विठोबा-पुंडलिक कथा: जानें भक्त की प्रतीक्षा में ईंट पर क्यों खड़े रहे भगवान श्रीकृष्ण


Vithoba-Pundalik Story Hindi Mein: महाराष्ट्र के पंढरपुर में जहाँ विठोबा-रुक्मिणी का भव्य मंदिर स्थित है। वहाँ आषाढ़ी एकादशी के दिन लाखों भक्त, इस पवित्र तीर्थ में विट्ठल-रुक्मिणी के दर्शन के लिए लाखों वारी भक्त पैदल चलकर वहां पहुंचते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं। यह संत नामदेव, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, संत एकनाथ जैसे भक्तों की भूमि है। विट्ठल-रुक्मिणी की कथा, कोई पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि एक लोककथा है, जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त पुंडलिक की भक्ति और कर्तव्य भावना से प्रसन्न होकर,अपने उस भक्त के घर पर एक ईंट पर खड़े होते हैं।

कौन था भक्त पुंडलिक

5वीं-6वीं शताब्दी में, भीमा-चंद्रभागा नदियों के क्षेत्र स्थित डिंडीरवन के जंगलों में, एक भक्त पुंडलिक अपनी पत्नी और माता-पिता, जानुदेव और मुक्ताबाई के साथ रहता था। शुरू में तो वह अपने माता-पिता का आदर करता था, पर विवाह के बाद वह धीरे-धीरे स्वार्थी और अहंकारी हो गया। उसने माता-पिता की सेवा छोड़ दी और उन्हें अपमानित करता रहता था।

तीर्थ यात्रा पर माता-पिता से कठोर व्यवहार

अपने पुत्र के इस कठोर व्यवहार से दुखी होकर माता-पिता काशी की तीर्थ यात्रा पर चल पड़े। लेकिन जब पुंडलिक की पत्नी को इसकी जानकारी लगी, तो वह भी अपने पति के साथ यात्रा पर चल पड़ी। पुंडलीक और उसकी पत्नी जहाँ घोड़े पर यात्रा कर रहे थे, वहीं पर माता-पिता पैदल चलते थे, उस पर भी वह अपने माता-पिता से अपने और पत्नी के कार्य करवाता था। हर पड़ाव पर पुंडलिक उन्हें अपमानित करता और अपने घोड़ों की सेवा में भी लगाता।

ऋषि आश्रम में हुआ आत्मबोध

यात्रा करते हुए, वे एक दिन पहुंचे महान ऋषि कुक्कुटस्वामी के आश्रम में। जहाँ उनके समूह ने दो दिनों तक रुकने का फैसला किया। रात को सब सो गए, लेकिन पुंडलिक जग रहा था। रात के समय पुंडलिक ने देखा कि सुंदर देवियों का एक समूह गंदे वस्त्रों में आया, आश्रम की सफाई की, कपड़े धोए और फिर सुंदर वस्त्र पहनकर वे पुंडलिक के पास आकर अंतर्ध्यान हो गईं।

अगली रात भी यही दृश्य हुआ। अब पुंडलिक से नहीं रहा गया। वह उनके कदमों में नतमस्तक हो गया और पूछा- आप लोग कौन हैं? तब उन देवियों ने बताया- “हम भारत की पवित्र नदियाँ गंगा-यमुना इत्यादि हैं। तीर्थयात्रियों के पाप हमारे ऊपर जमा हो जाते हैं। इसीलिए हम यहाँ आए हैं। तुम्हारे माता-पिता के साथ कठोर व्यवहार के कारण तुम सबसे बड़े पापी हो।” यह सुनकर पुंडलिक का हृदय परिवर्तन हो गया और वह अपने माता-पिता के चरणों में गिर पड़ा। अब उसने उन्हें घोड़े पर बैठाया और खुद पैदल चलने लगा। डिंडीरवन लौटने पर वह दिन-रात उनकी सेवा में लग गया। वह अपने माता-पिता की सेवा के साथ ही भगवान की भक्ति में भी लग गया।

भगवान कृष्ण का आगमन

उधर, एक दिन भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा की याद आ रही थी। राधा, गोपियाँ, ग्वाल-बाल, गायें… उन्हें सबकी याद सता रही थी। इसीलिए उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से राधा को पुनर्जीवित किया और अपने साथ बैठाकर बात करने लगे। तभी रुक्मिणी वहाँ पहुँचीं। राधा को कक्ष में भगवान कृष्ण के साथ देखकर वह क्रोधित हो गईं और डिंडीरवन की ओर चल गईं। अपने पत्नी के रूठकर चले जाने के बाद, भगवान कृष्ण, देवी रुक्मिणी की खोज में निकले। मथुरा, गोकुल, गोवर्धन इत्यादि जगह ढूंढते हुए वे चंद्रभागा नदी के किनारे पहुँचे और अंततः डिंडीरवन में रुक्मिणी जी को खोज लिया और उन्हें मना भी लिया। वहीं पास में पुंडलिक का आश्रम था। अंततः भगवान ने अपने भक्त से मिलने के लिए वहाँ जाने का फैसला किया।

पुंडलिक की भक्ति

जब भगवान कृष्ण वहाँ पहुँचे, तब पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा में लगा था। हालांकि वह जान गया था, कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उससे मिलने आए हैं। लेकिन उसने माता-पिता की सेवा को ही प्राथमकिता दी, क्योंकि प्रथम ईश्वर स्वयं माँ-बाप ही होते हैं, इसीलिए वह उनकी सेवा करता रहा। लेकिन उसके अंदर भगवान की भक्ति भी थी, इसीलिए उसने बाहर निकले बिना ही, भगवान को खड़े होने के लिए एक ईंट बाहर फेंक दी और कहा- “प्रभु, कृपया प्रतीक्षा करें, मैं अभी सेवा माता-पिता की सेवा कर रहा हूँ।” भगवान अपने भक्त की निश्छलता पर मुस्कराए। उन्होंने पुंडलिक की भक्ति को देखा और उसी ईंट पर खड़े हो गए। और उसकी माता-पिता के प्रति सेवा और भक्ति को देखकर भगवान उसी ईंट पर खड़े होकर अपने भक्त का इंतजार करने लगे।

जब विठोबा के रूप में प्रतिष्ठित हुए भगवान

माता-पिता सेवा समाप्त कर पुंडलिक बाहर आया। और वह अपने श्री प्रभु के चरणों में गिर पड़ा। उसने देरी के लिए क्षमा मांगी और भगवान से वहीं रुक जाने की प्रार्थना करने लगा। उसकी माता-पिता और भगवद भक्ति को देखकर भगवान ने उसकी बात को स्वीकार कर लिया और वहीं ईंट पर खड़े-खड़े स्थिर हो गए। कुछ समय बाद देवी रुक्मिणी भी भगवान के पास आकर मूर्तिरूप में स्थित हो गईं।

क्यों कहलाए भगवान श्रीकृष्ण, ‘विठ्ठल’

चूंकि ईंट को मराठी में विठ्ठ कहते हैं, और भगवान उस पर खड़े थे, इसीलिए तभी से वह विठ्ठल कहलाए। उनको विठोबा भी कहते हैं, जिसका अर्थ होता है पिता। अपने शरीर के पीत वर्ण के कारण ही भगवान पांडुरंग भी कहलाते हैं। इसके अलावा माँ के समान दयालु होने के कारण ही भगवान ‘माउली’ भी कहलाते हैं।

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