Hindi Story: अंदाज़ा नहीं था कि चलते -चलते यहाँ पहुँच जाऊंगीं लेकिन एक वक़्त वो भी था जब मै वहाँ पहुँच गई थी जहाँ जाना मेरे डरावने सपने के सच हो जाने जैसा था फिर भी मैंने अपने दिल को समझा लिया था क्योंकि वहाँ दुख दर्द के मारे वो लोग थे जिनको मेरी ज़रूरत थी ,जिन्हें देखकर मैंने मान लिया कि शायद उन्हीं के आस पास मेरी भी मंज़िल है ,दरअसल मै कुछ दिनों पहले तक एक बड़े से ज्वेलरी शो रूम में काम करती थी लेकिन एक दिन वहां चोरी हो गई और पूरे स्टाफ के साथ मेरी भी तलाशी ली जानी थी, मै चुपचाप लाइन में खड़ी हो गई और जब मेरी जेब टटोली गई तो उसमें वही हार मिल गया जो चोरी हुआ था , मै ख़ुद हैरान रह गई मैंने लाख मना किया कि मैंने चोरी नहीं की है पर मुझे चोरी के इल्ज़ाम में सज़ा हो गई ,जेल पहुँची तो लगा अब कैसे जियूँगी इन बुरे लोगों के बीच जिन्होंने सच में जुर्म किया है ,मै बहोत परेशान और मायूस बैठी थी खाना आया था पर मैंने वो भी नहीं खाया था, सोचा अब जीने से क्या फायदा मर ही जाऊं तो अच्छा है ,सज़ा काटने के बाद भी लोग मुझे अब आम ज़िंदगी तो जीने नहीं देंगे ,चोरी का ये दाग़ तो अब मेरे दामन से कभी धुलेगा नहीं। ये सब सोच ही रही थी कि एक बूढी सी औरत मेरे पास आई ,मानो मेरे दिल की उधेड़ बुन उसको सुनाई दे गई हो और वो मेरे सवालों का जवाब देने आई हो , कहने लगी ‘बेटी अभी तुम जवान हो इतनी जल्दी मरोगी नहीं हाँ बीमार ज़रूर पड़ जाओगी इस लिए कुछ खा लो ये रात बहोत लम्बी है’ वो मुझे बहोत समझदार लगीं, तो मैंने खुद को संभालते हुए कहा माँ जी आप कैसे आईं यहाँ और कबसे हैं ,तो वो मुस्कुराते हुए बोलीं ,बेटी पहले तुम कुछ खा लो हमारी बातें तो होती रहेंगी ,मैंने बड़ी मुश्किल से खाना खाने की कोशिश की पर रुक गई और आँसू आ गए तो उन्होंने पोछे और खुद अपने हाथों से खिलाने लगीं मैंने दो चार नेवाले खा लिए पानी पी लिया फिर बोली, अब बताइये आप कौन हैं क्या किया है आपने, वो बोली ख़ून ,मेरी तो साँसे ही रुक गईं मैंने हैरानी से पुछा क्यों ? किसका ? वो बोली डरो नहीं वो मरा नहीं ज़िंदा है पर उसने मुझ पर हत्या के प्रयास का आरोप लगाया है ,पर क्यों आपने ऐसा क्यों किया ? कौन है वो ? मैंने फिर उसी लहजे में पूछा ,वो बोली अगर मै ये कोशिश न करती तो वो मुझे मार डालता और मेरे बच्चे को भी, वो मेरा पति है इतना पीता है कि उसे ये भी याद नहीं रहता कि कौन उसका क्या लगता है कोई दीन धरम ,कोई ईमान नहीं है उसका ,मैंने यहाँ बरसों बिता दिए हैं अब तो पता भी नहीं कि वो ज़िंदा है या सच में मर गया ,बेटे को तो मै अपनी बहन को सौंप आई थी अब उसके बारे में भी मै क्या जानू कैसा है। मैंने पूछा कितना बड़ा हो गया होगा आपका बेटा ,वो बोलीं अब तो जवान हो गया होगा शायद तुम्हारे जितना। फिर वो आपसे मिलने नहीं आया कभी, मैंने झट से पूछा तो वो