Election 2023: काका जोगिन्दर सिंह का जन्म लाहौर में (1918) हुआ था. तब देश का विभाजन नहीं हुआ था. बंटवारे के बाद वो बिहार के भागलपुर आ गए. इसके बाद से ही उन्होंने चुनाव लड़ना शुरू किया। इन्हे धरती पकड़ के नाम से भी जाना जाता है.
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, जैसे बड़े राज्यों में इन दिनों विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. जिसकी तैयारी शुरू हो गई है. अब वोटिंग का इंतजार है. तमाम राज्यों में हजारों से ज्यादा प्रत्याशी हैं, जो अपनी किस्मत आजमाएंगे। इसी बीच हम आपको ऐसे व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं, जिसने देश में सबसे ज्यादा बार चुनाव लड़े हैं. लेकिन जीत एक भी बार नहीं पाए. यहां तक कि ये राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं.
बड़े फेमस हैं धरती पकड़
दरअसल काका कपड़ा व्यवसायी थे. इनके चर्चा में आने का सबसे बड़ा कारण ही चुनाव लड़ना है। और सब इन्हे धरती पकड़ के नाम से जानते हैं. हालांकि अब ये इस दुनिया में नहीं रहे.
एक बार काका बरेली की बाजार में हर आने-जाने वाले व्यक्ति का मुँह मीठा करा रहे थे. मुँह मीठा कराने वाले काका चुनाव में अपनी हार सुनिश्चित कराने के लिए चुनाव लड़ते थे. उनके बेटे का कहना था कि उनका एक ही नशा था कि चुनाव लड़कर रिकॉर्ड कायम करना। इसी के चलते वो विधायक से लेकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुके हैं. एक बार तो उन्हें तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू ने भी बरेली से चुनाव लड़ने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और निर्दलीय चुनाव लड़ा. उनका चुनाव लड़ने का जज्बा ऐसा था कि वो किसी भी राज्य में होने वाले चुनाव में लड़ने पहुंच जाते थे.
कितनी बार चुनाव लड़ चुके हैं काका?
कोई भी आम इंसान ज्यादा से ज्यादा कितनी बार चुनाव लड़ सकता है, एक वक्त ऐसा आता है जब वो अपनी हार से तंग आकर चुनाव लड़ना ही बंद कर देता है. लेकिन धरती पकड़ काका के साथ ऐसा नहीं है. इन्होंने देश के तमाम राज्यों में होने वाले चुनाव में हिस्सा लिया। काका 282 बार से ज्यादा चुनाव लड़ चुके हैं.
उन्हें हर बार आने वाले चुनाव का इंतज़ार रहता था. चुनाव आते ही वो सबसे पहले जाकर अपना नामांकन दाखिल करते थे. उनका कहना था कि वो लोकतंत्र और आम आदमी की अहमियत बताने के लिए ऐसा करते हैं. भागलपुर में लोगों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए उन्होंने नलकूप लगवाए, यही वजह है कि उन्हें धरती पकड़ का नाम दिया गया.
किसी भी दल से टिकट लेकर चुनाव लड़ना नामर्दी मानते थे
काका का एक ही वसूल था कि वो किसी भी दल से चुनाव नहीं लड़ते थे. उनका कहना था कि ये एक नामर्दी है. काका ने राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के खिलाफ भी पर्चा भरा था. तब इन पदों पर चुनाव निर्विरोध होता था, लेकिन काका के चलते नहीं हो सका. यह भी कहा जाता है कि उनसे प्रभावित होकर दूसरे लोगों की चुनाव लड़ने की लत को देखते हुए चुनाव आयोग ने किसी प्रत्याशी के दो से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने पर रोंक दी.