न्याज़िया
मंथन। जी हां हमारे जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है ,सब कुछ नश्वर है तो फिर कुछ पाने की ख़ुशी और खो देने का दुख कैसा ? जो आज है निश्चित रूप से वो कल नहीं होगा, भले ही वो हम हों या हमारे हालात ,सब बदल जाएगा अच्छा या बुरा कोई भी वक़्त हमेशा के लिए किसी के पास नहीं टिकता, बस सदा के लिए कुछ है तो वो हमारा प्रेम स्नेह और व्यवहार है तो क्यों न उसे ही बनाए, संवारे और निखारें जिससे ,हम हमेशा ज़िंदा रह सकें ,किसी की सुख देती यादों में ,बातों में ।
कुछ तो मौत को याद करके ही जीते हैं
यूं तो जीवन में मृत्यु की बातें करना कुछ लोगों को उदास कर देता है पर वहीं कुछ को ये एहसास भूलता ही नहीं कि मौत का क्या भरोसा कब आ जाए ,कल क्या होगा किसे पता है, जो है बस आज का ये पल है इसलिए वो खुलकर जीते हैं अपनी ज़िंदगी, इसके हर पल को एंजॉय करते हैं, वो कर गुज़रने की कोशिश करते हैं कि उन्हें याद करके उनके कामों को याद करके आने वाले पल में उनके अपने खुश हो सकें फिर चाहे वो उनके पास रहें या न रहें ।
इंसान वही जिसे सबका, सुख दुख दिखे
निःसंदेह हम जीवन का ये सच भली भांति जानते हैं पर कभी-कभी हम अपने कर्मों से ही इतना संजो लेते हैं कि उस पे थोड़ा इतराने का मन कर ही जाता है ,क्योंकि परिस्थितियां हमारे अनुकूल हो जाती हैं, हमारे कर्म हमें जी भर के प्रेम ,सुख संसाधन देते हैं और हम उनकी रौ में ये भूल जाते हैं कि कोई दुखी भी है और सुख बांटने से बढ़ता है तो दुख बांटने से कम होता है, आज किसी को हमारी ज़रूरत है तो कल हमको उसकी ज़रूरत पड़ सकती है और अति तो किसी की अच्छी होती ही नहीं फिर नश्वर चीज़ों को बढ़ाने से क्या फायदा, बढ़ाना भी है तो हम उसे बढ़ाए जो मिटे न हमारे ही नहीं सबके जीवन में सुख समृद्धि लाए। सोचिएगा ज़रूर इस बारे में फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।