बड़े नेता प्रदेश की राजनीति में अपना छाप छोड़ने वाले नेता को कौन जनता था कि 9 साल पहले शुरू हुआ एक चक्र कृषि मंत्री के इर्द गिर्द घूमता है, वो 9 साल बाद फिर वहीं आ जाएगा।

शुरू से शुरू कारते हैं. मध्य प्रदेश का वो मुख्यमंत्री जिसने एक बीमारू राज्य को सुधारू राज्य की कटेगरी में लाकर खड़ा कर दिया। हम उनकी महिला जनकल्याणकारी नीतियों की बदौलत याद करें, हो सकता है कि भुल्कड़ जानता उनको भूल जाएगी लेकिन जब भी बात होगी प्रदेश के अला दर्जे नेताओं की तो उनका नाम जरूर याद आएगा। अमूमन राजनीति में ऐसा ही होता है जब किसी नेता को आगे बढ़ाया जाता है, तो स्थापित नेता से उसके नाम को प्रस्तावित करवा दिया जाता है, और कल ऐसा ही हुआ. शिवराज सिंह चौहान को पार्टी द्वारा आदेश था कि मोहन यादव का नाम सीएम पद के लिए प्रस्तावित करें और उन्होंने ठीक वैसा ही किया। मोहन यादव का नाम सीएम पद के लिए अनाउंस कर दिया, लेकिन उनके फैंस निराश हैं, सोशल मिडिया में पोस्ट कर अपनी निराशा जाहिर कर रहे हैं.

लेकिन हम शिवराज सिंह को याद करें तो कहां से शुरू करें, अखिल विद्यार्थी परिषद के उस बालक की जिसने 16 साल की उम्र से राजनीति करने की ठान ली. 16 साल की उम्र में ही RSS में आए. फिर कभी पीछे मुड के नहीं देखा। आगे चल के युवा मोर्चा में आए, युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने, राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, सांसद बने, विधायक बने और मुख्यमंत्री का सफर शुरू होता है. 2005 से. शिवराज सिंह चौहान 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बने फिर 2008 फिर 2013 से 2018 तक बीच में दो साल के लिए कांग्रेस से कमलनाथ सीएम बने, 2020 में शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने.

एक लम्बे आरसे से प्रदेश की राजनीति में सक्रीय रहे. लेकिन एक सवाल जो अभी भी बना हुआ है कि शिवराज सिंह का अब क्या होगा? क्योंकि उम्र अभी सिर्फ 64 की है, और ये राजनीति से बिदाई और सन्यास लेने की तो बिल्कुल नहीं है. शिवराज सिंह चौहान राजनीति के मझे हुए खिलाडी हैं. उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो एक कदम पीछे लेते हैं तो ढाई कदम आगे, अब सवाल यही है कि क्या ढाई कदम चाल आगे चलने की ताकत उनमे रह गई है? अगर बात करें उनके राजनिति करियर की तो स्टूडेंट पॉलिटिक्स से शुरुआत की भोपाल बरकतुल्ला यूनिवर्सिटी से फिलॉसफी से MA किया। ABVP से शुरुआत कि फिर संघ से जुड़े.

साल आया 1990 का जब उन्हें पहली बार विधानसभा में उतारा गया गया सीट थी बुधनी विधानसभा जीत हासिल की. फिर साल आया 1991 अटल बिहारी वाजपई विदिशा से चुनाव लड़ने पहुंचे पहले राघव जी यहां से चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन लाल कृष्ण अडवाणी चाहते थे कि विदिशा से अटल जी चुनाव लड़े, क्योंकि वो सेफ सीट थी. अटल बिहारी यहां से चुनाव लड़ते हैं और उनको जीताने के लिए एक लड़का मेहनत करता है और उन्हें चुनाव जीता देता है. क्योंकि अटल बिहारी लखनऊ से भी चुनाव जीत कर आए थे तो वो लखनऊ की सीट को अपने पास रखना चाहते थे. विदिशा सीट छोड़ देते हैं लेकिन अटल जी की नजर तो शिवराज सिंह पर पड़ चुकी थी. अच्छा लड़का है मेहनती है. विदिशा लोकसभा सीट से उन्हें टिकट मिलता है. शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीतकर दिल्ली की राजनीति करने लगते हैं. यहां उनकी मुलाकात बीजेपी के बड़े नेताओं से होती है. संगठन में अच्छी पकड़ बनाते हैं. युवा मोर्चा की राजनीति में सक्रीय थे ही.

एक दौर था जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की तूती बोलती थी दो बार के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के ऊपर काल बनकर आती हैं उमा भारती, दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार का तमगा देती हैं. इस वक़्त भी शिवराज सिंह चौहान अपना एक पैर केंद्र में जमाया रखा तो दूसरा मध्य प्रदेश की राजनीति में लटकाया रखा. वो दौर आपको याद ही होगा कि तिरंगा यात्रा निकालने के कारण उमा भारती के ऊपर मुकदमा हुआ उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ता है. बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री की शपथ लेते हैं. ये भारतीय जनता पार्टी के लिए भूचाल का दौर था पार्टी बिखरी हुई थी. फिर केंद्रीय नेतृत्व शिवराज को एमपी मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेता है. शिवराज को प्रदेश में भेजा जाता है. उमा भारती खूब विरोध करती हैं. उमा भारती के समर्थक विधायक पार्टी दफ्तर के अंदर तोड़ फोड़ करते हैं लेकिन शिवराज डटे रहते हैं. आलाकमान अपने फैसले में अड़ा रहता है. अंततः उमा भारती मान जाती हैं. फिर 154 के 154 विधायक के साथ सूबे के मुख्यमंत्री चुने जाते हैं.

