History Of Bagheli Language: भारत के हृदय में स्थित मध्यप्रदेश में कई बोलियाँ बोलीं जाती हैं, उन्हीं में से एक है बघेली, जो मुख्यतः दक्षिण-पूर्वी मध्यप्रदेश के रीवा और शहडोल संभाग में बोली जाती है। तो चलिए आज हम जानते हैं, अपनी बघेली भाषा की उत्पत्ति और विकास के बारे में।
हिंदी भाषा की उत्पत्ति | Origin of Hindi Language
लेकिन बघेली को जानने से पहले आइए थोड़ा हम हिंदी के बारे में जान लेते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार, हिंदी की उत्पत्ति मुख्यतः अपभ्रंश से हुई है, हालांकि इसके विकसित होने में कई सारे कारक हैं। आज के खड़ी बोली का विकास दिल्ली के आस-पास हुआ है, जहाँ शौरसैनी का प्रभाव था, और शौरसैनी से उत्पन्न हुईं, ब्रजभाषा और बुन्देली समेत पश्चिमी हिंदी की कई बोली और भाषा। इन्हीं पश्चिमी बोलियों के पूर्वक्षेत्र में जो बोलियाँ प्रचलित रहीं, उन्हें पूर्वी-हिंदी कहा गया है। पूर्वी हिंदी की उत्पत्ति अर्धमागधी प्राकृत से हुई है। भगवान महावीर के शिष्यों ने उनके उपदेशों का संकलन अर्धमागधी भाषा में ही किया है, जिसके कारण इसे जैन प्राकृत और जैन अपभ्रंश भी कहा कहा जाता है।
बघेली भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई | How did the Bagheli language originate
तो इसी अर्धमागधी भाषा से उत्पत्ति हुई पूर्वी हिंदी की। जिसकी अवधी, छत्तीसगढ़ी और बघेली प्रमुख बोलियाँ हैं। जबकि बिहार में बोली जाने वालीं भोजपुरी और मगही जैसी भाषाओं की उत्पत्ति मागधीप्राकृत से हुई है। शौरसैनी और मागधी भाषा क्षेत्र के मध्य में स्थित होने के कारण पूर्वी हिंदी की बोलियों पर इन दोनों ही भाषाओं से निकली हुई बोलियों का प्रभाव है।
रीवा की बोली को बघेली कब कहा गया | When was the dialect of Rewa called Bagheli
तो इस तरह हमारी बघेली भाषा की उत्पत्ति हुई, अर्ध मागधी प्राकृत से, इसका स्वरूप करीब आठवीं शताब्दी से हमें मिलने लगता है। यह बोली अवध प्रांत के दक्षिण स्थित क्षेत्रों में बोली जाती थी, बघेला क्षत्रियों द्वारा शासित होने के कारण ही इस क्षेत्र को बघेलखंड बोलते हैं। इसीलिए बघेलखंड में बोली जाने वाली यह भाषा बनी बघेलखंडी और आगे चलकर यह बन गई बघेली, भूतपूर्व रीवा रियासत में प्रचलित इस भाषा को रिमही और रिमहाई भी कहा जाता है।
‘रीवा’ क्षेत्र की भाषा को बघेली क्यों कहते हैं | Why is the language of ‘Rewa’ region called Bagheli
दरसल प्रशासन में सुगमता की दृष्टि से 1871 में ब्रिटीशर्स ने बुंदेलखंड एजेंसी से- रीवा, नागौद, मैहर, कोठी और सोहावल समेत कई रियासतों को अलगकर एक नई एजेंसी का निर्माण किया, जिसका मुख्यालय सतना को बनाया गया। चूंकि इस एजेंसी का अधिकांश क्षेत्र बघेलों के आधिपत्य में था, इसीलिए बुंदेलखंड के तर्ज में इसे बघेलखंड एजेंसी कहा गया, तभी से यह क्षेत्र बघेलखंड के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि रीवा क्षेत्र के लिए बघेलखंड शब्द का सबसे पहले जिक्र पेशवा बाजीराव के एक पत्र में आया है, जो 1728 में उन्होंने अपने छोटे भाई चीमाजी को लिखा था, उसमें रीवा रियासत के क्षेत्रों को बघेलखंड ही कहा है, पर औपचारिक रूप से बघेलखंड शब्द का चलन बघेलखंड एजेंसी स्थापित होने के बाद ही शुरू हुआ।
बघेली का नामकरण किसने किया | Who named Bagheli
