The Story of Salabeg : कौन थे सालबेग? जिनकी मजार के आगे रुकती है भगवान जगन्नाथ की यात्रा!

The Story of Salabeg : ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया यानि कल 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी। इस रथ यात्रा को देखने के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जगन्नाथ पुरी पहुंचते हैं। श्रद्धालु अपने भगवान का रथ खींचने के लिए आतुर रहते हैं। इस दौरान एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है जब भगवान का रथ मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर रुक जाता है और कुछ देर रुकने के बाद यह रथ फिर आगे बढ़ जाता है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ के भक्त सालबेग की समाधि है।

क्या है सालबेग की कहानी? The Story of Salabeg

सालबेग का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता सालबेग मुगल साम्राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी यानि सूबेदार थे। सालबेग ने वृंदावन में शिक्षा ग्रहण की थी, लेकिन एक बार वे किसी काम से पुरी आए जहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की महिमा सुनी तो उनके मन में भी भगवान के दर्शन की इच्छा हुई। जब सालबेग मंदिर पहुंचे तो उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया गया, क्योंकि मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। इससे सालबेग को दुख तो हुआ, लेकिन साथ ही भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी जिज्ञासा और भक्ति भी गहरी हो गई। मंदिर में प्रवेश न कर पाने के बावजूद उन्होंने भगवान के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखी। उन्होंने भजन, कीर्तन और भगवान का नाम जपना शुरू कर दिया।

भक्त सालबेग को दर्शन देने को प्रकट हुए भगवान जगन्नाथ।

एक रात सालबेग को एक सपना आया, जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। भले ही तुम मंदिर में मेरे दर्शन न कर सके, लेकिन मैं तुम्हें दर्शन दूंगा।” सालबेग ने भगवान से पूछा, “कब?” तब भगवान ने कहा, “जब रथ यात्रा शुरू होगी, तो मेरा रथ तुम्हारे सामने रुकेगा और सबको पता चल जाएगा कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो। समय बीतता गया और एक दिन रथ यात्रा आई। जैसे ही भगवान जगन्नाथ का रथ उस स्थान पर पहुंचा, जहां सालबेग ठहरे हुए थे, रथ वहीं फंस गया। हजारों लोग मिलकर भी रथ को आगे नहीं बढ़ा पाए। तब भगवान जगन्नाथ की फूलों की माला सालबेग को पहनाई गई। तभी रथ आगे बढ़ा।

भगवान नहीं करते भक्तों के साथ भेदभाव। The Story of Salabeg

आपको बता दें कि सालबेग ने बाद में भी भगवान की सेवा की और 1646 में उनकी मृत्यु हो गई। पुरी के राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिसे कई लोग सालबेग की मजार भी कहते हैं। आज भी रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ कुछ देर के लिए मंदिर के सामने जरूर रुकता है। यह कहानी बताती है कि भगवान की भक्ति के लिए न तो धर्म की जरूरत होती है और न ही जाति की। जरूरत होती है सच्चे मन और आस्था की। लोगों को समझ में आ गया कि यह महज संयोग नहीं था, बल्कि भगवान ने खुद अपने भक्त को दर्शन दिए थे। पुजारियों को भी इसका अफसोस हुआ कि उसने एक सच्चे भक्त को मंदिर में प्रवेश करने से रोका था।

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