33 साल बाद राजगढ़ लौटे दिग्विजय सिंह का क्या होगा?

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लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में छिंदवाड़ा, द्वितीय में खजुराहो तो वहीं तृतीय चरण में राजगढ़ में सियासी पारा ताज़ा मौसमी पारे से भी गर्म है।यहां कॉंग्रेस से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के उतरने से मुकाबला दिलचस्प है। और दिलचस्प, इसलिए भी क्योंकि 33 साल बाद दिग्विजय सिंह इस सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. दिग्विजय सिंह को यहां की जनता प्यार से दिग्गी राजा कहती है. दिग्विजय सिंह धुंआधार प्रचार में जुटे हुए हैं, और लगातार बीजेपी पर जुबानी प्रहार कर रहे हैं। साथ ही साथ बता भी रहे हैं कि अगर राजगढ़ की जनता उन्हें चुनती है तो अपनी लोकसभा के लिए क्या- क्या करने वाले हैं.


भारतीय जनता पार्टी ने यहां से दो बार के सांसद रोडमल नागर को मैदान- ए-चुनाव में उतारा है. 1984 और 1991 के बाद दिग्विजय खुद तीसरी बार यहां से ताल ठोक रहे हैं, और जम कर ठोक रहे हैं. 77 साल के दिग्विजय सिंह पद यात्रा कर अपने लिए वोट मांग रहे हैं. राजगढ़ लोकसभा सीट की बात करें तो यहां की राजनीति कई मामलों में बेहद खास है, यहां पार्टी की राजनीति का असर कम और क्षेत्र में मौजूद किलों का असर ज्यादा दिखाई देता है. राघोगढ़ राजघराने से दिग्विजय सिंह यहां से दो बार सांसद चुने गए, उनके भाई लक्ष्मण सिंह यहां से चार बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं. इनके अलावा यहां से नरसिंहगढ़ के राजा भानु प्रकाश सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज कर चुके हैं.


दिग्विजय सिंह कहते फिर रहे हैं कि मैं 33 साल बाद अपनी कर्मभूमि राजगढ़ लौटा हूं. लेकिन इन तीन दशकों में यहां कुछ नहीं बदला. खैर वो ये कहते वक़्त शायद यह भूल गए थे उनके भाई लक्ष्मण सिंह चार बार लगातार इसी सीट से सांसद रहे. और उनके बाद 2009 में एक बार फिर से कांग्रेस का सांसद चुना गया. राजगढ़ लोकसभा सीट को राजगढ़, गुना और आगर मालवा के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनाया गया है. इस लोकसभा सीट में कुल आठ विधानसभाएं हैं जिनमें चाचौरा, राघौगढ़, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर और सुसनेर शामिल हैं. इन सभी विधानसभाओं में सिर्फ 2 पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि बाकी पर बीजेपी का । जीत कठिन लग रही है लेकिन कांग्रेस की यहां से उम्मीद का कारण दिग्विजय सिंह ही हैं.
बात जब इतने हाई प्रोफाइल मुकाबले की हो और जुबानी जंग न हो ऐसा मुमकिन नहीं। आपको वो अमित शाह वाला राजगढ़ दौरा तो याद होगा, जिसमें शाह दिग्विजय सिंह पर जमकर बरसे थे. इस दौरान गृह मंत्री ने शायराना अंदाज मे दिग्विजय सिंह को राजनीति से संन्यास दिलाने की अपील की थी. यदि भूल गए हों तो फिर से देखिए।


शाह के इस बयान पर पलटवार करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अमित शाह मुझसे इतने प्रभावित है कि 15 मिनट के भाषण में 17 बार मेरा नाम लिया, दिग्विजय सिंह ने कहा कि सपने में भी उन्हें मै नजर आता हूं ।


दिग्विजय सिंह टिकट फाइनल होने के साथ ही पद यात्रा में जुट गए थे. हर विधानसभा के हर गांव में घूम–घूम कर पद यात्रा कर रहें हैं, जिस भी गांव में रात हो जाती है. वही गांव उनका बसेरा होता है. क्षेत्र की जनता भी कहते फिर रही है कि दिग्विजय सिंह ने इस क्षेत्र को बहुत कुछ दिया है, आज हमारा फर्ज बनता है कि उनको, उनके आखिरी चुनाव में जीता कर लोकसभा भेजें.

क्योंकि दिग्विजय सिंह के बेटे जय वर्धन सिंह खुद ऐसा कह रहे हैं कि उनका ये आखिरी चुनाव होगा. भले ही राजगढ़ दिग्विजय सिंह का गढ़ कहा जाता रहा है, लेकिन यहां से दिग्विजय सिंह का पहले जैसा न वर्चस्व है, और न ही यहां के समीकरण पहले जैसे। हाल में ही हुए विधानसभा चुनाव इसका प्रमाण हैं, जिसमें एक सीट पर खुद उनके बेटे जयवर्धन सिंह, दूसरी सुसनेर से भैरों सिंह बापू काबिज हुए हैं, जो खुद के दम पर चुनाव जीत कर आए हैं।
दूसरा बीजेपी ने जिन रोडमल नागर को अपना उम्मीदवार बनाया है वो आरएसएस के बहुत करीबी माने जातें है और आरएसएस के लिए एक कहावत खूब प्रचलित है कि वो आए और जीता के चले गए. आसान भाषा में समझा देते हैं आरएसएस अपना चुनावी अभियान बहुत ही खुफिया तरीके से चलाती है, यूं कहें कि
छापा मार युद्ध करती है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या दिग्विजय सिंह अपना किला बचाने में कामयाब हो पाएंगे। आप क्या सोचते हैं कमेंट में जरूर बताइए

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