रीवा रियासत में बोली जाने भाषा को पहले क्या कहा जाता था, यह हम रिफ्रेन्सेस के अभाव में नहीं बता सकते हैं, लेकिन इस भाषा को पहली बार बघेली बोला था, सुप्रसिद्ध भाषाविद जॉर्ज ग्रियर्सन ने। जॉर्ज ग्रियर्सन ने ही पहली बार भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण किया था और बघेलखंड एजेंसी में बोले जाने वाली इस भाषा को बुन्देली के तर्ज पर बघेली कहा था। और इस तरह हमारी भाषा को नाम मिला बघेली। इसका जिक्र उन्होंने 1904 में प्रकाशित अपनी किताब “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” नाम की अपनी किताब में भी किया है।
अवधी और बघेली में क्या समानताएं हैं | What are the similarities between Awadhi and Bagheli
अवधी और बघेली में बहुत ज्यादा साम्यता है, इसीलिए कुछ विद्वान बघेली को अवधी की एक उपबोली मानते हैं, लेकिन कई बघेली को अवधी ही मानते हैं, जो अवध प्रांत के नीचे दक्षिणी क्षेत्रों में प्रचलित है। अवधी और बघेली के बीच की विभाजक रेखा यमुना नदी को माना जाता है, जो फतेहपुर बांदा होती हुई, प्रयाग के निकट गंगा में मिल जाती है। लेकिन यह आकलन बहुत सटीक नहीं है, क्योंकि फतेहपुर में यमुना के उत्तरी किनारे के क्षेत्रों में तिरहारी बोली जाती है, जिसमें बघेली का मिश्रण हैं और इलाहाबाद के दक्षिण-पूर्व की भाषा को बघेली को बोला जाता है पर उसमें अवधी मिश्रित है।
बघेली भाषा की क्या विशेषताएं हैं | What are the features of Bagheli language
दरसल बघेली में अवधी की ही तरह तालव्य वाला “श” नहीं होता है, जबकि षट्कोण वाले “ष” का प्रयोग, “ख” की जगह प्रयुक्त होता था। इसीलिए केवल “स” ही था, जो तीनों की जगह पर काम करता था। इसी तरह अवधी के कई शब्दों में “ल” और “ड़” की जगह “र” प्रयुक्त होता है, इसी तरह बघेली में भी होता है। जैसे- जलना, जरना हो जाता है और फलना, फरना हो जाता है।
बघेली की एक और विशेषता है जिसकी वजह से इसको पहचाना जा सकता है और वह इसका अनुस्वर, जैसे हिंदी में “झूठ” बोला जाता है, लेकिन बघेली भाषा में अनुस्वर अर्थात चंद्रबिंदु के कारण यह हो जाता है “झूँठ”, इसी तरह यहाँ हाथ को हाँथ, और हाथी को हाँथी कहा जाता है और भी कई उदाहरण हैं।
अवधी और बघेली में क्या अंतर है | What is the difference between Awadhi and Bagheli
ऐसा नहीं है अवधी और बघेली में केवल साम्यता ही है, इनमें कुछ अंतर भी है। जैसी अवधी का “व” बघेली भाषा में “ब” में परिवर्तित हो जाता है। जैसे अवधी का “जवाब”, बघेली में “जबाब” हो जाता है। “आवाज”, “आबाज” बन जाता है। हालांकि डॉ बाबूराम सक्सेना इसे स्वीकार नहीं करते उनके अनुसार, “व” की जगह “ब” का प्रयोग अवधी की कई उपबोलियों में मिलता है। लेकिन बघेली की कुछ विशेषताओं का अवधी में सर्वथा आभाव है। बघेली के कई विशेषण शब्दों में “हा” प्रयुक्त होता है, जैसे “नीक” जिसका अर्थ सुंदर और अच्छा होता है। बघेली में नीक की जगह निकहा हो जाता है, “अधिक” अधिकहा हो जाता है। जबकि अवधी में बहुधा इस विशेषण का आभाव होता है। जबकि इसके उलट भोजपुरी भाषा में निकहा और निकहन दोनों शब्द प्रयुक्त होता है। इसी तरह किसी को आदरार्थ बघेली में “देई” शब्द प्रयुक्त होता है, लेकिन यह शब्द भी अवधी में नदारद होता है, जबकि इसके उलट यह शब्द भोजपुरी में एक बिन्दु के साथ मिलता है। जैसी बघेली का “अपना देई” शब्द भोजपुरी में “रउआ देईं” हो जाता है। इसीलिए सक्सेना जी मानते हैं, बघेली और अवधी में यहीं अंतर हो जाता है और बघेली में यह अतिरिक्त विशेषण भोजपुरी से मिर्जापुर के रास्ते ही आएं होंगे।
