Civil Disobedience Movement:12 मार्च का दिन भारतीय इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसी दिन महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरुआत की थी, जिसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है इसे दांडी यात्रा, दांडी मार्च य नमक सत्याग्रह भी कहा जाता है। यह आंदोलन 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चला था। इस नमक सत्याग्रह के साथ ही देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
क्यों हुआ था नमक सत्याग्रह
आपको शायद यह जानकर हैरानी होगी, लेकिन एक समय अंग्रेजों का एक काला कानून था, जिसके अनुसार आम भारतीय ना तो नाम का अधिक संग्रहण कर सकता था, ना नमक बेच सकता था, इसमें केवल ब्रिटीशर्स का ही एकाधिकार था, जिसके कारण भारतीयों को अंग्रेजों से नमक खरीदना पड़ता था, अब एक तो वैसे भारतीय के हालत खराब थे, उन्हें नमक जैसी आधारभूत चीज भी बड़े ऊंचे दामों पर अंग्रेजों से खरीदनी पद रही थी, महात्मा गांधी ने इसी ब्रिटिश एकाधिकार के विरूद्ध नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रारंभ होने के और भी कई कारण थे, जिनमें प्रमुख था साइमन कमीशन की सिफारिशें।
नमक बनाकर तोड़ा कानून
महात्मा गांधी ने अपने साबरमती आश्रम से से 240 किलोमीटर दूर अरब सागर के तट पर स्थित दांडी तक पदमार्च किया, और समुद्र के किनारे एक मुट्ठी नमक हाथों में उठाकर ब्रिटिश सरकार को ललकारा, उन्होंने समुद्र के नमक को क्रिस्टलीकरण करके नमक बनाकर, अंग्रेजों का नमक कानून तोड़ा। गांधी जी दांडी यात्रा की शुरुआत अपने 79 साथियों के साथ की थी, लेकिन आगे उनके साथ यात्रा में हजारों लोग जुड़ने लगे, नमक बनाने के गांधीजी को उनके अनुयायियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे देश में फैल गया
गांधी जी की देखा-देखी उनके अनुयायियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी दांडी के तर्ज पर यात्राएं निकाली और मुंबई, कराची समेत देश के अन्य स्थानों पर अंग्रेजों का नमक कानून तोड़ा। तमिलनाडु में सी. राजागोपालाचारी ने त्रिचिरापल्ली से लेकर वेदारण्यम तक एक मार्च की शुरुआत की थी, इसी तरह सरोजिनी नायडू ने गुजरात के धरसाना में ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण वाले एक डिपो तक शांतिपूर्ण मार्च निकाला। इसी तरह यह आंदोलन देश भर में फैल गया, हर जाति, वर्ग, उम्र के लाखों लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे। देश के विभिन्न जगहों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में तीन सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई और 2 लोगों की मृत्यु भी हुई, अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर द्वारा भी यह घटना दर्ज की गई, जिसके बाद इस घटना की तरफ विश्व समुदाय का ध्यान गया।
क्यों खत्म हुआ आंदोलन
नवंबर 1930 में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन सुधारों पर विचार करने के लिए, लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन बुलाया, देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया, लेकिन भारतीय नरेशों, और कुछ दूसरे राजनैतिक दलों के सदस्यों ने इसमें भाग लिया था, लेकिन यह बैठक बेनतीजा निकली, ब्रिटिश सरकार भी जानती थी कांग्रेस की भागीदारी के बिना भारत में कोई भी संवैधानिक सुधार लागू नहीं किया जा सकता है। 1931 के शुरुआत में ही ब्रिटिश भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने महात्मा गांधी को मनाने का प्रयास किया, जिसके क्रम ने उन सभी राजनैतिक बंदियों अर्थात आंदोलनकारियों को जिन पर हिंसा का आरोप नहीं था, छोड़ देने का वादा किया गया, बदले में कांग्रेस को यह आंदोलन बंद करना था। गांधी जी को जनवरी 1931 में जेल से रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उनकी वायसराय से मुलाक़ात हुई, इस मुलाकात में भविष्य में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के भाग लेने और आंदोलन समाप्त कर देने की सहमति बनी, यही घटना इतिहास में ‘गांधी-इरविन समझौता’ के नाम से जानी जाति है।
1931 में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के कराची सम्मेलन में, इस आंदोलन को खत्म करने का निर्णय किया गया, और गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए कांग्रेस प्रतिनिधि के तौर पर गांधी जी चुना गया, इस आंदोलन को यूँ खत्म किए जाने को लेकर, कांग्रेस के कई राष्ट्रवादी नेता नाखुश थे, लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस का यह आंदोलन समाप्त हो गया।