गर्भगृह क्या होता है? क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा

pran pratishtha

Consecration of Ram Mandir: अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को रामलला गर्भगृह में विराजमान होंगे। उनकी प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनको सिंहासन पर विराजित किया जाएगा। लेकिन इस पर एक सवाल यह भी उठता है कि मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा कैसे की जाती है और भगवान का गर्भगृह क्या होता है? इनका आकार कैसा होता है?

What is Sanctum Sanctorum: उत्तरप्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को भव्य समारोह आयोजित होना है. इस दिन भगवान श्रीराम अपने गर्भगृह में विराजमान होंगे। उनकी प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उन्हें सिंहासन पर विराजित किया जाएगा। हिंन्दू मंदिरों के कई भाग होते हैं, जहां देवमूर्ति की स्थापना की जाती है. इसका आकार और मूर्ति रखने की जगह न केवल तय होती है बल्कि शास्त्र के अनुसार तरीके से बनाई जाती है. जब आप मंदिर जाते हैं तो वहां देखते हैं कि एक स्थान पर भगवान की मूर्ति स्थापित होती है, उसी प्रकोष्ठ को गर्भगृह कहा जाता है.

कैसा होता है गर्भगृह?

Garbhagrih Kya Hai: आम तौर पर गर्भगृह एक खिड़की रहित और कम रोशनी वाला कक्ष होता है, जिसे जानबूझकर ऐसा बनाया जाता है ताकि भक्त के दिमाग को परमात्मा की मूर्ति रूप पर केंद्रित किया जा सके. गर्भगृह सामान्य रूप से वर्गाकार होता है और एक चबूतरे की तरह होता है. इसे ब्रम्हांड के सूक्ष्म जगत का प्रतिनिध माना जाता है. केंद्र में देवता की मूर्ति रखी जाती है. पहले गर्भगृह छोटे होता था, लेकिन समय के साथ इसका आकार बढ़ता गया.

कुछ मंदिरों में गर्भगृह वर्गाकार नहीं होता था. कुछ में आयताकार होता था. जहां एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है. कुछ प्राचीन मंदिरों में गर्भगृह को मंदिर के मुख्य तल के नीचे रखते थे. तमिल भाषा में इसे ‘करवाई’ कहा जाता है. जिसका अर्थ है गर्भगृह का आतंरिक भाग. यह मंदिर का गर्भगृह ही केंद्र है, जहां प्राथमिक देवता की छवि रहती है. गर्भगृह के एक ओर मंदिर का द्वार और तीन ओर दीवारें होती है. ये द्वार बहुत अलंकृत तरीके से बनाया जाता है.

गर्भगृह में मूर्तियां किस तरह से रखी जाती हैं?

गर्भगृह में मूर्तियों को रखने की स्थिति भगवान के अनुसार अलग-अलग होती है. भगवान विष्णु की मूर्तियां आमतौर पर पिछली दीवार के सहारे रखी जाती है. शिवलिंग की स्थापना गर्भगृह के बीचोंबीच होती है. देवतत्त्व के अनुसार गर्भगृह मंदिर का ब्रम्हस्थान होता है. भगवान की वेदी खुले हॉल में नहीं बनानी चाहिए।

बड़े हॉल में छोटा कमरा होता है, जिसमें वेदी बनाई जाती है. जिस प्रकार समवसरण की आठवीं भूमि में भव्य जीव ही प्रवेश पाते हैं उसी प्रकार गर्भगृह में भी शुद्ध वस्त्रादि पहनकर ही प्रवेश किया जाता है. शास्त्रों में कहा गया है कि अशुद्ध वस्रों में होने पर हॉल में ही दर्शन करना चाहिए। इसी बात का ध्यान रखते हुए मंदिरों में गर्भगृह बनाए जाते हैं.

क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा?

Murti ki Pran-Pratishtha: भगवान की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करने से तात्पर्य उसमें ईश्वरत्व को स्थापित करने से है. जब भी प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है तो मंत्रों का जाप करने के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. मंत्रों द्वारा भगवान का आवाहन किया जाता है. इसी समय मूर्ति की आंखें खोली जाती हैं. जिस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है पहले उसका षोडषोपचार पूजन किया जाता है. फिर हाथ में जल लेकर संकल्प करने के बाद विधि पूर्वक मूर्ति की स्थापना की जाती है. साथ ही मंत्रोच्चारण किया जाता है.

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