बोलीं मैंने ही अपनी बहन को मना किया था कि वो मुझसे मिलने कभी मेरे बेटे को लेके न आए, अब मुझे तो लिखना पढ़ना भी नहीं आता कि चिट्ठी पत्री से ही हाल चाल जान लूँ ,और यहाँ तो सभी मेरे ही जैसी औरतें हैं ,दुखियारी जिनकी ज़िंदगी क्या जेल के अंदर ,क्या बाहर ,यहाँ भी मज़दूरी करती हैं और वहाँ भी उन्हें मज़दूरी ही करना है कुछ पढ़ी लिखी होतीं तो किसी के भरोसे न होतीं और न कोई धोखा देता ,अच्छा तो मै आप लोगों को कुछ थोड़ा बहोत पढ़ना लिखना सिखा दूँ मुझे भी अच्छा लगेगा ,मैंने कहा , तो वो बड़ा खुश होके बोलीं अच्छा तुन्हें पढ़ना लिखना आता है अरे विमला ,आरती ,शोभा सुन इसे , अरे मैंने तो तुम्हारा नाम ही नहीं पूछा क्या नाम है तुम्हारा , मैंने कहा विद्या। तो वो बोलीं अच्छा सुनो .. , विद्या पढ़ी लिखी है और ये हमको भी पढ़ाने के लिए तैयार है तो सब मुस्कुराते हुए मेरे पास आ गईं और कहने लगीं विद्या तुम हमें कल से ही पढ़ाना शुरू कर दो हम यहाँ से निकल कर किसी के आसरे नहीं रहना चाहते और जिन लोगों ने हमें यहाँ पहुंचाया है उनके पास भी नहीं जाना चाहते। ..तो मैंने कहा ठीक है ,इतना कहके सब सोने चलीं गईं मै भी सोने की कोशिश करने लगी और कब आँख लग ही गई पता न चला। सुबह जगी तो देखा जेल के नियम के हिसाब से सब अपना-अपना काम कर रहीं थीं मै भी उनके साथ लग गई और सारे काम नियम से किये फिर खाना खाया और जब दोपहर में हमें आराम करने का टाइम मिला तो सब पढ़ाई करने को तैयार हुए मैंने भी देर नहीं की ये सोच कर कि मेरा जीवन किसी के काम तो आए ,मैंने एक दीवार साफ़ की और उस पर कोयले से लिख कर पढ़ाने लगी , बूढ़ी सी औरत जिन्हें सब उमा मौसी कहते थे उनके कहने पर जहाँ पहले पाँच औरते ही पढ़ने को राज़ी थीं वहीं मुझे पढ़ाते देख सभी औरते आँगन में आ गईं कुछ तो पहले से ही धूप में बैठीं थीं क्योंकि बहोत ठंड थी उस समय ख़ैर उन क़ैदी औरतों के मुस्कुराते चेहरों में मुझे उनके बचपन को टटोलती सुनहरी यादों की तस्वीर दिखी जो आज से बहोत अलग और सुन्दर थी ,इनमें से किसी ने ये अक्षर पहले देखे थे तो किसी ने इन्हें समझने की कोशिश की थी पर कामियाब नहीं हो सकीं थीं यही बातें वो एक दूसरे से कर रहीं थीं ये देखकर मै भी ज़रा स्ट्रिक्ट टीचर बन गई और ज़रा ज़ोर से कहा देखो सब अच्छे से पढ़ो अभी सबका इम्तहान भी लिया जाएगा तो सब शांत होकर मेरे साथ अक्षरों को दोहराने लगीं। कुछ देर में जेलर साहब आए और वो मुझे पढ़ाते देख बहोत खुश हुए और कुछ देर तक देखते भी रहे जब हमारी पढ़ाई खत्म हो गई तो उन्होंने मुझे बुलाके मेरा नाम पूछा ,मैंने कहा विद्या , तो कहने लगे विद्या तुम बहोत अच्छा काम कर रही हो मै तुम्हारी सज़ा कम कराने की सिफारिश करूँगा। मैंने कहा जी शुक्रिया ,इतना कहके वो चले गए पर उस दिन से उनके इसी वक़्त आने और मुझे देखते रहने के बाद दो शब्द