क्या है ‘रत्ती’? जिसका उपयोग प्राचीन काल में माप-तौल में किया जाता था

Ratti Ka Itihas: रत्ती भर भी शर्म नहीं,” “रत्ती भर अक्ल नहीं,” या “रत्ती भर परवाह नहीं”, यह शब्द हमारी रोज़मर्रा की बोलचाल में अक्सर सुनाई देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि “रत्ती” सिर्फ़ एक मुहावरा नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की माप-तौल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। आज भले ही रत्ती का उपयोग माप-तौल में कम हो गया हो, लेकिन यह हिंदी भाषा के मुहावरों और सांस्कृतिक प्रथाओं में जीवित है। आइए, जानते हैं रत्ती की वास्तविकता और इसके सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व को।

क्या है रत्ती

रत्ती एक पौधे के बीज हैं, जिन्हें गुंजा, कृष्णला या रक्तकाकचिंची के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके मटर जैसे फली में लाल-काले या सफेद-काले बीज होते हैं, जिनका वजन हमेशा एकसमान, लगभग 121.5 मिलीग्राम या 0.125 ग्राम होता है। प्रकृति का यह करिश्मा रत्ती को प्राचीन काल में माप-तौल का एक विश्वसनीय पैमाना बनाता था।

प्राचीन माप-तौल में रत्ती

जब मानकीकृत मापक यंत्र नहीं थे, तब सोने-चाँदी जैसे कीमती धातुओं और जेवरात का वजन मापने के लिए रत्ती के बीजों का उपयोग होता था। प्राचीन भारतीय माप-तौल प्रणाली में रत्ती का स्थान इस प्रकार था-

8 खसखस = 1 चावल
8 चावल = 1 रत्ती
8 रत्ती = 1 माशा
12 माशा = 1 तोला (परंपरागत 11.66 ग्राम, आधुनिक 10 ग्राम)
5 तोला = 1 छटाँक
16 छटाँक = 1 सेर
5 सेर = 1 पंसेरी
8 पंसेरी = 1 मन

हालाँकि यह प्रणाली अब कालातीत हो चुकी है, स्वर्णकार आज भी रत्ती और तोला जैसी इकाइयों का उपयोग करते हैं। रत्ती की एकरूपता ने इसे सबसे छोटी और विश्वसनीय मापक इकाई बनाया। बोलचाल में रत्ती”रत्ती भर” का अर्थ है “जरा सा” या “न्यूनतम मात्रा।” इसका उपयोग भावनाओं, गुणों या किसी चीज़ की अल्प मात्रा को व्यक्त करने के लिए होता है।

रत्ती से बने हिंदी के कई मुहावरे

यह शब्द हिंदी मुहावरों में अतिशयोक्ति के साथ प्रचलित है। कुछ उदाहरण- “तुम्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं है।” अर्थात बिल्कुल लज्जा नहीं। “रत्ती भर सत्कर्म एक मन पुण्य के बराबर है।” अर्थात छोटा सा अच्छा काम भी मूल्यवान। “इस घर में हमारी रत्ती भर भी इज्जत नहीं।” अर्थात ज़रा भी सम्मान नहीं है। पुराने समय में लोग कहते थे, “रत्ती भर नमक देना,” जिसका मतलब था बहुत थोड़ा नमक। हालाँकि अब “रत्ती भर” का प्रयोग कम हो गया है, लेकिन मुहावरों में यह आज भी जीवित है।

सांस्कृतिक और औषधीय महत्व

सांस्कृतिक उपयोग- रत्ती के बीजों की माला बच्चों को बुरी नज़र से बचाने के लिए पहनाई जाती है। यह परंपरा ग्रामीण भारत में आज भी प्रचलित है।
औषधीय उपयोग- रत्ती के बीज जहरीले होते हैं, इनमें अब्रिन नामक विष होता है, लेकिन आयुर्वेद में नियंत्रित मात्रा (1-2 बीज) में पशुओं के घावों में कीड़े मारने या उपचार के लिए उपयोग होता है। मानव उपयोग के लिए यह खतरनाक है।
प्राकृतिक विशेषता- रत्ती के बीजों का वजन और आकार हमेशा एकसमान होता है, जो प्रकृति की अनूठी देन है।

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