Veerangana Laxmibai Balidaan Diwas 2024 | Author- जयंत सिंह तोमर| १८ जून की तारीख कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह झांसी की रानी का वलिदान दिवस है। इसी दिन हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। इसी दिन वाटरलू का युद्ध लड़ा गया। इसी दिन डाक्टर राममनोहर लोहिया ने गोवा में नागरिक स्वाधीनता का आन्दोलन छेड़ा।
बीते लगभग पांच सौ वर्ष में १८ जून इतिहास का निर्णायक मोड़ साबित हुई। बुन्देलखण्ड , ग्वालियर, मेवाड़ सहित न केवल समूचा भारतवर्ष बल्कि दुनिया भर में इस दिन को लोग अपने अपने ढंग से याद करते हैं।
बिस्मिल की लिखी रचना ‘ सरफ़रोशी की तमन्ना ‘ की एक पंक्ति है-
‘ अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है ‘। झांसी की रानी की प्रशंसा में अंग्रेज सेनापति ह्यू रोज ने कहा था- she was the bravest and best among the rebels .इस बात का आदर करने में अवसरवादियों को ढाई सौ साल लग गये।
हल्दीघाटी के युद्ध में ग्वालियर के राजा रामसहाय बेटे शालिवाहन व पौत्र भवानी सिंह सहित अपनी तीन पीढ़ियों के साथ खेत रहे थे। प्रत्यक्षदर्शी मुगल इतिहासकार ने लिखा – राजा रामसहाय ने राणा प्रताप की सेना की दाहिनी कमान सम्हालते हुए ऐसा भीषण युद्ध किया कि जिसका वर्णन लेखनी से नहीं किया जा सकता । ‘ हल्दीघाटी में ग्वालियर के उन वीरों की समाधि बनी है। पर ग्वालियर में कुछ नहीं है। इतना जरूर हुआ कि वीर राजा रामसहाय को साढ़े चार सौ साल बाद ग्वालियर का एक समूह विशेष अब जाकर याद कर रहा है। १८ जून को उनकी स्मृति में ग्वालियर से चम्बल नदी के तट तक एक शोभायात्रा निकाली जा रही है। ‘ राणा प्रताप रासो ‘ में यह लिखा है कि राणा प्रताप को जब राजा रामसहाय की सलाह की जरूरत पड़ती थी तो खुद चलकर उनके निवास तक जाते थे। जबकि ग्वालियर हाथ से निकलने के बाद राजा रामसहाय पैंतालीस वर्ष चित्तौड़ के राजपरिवार के आश्रित रहे।
१८ जून ही वह तारीख है जब सन् १९४६ में डा . राममनोहर लोहिया ने गोवा में नागरिक स्वाधीनता के लिए जनसभा की और आन्दोलन शुरू किया। इससे पहले गोवा में विवाह का आमंत्रण – पत्र छापने तक की अनुमति नहीं थी। जनसभा करना और भाषण देना तो दूर की बात ।
लोहिया भारत छोड़ो आन्दोलन में गिरफ्तार होकर, लाहौर जेल में यातनाएं सहकर जर्जर शरीर को आराम देने अपने मित्र जूलियांव मेनेजिस के मेहमान के बतौर गोवा गये थे। लेकिन दस जून को गोवा पहुंचने के दो दिन बाद ही वहाँ कि स्थितियों ने उन्हें फिर बेचैन कर दिया। १५ जून को स्थानीय लोगों के साथ बैठक कर १८ जून को मडगांव के मैदान जनसभा की। वह एक ऐतिहासिक सभा थी। गोवा के प्रशासक मिरा़ंद ने पिस्तौल निकाली तो लोहिया ने धीरे से उसका हाथ दबाते हुए कहा – समझ नहीं रहे हो कि एक गोली चलने के बाद इस भीड़ पर कैसे काबू पाओगे।
लोहिया सहित हजारों लोगों ने गोवा मुक्ति संघर्ष में अपना सब कुछ न्यौछावर किया। आज मौजमस्ती के लिए गोवा जाने वाले कितने लोग लोहिया और उनके साथियों के संघर्ष को याद करते हैं? १८ जून को वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन बोनापार्ट की निर्णायक हार हुई। उसे अटलांटिक महासागर के टापू सेन्ट हेलेना में निर्वासित कर दिया गया। १८४० तक नेपोलियन के विषय में उसके निन्दक अंग्रेजों ने ही लिखा। पहली बार जौन एबोट ने नेपोलियन को देखने समझने की एक भिन्न दृष्टि दी।