बोलने का ये सिलसिला पूरे छै महीने बदस्तूर जारी रहा और एक दिन ऐसे ही मुझसे आकर बोले.. विद्या मुझे लगता है तुम्हारे सभी स्टूडेंट इम्तहान में अव्वल आए हैं तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा जी सर , तो वो कहने लगे चलो फिर यहाँ का काम तुम्हारा पूरा हुआ ,कल तुम्हारी रिहाई है तैयारी कर लो, तुम्हारी सज़ा थोड़ी कम कर दी गई है। ये सुनकर मै ज़रा उदास हो गई तो उन्होंने पूछा क्या हुआ तुम्हें ख़ुशी नहीं हुई मैंने कहा नहीं ऐसी बात नहीं है बस इस सोच में पड़ गई हूँ कि अब मै कहाँ जाऊँगी माँ के गुज़रने के बाद शहर आ गई थी और कुछ ही दिन नौकरी की थी कि जेल पहुँच गई अब आगे क्या होगा क्या पता ! ये सुनकर वो बोले अच्छा ऐसा करो मेरे घर चलो, मेरी माँ बीमार रहती हैं और मै उनकी ठीक से अपनी नौकरी के चलते देखभाल नहीं कर पाता हूँ , तुम मेरा फ़र्ज़ निभाने में ,थोड़ी मदद कर देना ,मै थोड़ा झिझक कर बोली लेकिन मै कैसे ? जेल से सज़ा काट कर आई लड़की को क्या आपकी माँ और आपकी सोसाइटी आपके घर में एक्सेप्ट करेगी ? तो वो बोले अरे तुम इसकी चिंता न करो वो मेरा घर है जेलर प्रकाश मल्होत्रा का और मेरा सामना रोज़ अपराधियों से ही होता है , मै सबको तो अपने घर नहीं ले जाता इसलिए मेरी माँ को भी मेरे फैसले पर कोई ऐतराज़ नहीं होगा बल्कि उन्हें फ़ख्र ही होगा। तुम बस चलने के लिए तैयार हो जाओ अगले दिन वो मुझे अपने घर लेकर गए और मैंने उनकी माँ के चरण स्पर्श किये फिर उनकी देखभाल में लग गई ,जेलर प्रकाश भी माँ को मुझे सौंपकर वापस चले गए फिर शाम को आए तो मै माँ के साथ चाय पी रही थी हम दोनों आपस में बात कर रहे थे और वो दूर से हमें खड़े देखते रहे तो मैंने आवाज़ दी अरे आप आ गए आइये न चाय तैयार है माँ ने मुझे बताया कि आप आते ही होंगे तो मैंने आपकी भी चाय बना ली ,और चाय देकर मै अंदर चली गई थोड़ी देर में लौटी तो देखा प्रकाश जी अपनी माँ का सिर दबाते हुए पूँछ रहे थे माँ तुम खुश तो हो न और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा हाँ मै बहोत खुश हूँ। मैंने उनकी ये बात सुनीं तो दिल को ज़रा तसल्ली हुई और मै फिर किचेन में चली गई कि आज रात के लिए क्या खाना बनेगा ज़रा नौकरों को समझा दूँ और फिर तबसे मै दिल ओ जान से जुट गई माँ की ख़िदमत में, वो भी मेरा पूरा ख्याल रखतीं प्रकाश जी भी, जब भी कुछ खरीदारी करते तो मुझे नहीं भूलते थे यूँ ही एक साल गुज़र गया ,शायद मैंने अपना काम ठीक से किया था माँ अब पहले से तंदरुस्त और ख़ुश रहने लगीं थीं ,एक दिन मुझसे बोलीं विद्या सुन, प्रकाश के लिए कुछ रिश्ते आए थे तो मैंने सबसे लड़की की फोटो मंगाली हैं देख तो तुझे कोई पसंद है ?