बघेली में साहित्य का अभाव क्यों है | Why is there a lack of literature in Bagheli
लेकिन इतनी विशेषणयुक्त होने के बाद बघेली में अवधी की तरह वृहद और उच्च स्तर का साहित्य नहीं रचा गया। इसका साहित्य ज्यादातर फुटकर है, हालांकि रामचरित मानस और पद्मावत जैसे ग्रंथों को पढ़ते हुए कई बार, कई जगह पर बघेली का आभाष हो जाता है। लेकिन फिर भी इन्हें अवधी की रचना ही माना जाता है, जबकि मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जिस बांदा क्षेत्र से आते थे, वहाँ की भाषा कुछ बुंदेली का पुट लिए बघेली ही है, और रचयिता ने अपनी मातृभाषा ना प्रयोग की हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। लेकिन फिर भी मानस को हम बघेली की स्वतंत्र रचना नहीं कह सकते हैं।
बघेली भाषा में साहित्य का आभाव क्यों है | Why is there a lack of literature in the Bagheli language
यहाँ रीवा रियासत के राजा-महाराजा भी साहित्य अनुरागी थे, कईयों ने तो काव्य भी रचा है, लेकिन इन काव्यों की भाषा मुख्यतः ब्रजभाषा है, जो उस समय ज्यादातर प्रचलित थी, क्योंकि उस युग के ज्यादातर ग्रंथ श्रीकृष्ण को समर्पित थे, इसीलिए उनका गुणगान ब्रजभाषा में ही किया जाता था। इसीलिए बघेली मूलतः उपेक्षित ही रही। लेकिन ऐसा नहीं है साहित्य इसमें नहीं रचा गया। इसी तरह पंडित भवानीदीन शुक्ल ने वाल्मीकि रामायण की टीका बघेली भाषा में की थी। डॉ कैलाग ने अपनी किताब “ए ग्रामर ऑफ दि हिंदी लैंग्वेज” किताब में बघेली भाषा के व्याकरण की विवेचना भी की है। महाराज विश्वनाथ सिंह की दो कृतियों “परधर्मनिर्णय” और “विश्वनाथप्रकाश” बघेली में ही रची गईं हैं। विश्वनाथ प्रकाश की कुछ बघेली पंक्तियाँ देखिए-
“रोग केका कही, जेमा अनेक प्रकार के पीड़ा होई तेका रोग कही। सोग-रोग दुइ प्रकार का है-एकतो कायक है, दूसर मानस है। सरीर मा है ता कायक। तेका व्याधि कही, मन ते जो उत्पन्न होइ तेका मानसिक व्याधि कही। सो ये दोउ रोग बात, पित, कफ ते उपजत है।”
बघेली साहित्य | Bagheli literature
हालांकि विस्तृत साहित्य बघेली में भले ही नहीं रचा गया हो। लोकसाहित्य की रचना यहाँ प्रचुरमात्रा में हुई है। लोकसाहित्य भी गद्य और पद्य दोनों में रचा गया। गद्य में ज्यादातर कथाएं हैं, जो भूत-प्रेत, राजा-रानी और पशु-पक्षियों से संबंधित है और ज्यादातर मनोरंजन और उपदेशात्मक दृष्टि से रची गईं हैं। जबकि दूसरा है पद्य, जिनमें भगत-फगुआ, कजरी, गैलहाई सोहर और अंजुरी समेत लोकगीत हैं। इन पद्यों में प्रेम-विरह, भक्ति, चुगली-छेड़खानी और हास्य प्रत्येक रस प्राप्त हो जाता है। इसके साथ ही कहनूत, कहावत और मुहावरों की दृष्टि से भी बघेली भाषा अत्यंत सम्पन्न है। जिनका जिक्र हमने अपने माटी कार्यक्रम के पिछले कई वीडिओ में किया और आगे भी समय-समय पर करते रहेंगे।
‘बघेली’ कहाँ बोली जाती है | Where ‘Bagheli’ is spoken
बघेली भाषा पूरे बघेलखंड के साथ ही, छोटानागपुर, छत्तीसगढ़ के चाँग-भखार और सरगुजा के क्षेत्र, पन्ना और कटनी जिले के साथ ही, इलाहाबाद के दक्षिणी हिस्से और मिर्जापुर में सोन नदी के आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है। जबकि इसकी बुन्देली मिश्रित भाषा बांदा, फतेहपुर समेत आस-पास के क्षेत्रों में प्रचलित है।