न्याज़िया
मंथन। आपको नहीं लगता,पोथी पढ़के विद्वान बनना और बुद्धिमान बनके विवेक से काम लेना जीवन को संवारना दोनों अलग अलग बातें हैं क्योंकि किताबें पढ़ कर हम दुनिया के इक्ज़ाम तो पास कर लेते हैं पर जब अपनी ज़िंदगी के इम्तहान की बारी आती है तो अक्सर हम फेल हो जाते हैं ,न हमारी बुद्धि काम करती है न विवेक तो आख़िर ज़िंदगी का क्या फॉर्म्युला है।
अनुभव की पोथी
क्या जिन्हें अनपढ़ की श्रेणी में रखा जाता है उन्हें ज़िंदगी जीना नहीं आता ? आता है न! क्योंकि केवल वेद पुराण पढ़ने वाला ही ज्ञानी नहीं होता कुछ लोग जीवन से भी बहुत कुछ सीखते हैं और उनका अनुभव ही उनके ज्ञान की पोथी होती है,ये वो ज्ञान होता है जिसे उन्होंने प्रैक्टिकल कर कर के प्राप्त किया होता है, तो देखा जाए तो ये ज़्यादा सटीक होता है ये हमें अपने परिणाम से भी अवगत करा देता है ,पहले से ही जो सफलता के लिए बेहद ज़रूरी है ।
क्या हम रट्टू तोता हैं
कहने को तो किताबों में हर तरह का ज्ञान निहित है लेकिन जब हम उसे समझकर आत्मसात करें तभी वो हमारे जीवन में काम आता है वरना सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाता है,रट्टू तोता बनकर हम कुछ चीज़ें याद तो कर लेते हैं लेकिन वक़्त बीतने के साथ ही वो भूलती जाती हैं और जब हम ज्ञान को आत्मसात करने की कोशिश करते हैं तो हम उसे स्मरण करते रहते हैं ,दोहराते रहते हैं जिससे वो हमें रवाँ हो जाता है उसे याद करने के लिए हमें बार बार किताब के पन्ने नहीं पलटने पड़ते ,उस ज्ञान को आत्म सात करने के लिए हमारी अपनी नीति अपना फॉर्म्युला होता है लेकिन वो फिर भूलता नहीं फिर चाहे वो किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो बस उसमें हमारी रुचि हो तो हम उसे पूरी तरह समझने की कोशिश करते हैं और बस ज्ञानी बन जाते हैं ।
ज़िंदगी का फलसफा
पर जीवन का गणित जीव से जुड़ा है इसलिए इसमें भावनाएं निहित होती हैं जो कोमल होती हैं और इसे समझने के लिए हमें बुद्धि और विवेक दोनों की आवश्यकता होती है ताकि हम ऐसे निर्णय ले सकें कि जिससे कोई आहत न हो और हमारा उद्देश्य भी पूरा हो जाए जीवन के उतार चढ़ाव , ग़म और ख़ुशी में ऐसा तालमेल हो कि ज़िंदगी के दो पहलू होने के बावजूद एक हमें दुखों से तोड़ न दे और दूसरा हमें अहंकार में बहका न दे ,हम खुश रहे और खुश रख सकें और जीवन में खुशहाली ही हमारी बुद्धिमत्ता की पहचान बनती है। तो सोचिएगा ज़रूर इस बारे में फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।