Paris Olympics 2024: मनु भाकर ने जैसे ही मेडल में निशाना लगाया, पूरा भारत ख़ुशी से झूम उठा. निशानेबाज मनु भाकर को चारों ओर से बधाइयां मिल रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें शुभकामनाएं दी. और इस जीत को ऐतिहासिक बताया।
भारतीय निशानेबाज मनु भाकर (Manu Bhaker) ने ब्रॉन्ज जीतकर भारत का मान बढ़ाया है. उनकी इस कामयाबी ने इतिहास रच दिया है. उन्होंने पेरिस ओलंपिक 2024 (Paris Olympics 2024) में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया है. मनु भाकर निशानी में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला (India’s first female shooter) बन गई हैं. बता दें कि उनका यह सफर इतना आसान नहीं रहा. आइए जानते हैं मनु भाकर की कामयाबी के इस सफर के बारे में…
कौन हैं मनु भाकर?
Who is Manu Bhaker: निशानेबाजी में भारत को मेडल दिलाने वाली मनु भाकर हरियाणा के झज्जर की रहने वाली हैं. इनका जन्म 18 फरवरी 2002 (How old is Manu Bhaker) को हुआ. छोटी उम्र से उन्होंने खेलों में गहरी रूचि दिखाई। वे शूटिंग में अपना जूनून खोजने से पहले मुक्केबाजी, स्केटिंग और टेनिस जैसे खेल भी खेल चुकी हैं.
माता-पिता का पूरा सहयोग मिलता रहा
मनु ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरी सफलता का श्रेय मेरे माता-पिता (What is the name of Manu Bhaker’s parents) को जाता है. उन्होंने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि उनके पैरेंट्स ने शुरू से ही उनका साथ दिया है. जिस खेल को मैं खेलती उस पर मेरे माता-पिता का पूरा सपोर्ट रहता था. आज जो भी मैं अपने देश के लिए कर पा रही हूं उसका श्रेय मेरे पैरेंट्स को जाता है.
पिता बॉक्सर बनाना चाहते थे
मनु के पिता रामकिशन (Ram Kishan) उन्हें बॉक्सर बनाना चाहते थे मनु के बड़े भाई बॉक्सिंग करते थे. इसलिए मनु भी भाई की राह पर चल पड़ीं। नेशनल स्तर पर उन्होंने मेडल भी जीते। एक बार प्रैक्टिस के दौरान मनु की आँख में चोट लग गई. उनकी आंख बुरी तरह सूज गई. इसके बाद उन्होंने बॉक्सिंग छोड़ने का मन बना लिया। उनकी मां सुमेधा भाकर (Sumedha Bhaker) ने उनका सपोर्ट करते हुए कहा कि जिस खेल में चोट लगे, वो नहीं खिलाएंगी। इसके बाद मनु ने मार्शल आर्ट में रूचि दिखाई। यह मनु को लगा कि इसमें चीटिंग होती है. उन्होंने उसे भी छोड़ दिया। आर्चरी, टेनिस, स्केटिंग आदि में उन्होंने अपनी प्रैक्टिस की, लेकिन उनका मन किसी में नहीं लगा.
मनु के कैसे की शूटिंग की शुरुआत?
मनु कई खेलों में अपनी रूचि दिखाई, लेकिन किसी में उनका मन नहीं लग रहा था. मनु की मां चाहती थीं कि उनकी बेटी डॉक्टर बने. मनु पढ़ाई में भी होनहार थीं. उनकी मां ने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए कोटा में कोचिंग सेंटर भी चुन लिया। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. दरअसल मनु की मां जिस स्कूल में प्रिंसिपल थीं वहां शूटिंग रेंज थी. मां ने मनु को उनके पिता के साथ शूटिंग रेंज भेजा। मनु ने जैसे ही पहला शॉट मारा कि फिजिकल टीचर अनिल जाखड़ ने उनके हुनर की पहचान कर ली.
इसके बाद एंट्री होती है फिजिकल टीचर अनिल जाखड़ की. उन्होंने मनु की मां से कहा कि आप कुछ दिनों के लिए मनु की जिम्मेदार मुझ पर सौंप दें. मैं चाहता हूं कि वो शूटिंग करे. उस समय मनु 14 साल की थीं. उसी समय रियो ओलंपिक 2016 समाप्त ही हुआ था. मनु ने अपने पिता से एक हफ्ते के अंदर शूटिंग पिस्टल लाने को कहा. पिता ने उनकी बात मानकर उन्हें शूटिंग पिस्टल दिला दी. एक साल बाद ही मनु राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर शूटिंग फेडरेशन के जूनियर प्रोग्राम में सिलेक्ट हो गईं. वहां उन्हें इंटरनेशनल मेडलिस्ट जसपाल राणा साथ मिला, जो कि वर्तमान में भी मनु के कोच हैं.
टोक्यो ओलंपिक के बाद शूटिंग छोड़ने का मन बना लिया
फिर आया साल 2020. मनु टोक्यो ओलंपिक के लिए पूरे मन से प्रैक्टिस रही थीं. उन्होंने पूरी मेहनत की लेकिन बाहर हो गईं. जिसका असर उनकी शूटिंग पर पड़ने लगा. ऐसा समय भी आया जब उन्हें नेशनल टीम में जगह लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा. मनु इस बात से बहुत हताश थीं. उन्होंने उदास होकर अपनी पिस्टल आलमारी में रख दी. इसके बाद उन्होंने विदेश जाकर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स का करने की इच्छा जाहिर की. उनकी मां ने इसके लिए भी हामी भर दी. लेकिन मनु ज्यादा दिन शूटिंग पिस्टल से दूर नहीं रह पाईं। उन्होंने आलमारी से पिस्टल निकालकर फिर से जसपाल राणा को जॉइन कर लिया। जिसका परिणाम आज पूरा देश देख रहा है.
पीएम मोदी ने दी बधाई
मनु के कांस्य जीतने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें जीत की बधाई दी और उनकी इस जीत को ऐतिहासिक बताया है. पीएम मोदी ने मनु भाकर की सफलता को अविश्वसनीय उपलब्धि कहा है. उन्होंने ‘X’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि बहुत अच्छा, पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत का पहला पदक जीतने के लिए! कांस्य पदक के लिए बधाई। यह सफलता इसलिए और भी खास है क्योंकि वह भारत के लिए शूटिंग में पदक जीतने वाली पहली महिला बन गईं हैं. एक अविश्वसनीय उपलब्धि।