बद्रीनाथ धाम में कपाट बंद होने के बाद क्या होता है?

badrinaath dham

श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट आज यानी 18 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 33 मिनट पर शीतकाल के लिए बंद हो गया है। इसके पहले धाम को 15 क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया. अब धाम के कपाट भक्तों के लिए 27 अप्रैल को खुलेंगे। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कपाट बंद होने के बाद वहां कौन रहता है? क्या होता है वहां?

चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट विधि-विधान से शीतकाल में 18 नवंबर को दोपहर 3:33 बजे बंद हो गए हैं. अब अगले वर्ष 27 अप्रैल को फिर से खुलेंगे। बद्रीनाथ धाम के पुजारियों का कहना है कि धाम के मुख्य पुजारी को रावल कहते हैं. शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के मुताबिक रावल दक्षिण भारत के ब्राह्मण परिवार से होता है. यात्रा सीजन में रावल ही बद्रीनाथ की पूजा करते हैं. उनके अलावा कोई अन्य व्यक्ति बद्रीनाथ की मूर्ति को छू भी नहीं सकता है. लेकिन कपाट बंद होने के बाद रावल को भी यहां रुकने की इजाजत नहीं होती हैं. अन्य भक्तों की तरह वे भी वापस लौट आते हैं.

मान्यता है कि इसके बाद देवर्षि नारद और अन्य देवता धाम की पूजा-अर्चना का जिम्मा संभालते हैं.कपाट बंद होने वाले दिन बद्रीनाथ मंदिर को कई क्विंटल फूलों से सजाया जाता है. मुख्य पुजारी रावल पूरे गर्भगृह को फूलों से सजाते हैं. पूजा अर्चना के बाद गर्भगृह में मौजूद उद्धव और कुबेर की मूर्तियों को बाहर लाया जाता है. इसके बाद लक्ष्मी की मूर्ति को बद्रीनाथ के सानिध्य में रख देते हैं. मान्यता है कि 6 महीने तक लक्ष्मी जी यहीं रहती हैं.

घी से लिपटी रहती है भगवान की मूर्ति

कपाट बंद होने के दिन बद्रीनाथ की मूर्ति को घी में डुबोए गए ऊनी कंबल से लपेटा जाता है. ये ऊनी कंबल भारत के आखिरी गांव माणा की महिलाओं द्वारा बुनकर तैयार किया जाता है. इसे घृत कंबल कहते हैं. बद्रीनाथ के रावल इस पर घी लगाते हैं और फिर कंबल से मूर्ति को ढंकते हैं. इसके बाद श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली जय-जयकार के साथ बद्रीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो जाते हैं.

बद्रीनाथ मंदिर कौन से भगवान पूजे जाते हैं.

बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है. कहा है कि आठवीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ को एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया था. बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के साथ भगवान के नर और नारायण रूप की पूजा होती है. क्योंकि यहां भगवान ने नर नारायण के रूप में तपस्या की थी. इसलिए मंदिर के गर्भगृह में श्रीहरि विष्णु के साथ नर नारायण की ध्यानावस्था में मूर्ति स्थित है. भगवान की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है. जिसकी ऊंचाई लगभग 1 मीटर है.

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