तो मै बड़ी ख़ुशी -ख़ुशी आई और एक के बाद एक फोटो देखने लगी एक लड़की मुझे अच्छी लगी और मैंने माँ को बता दी तो वो हँस के बोली हाँ यही तो मुझे भी अच्छी लग रही थी तू ऐसा कर शाम को प्रकाश आए तो उसकी चाय के साथ उसे दे देना और कहना अब और देर नहीं होगी ये लड़की देख ले अच्छी लगे तो हम उनके घर चलेंगे संडे को…मैंने कहा ठीक है। शाम को जब प्रकाश जी आए तो मैंने उन्हें चाय के साथ फोटो देते हुए ऐसा ही कहा पर उन्होंने फोटो बिना ट्रे से उठाए ही कहा विद्या क्या मै तुम्हें अच्छा लगता हूँ तो मैंने भी कह दिया हाँ आप मुझे क्यों नहीं अच्छे लगेंगे आप ने मुझ पर इतना एहसान किया है मुझे नौकरी दी आसरा दिया ,तो वो बोले ‘मैंने तुम पर नहीं खुद पर एहसान किया है विद्या, मुझे तुम्हे देखने की आदत हो गई थी, अगर तुम मेरे घर न आती और मै तुम्हें अपनी आँखों के सामने न पाता तो शायद मै ज़िंदा न रहता। ये सुनकर मै खामोश रही मैंने उनसे कहा ये आप क्या कह रहे हैं ,वो बोले विद्या बस इतना बता दो क्या तुम मुझसे शादी करोगी मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े वो उन्हें पोछते हुए बोले ‘ मुझसे शादी नहीं करनी तो बोल दो , कोई ज़बरदस्ती नहीं है ‘ मैंने कहा पर मै आपके लायक नहीं हूँ ,तो उन्होंने कहा तुम मेरे लिए क्या हो अगर तुम्हे ये मालूम होता तो तुम ये कभी न कहतीं ख़ैर तुम सोच लो फिर मै माँ से बात करुँ मैंने ये सुनकर बड़ी निडरता से कहा हाँ। मै हाँ कहती हूँ ,लेकिन माँ जी कभी ऐसी लड़की को बहू नहीं बनाएंगी जो जेल से सज़ा काटके आई हो, तो वो मुस्कुराते हुए बोले थैंक्स विद्या लेकिन अभी तुम मेरी माँ को मुझसे बेहतर नहीं जानतीं ,चलो सुनलो उनका भी जवाब और वो ज़ोर से माँ को आवाज़ देते कमरे से निकल गए मै भी डरी सहमी उनके पीछे गई और पर्दे के पीछे छुप गई इतने में प्रकाश जी अपनी माँ से बोले माँ तुम क्या रोज़ -रोज़ कहती हो शादी कर लो ,शादी करलो चलो मै कर ही लेता हूँ। माँ चौक कर बोलीं अच्छा क्या तुझे लड़की पसंद आ गई है। तो उन्होंने कहा हाँ माँ एक लड़की मुझे बहोत पसंद है और शायद तुझे भी बहोत पसंद है। तो माँ बोलीं क्या कह रहा है साफ़ साफ़ बता कौन है वो ? तो प्रकाश जी ने उनके कान में कुछ कहा जिसे सुनते ही माँ जी मुझे पुकारने लगीं मैंने डरते हुए जवाब दिया तो वो कहने लगीं तू पर्दे के पीछे छुपकर हमारी बातें सुन रही थी और तुझे क्या लगता मुझे दुनिया की परख नहीं ,ये बाल मैंने धूप में सफ़ेद किये हैं ,तो सुन मुझे तू पहले दिन से बहोत पसंद है और कोई मन का अँधा ही होगा जिसे तेरे गुण न दिखेंगे इसलिए मुझे अपने बेटे की पसंद पर गर्व है और मै तुझे अपनी बहू के रूप में भी स्वीकार करती हूँ ,मुझे ज़माने की कोई परवाह नहीं। ये सुनते ही मै उनके चरणों में गिर पड़ी और उन्होंने मुझे गले से लगा लिया ,प्रकाश जी हँसते हुए बोले देखो ये ख़ुशी के आँसू बह गए हों तो मूँ मीठा कराओ ह ह ह ह । यही थी मेरी ज़िंदगी की मंज़िल जो क़िस्मत से मुझे मिल गई।
विद्या की मंज़िल