इसके बाद उसी बुधनी विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं. बुधनी में तो यह चुनाव मुख्यमंत्री बनाने के बाद लड़ा. इससे पहले पार्टी सन्देश दे चुकी थी यही कारण था कि पार्टी उन्हें राघोगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाती है 2003 के विधानसभा चुनाव में. यह सीट दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट थी भले ही प्रदेश में उनकी इमेज मिस्टर बंटाधार की हो गई हो, लेकिन यहां के लोग उन्हें राजा साहब के नाम से बुलाती थी. इस मुकाबले में शिवराज सिंह चौहान की हार होती है. राजनितिक पंडितों की माने तो दिग्विजय सिंह के सामने शिवराज को चुनावी मैदान में उतार कर यह संकेत दे दिया गया था कि यही वो लड़का है जो दिग्विजय सिंह के खिलाफ राजनीति करेगा। फिर समय आता है 2005 का तब पहली बार मुख्यमंत्री के पद की शिवराज सिंह चौहान शपथ लेते हैं.

लेकिन अब सवाल जब आज उनकी मुख्यमंत्री पद की कुर्सी नहीं रही ऐसे में उनका क्या होगा? और जैसा की कयास लगाया जा रहा है कि उनको केंद्र की राजनीति में लाया जाएगा। अब ऐसे में प्रदेश की जनता उन्हे किस काम के लिए याद रखेगी क्या उनके जनहितकारी नीतियों जैसे लाड़ली लक्ष्मी से लेकर लाड़ली बहना योजना तक तमाम जनहितैषी नीतियों को या फिर किसानों के ऊपर चलवाई गई गोलियों या फिर व्यापम और पटवारी घोटालों के लिए. या फिर बीमारू राज्य से सुधारू राज्य तक ले जाने तक के सफर के लिए. OBC का एक बड़ा चेहरा जिसके व्यक्तित्व में नरेंद्र मोदी जैसा करिश्म तो नहीं लेकिन अपने विरोधी को बहुत आराम से साइड लगाने वाले शिवराज सिंह चौहान के लिए 2023 का चुनाव बहुत मुश्किल था. पार्टी बहुत समय से प्रदेश की सत्ता में थी पार्टी का विरोध था तमाम पत्रकार और राजनितिक पंडित यह कह रहे थी कि बीजेपी इस बार यहां मुश्किल में है.

शिवराज सिंह की लाड़ली बहना योजना का कमाल होता है और पार्टी यहां से 163 सीट के साथ सरकार बना चुकी है. यह सब तो अब आप जानते ही हैं. मुख्यमंत्री मोहन यादव बन चुके हैं. राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. अब क्या लगता है इतने बड़ा नेता क्या विधानसभा में बैठेगा उन्हें कोई मंत्री पद दिया जाएगा। मुझे नहीं लगता, राजनितिक जानकार कहते हैं कि शिवराज सिंह को केंद्र की राजनीति में लाया जाएगा और उन्हें कृषि मंत्री का पद दिया जाएगा, क्योंकि नरेंद्र सिंह तोमर कृषि मंत्री हुआ करते थे अब उन्हें विधानसभा का अध्यक्ष बना दिया गया है तो उनका पद खली है. हमने शुरू में ही आपको बताया था कि 9 साल पहले शुरू हुआ एक चक्र कृषि मंत्री के इर्द गिर्द घूमता है, वो 9 साल बाद फिर वहीं आ जाएगा जानकर तो यहां तक कहते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बनते हैं तो शिवराज को अपने मंत्री मंडल में शामिल होने के लिए कहते हैं.

शिवराज माना कर देते है. इस बार क्या करते है वो देखने वाली बात होगी। कहा ये भी जाता है कि शिवराज आलाकमान से पक्का वादा लेकर आए हैं कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्हें बनाया जाए क्योंकि वह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पहले भी रह चुके हैं. लेकिन भारतीय जनता पार्टी है जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में निर्णय लिए है. कुछ कहा नही जा सकता की क्या होने वाला है. बताया जाता है कि बहुत समय से मुख्यमंत्री के पद में रहने से पार्ट्री के अंदर उनका विरोध हो रहा था. पार्टी के ही कुछ लोग उनके पैर खींच रहे थे. 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी शीर्ष नेतृत्व से आदेश था कि मुख्यमंत्री इस बार आप नहीं होंगे। अब मध्य प्रदेश को मोहन यादव के तौर पर नया मुख्यमंत्री मिल गया हैं. हम सरकार पर नजर बनाए रखेंगे कि वो प्रदेश की भलाई के लिए क्या काम करती है. साथ ही इसमें भी कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भविष्य क्या होता है?

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