बच्चन जी के दो लोकगीत जो कविसम्मेलनों में ‘मधुशाला’ से भी ज्यादा सुने-सराहे जाते थे!

Harivansh Rai Bachchan Birthday

Harivansh Rai Bachchan Birthday | Author; Jayram Shukla, Senior Journalist | भाषा और बोली के सामर्थ्य को लेकर चल रहे विमर्श के बीच हरिवंशराय बच्चन जी की ११६ वीं जयंती पर उनके दो लोकगीत ‘सोन मछरी’ व ‘महुआ’ याद आ गए।

बच्चनजी को ‘मधुशाला’ का पर्याय बनाकर इनके सिर पर हालावाद का मुकुट रख दिया गया। जबकि वास्तविकता यह कि उनके लिखे गद्य कविताओं पर कई गुणा ज्यादा भारी पड़ते हैं। तीन खंड़ों में लिखी आत्मकथा किसी महाकाव्य से किंचित कम नहीं। और लोकगीत..! तो इसके भी कई कोस आगे की बात। मंचों पर मधुशाला से ज्यादा ‘सोनमछरी’ गीत की फर्माइशें आती थीं।

बच्चन जी ने ‘मधुशाला’ लिख तो दिया लेकिन उन्हें हर यात्रा प्रवास में सफाई देनी पड़ती थी कि वे शराब नहीं पीते..। कभी-कभी तो उनके मेहमाननवाजी में शराब पहले से ही इंतजार करती बैठी रहती। एक बार गांधी जी बच्चन से मधुशाला की कैफियत पूछ बैठे। किसी ने उन्हें बताया था कि हरिवंशराय जी इनदिनों मंचों से शराब को महिमा मंडित करते हैं।

अपने एक संस्मरण में बच्चन जी ने लिखा- “पूज्य बापू को मधुशाला पर सफाई देनी पड़ी..उन्हें मैंने बताया कि यह कविता ‘जीवन दर्शन’ है मधुशाला का प्रयोग तो प्रतीकात्मक है। बापू पूरी मधुशाला पढ़ने के बाद ही संतुष्ट हुए”

बहरहाल यहां मैं बात कर रहा हूँ उनके दो लोकगीतों की जिन्हें कविसम्मेलनों में अपार सराहना मिली। यदि विंध्यवासी हैं तो कभी न कभी रिमही में ढिमरहाई लोकधुन जरूर सुनी होगी.. और मँडवा गीत भी।

दरअसल हमारी बोली का भूगोल वृस्तित है..नाम चाहे जो दें पर..विंध्य/बघेलखण्ड के अलावा..आधे महाकोशल (कटनी-सिहोरा) बाँदा, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, फतेपुर, जौनपुर, एटा, मिरजापुर, इटावा हाथरस, फैजाबाद, लखनऊ के ग्राम्यांचल में लगभग एक सी बोली है..सिर्फ़ लहजे में उतना ही अंतर है जितना नागौद(सतना) और हनुमना, चाकघाट (रीवा) की बोली में…।

अँग्रेजों (ग्रियर्सन) का भाषाई सर्वे और बोलियों का नामकरण..फ्राड है..लेकिन हमारे हिंदी हृदय सम्राट लोग उसी को ब्रह्मवाक्य माने बैठे हैं…।

पढ़िए व गुनगुनाइए बच्चन जी का वह गीत जो हमारी रिमही के ढिमरहाई लोकधुन में ढला है….

    सोन मछरी 

         स्त्री

जा, लाबा, पिया,नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया,सोन मछरी।
जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।
जिसकी हैं नीलम की आँखे,
हीरे-पन्ने की हैं पाँखे,
वह मुख से उगलती है मोती की लरी।
पिया मोती की लरी; पिया मोती की लरी।
जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।

         पुरुष

सीता ने सुबरन मृग माँगा,
उनका सुख लेकर वह भागा,
बस रह गई नयनों में आँसू की लरी।
रानी आँसू की लरी; रानी आँसू की लरी।
रानी मत माँगो; नदिया की सोन मछरी।

         स्त्री

जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया,सोन मछरी।
जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया डोंगी ले सिधारे,
मैं खड़ी रही किनारे,
पिया लेके लौटे बगल में सोने की परी.
पिया सोने की परी नहीं सोन मछरी।
पिया सोन मछरी नहीं सोने की परी.

         पुरुष

मैंने बंसी जल में डाली,
देखी होती बात निराली,
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी।
रानी, सोने की परी; रानी, सोने की परी
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी।

          स्त्री

पिया परी अपनाये,
हुए अपने पराये,
हाय! मछरी जो माँगी कैसी बुरी थी घरी!
कैसी बुरी थी घरी, कैसी बुरी थी घरी।
सोन मछरी जो माँगी कैसी बुरी थी घरी।

जो है कंचन का भरमाया,
उसने किसका प्यार निभाया,
मैंने अपना बदला पाया,
माँगी मोती की लरी, पाई आँसू की लरी।
पिया आँसू की लरी,पिया आँसू की लरी।
माँगी मोती की लरी,पाई आँसू की लरी।

जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।
पिया, सोन मछरी; पिया, सोन मछरी।

जा, लाबा, पिया, नदिया से सोन मछरी।

एक और लोकगीत /पढ़े सुने जो हमारे ही रेवांचल की प्रचलित धुन है..शादी-ब्याह में मंडप(मड़वा) तैयार करने के अउसर की…

महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।
यह खेल हँसी,
यह फाँस फँसी,
यह पीर किसी से मत कह रे।
महुआ के
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।

अब मन परबस,
अब सपन परस,
अब दूर दरस,अब नयन भरे।
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।

अब दिन बहुरे,
अब जी की कह रे,
मनवासी पी के मन बस रे।
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।

घड़ियाँ सुबरन,
दुनियाँ मधुबन,
उसको जिसको न पिया बिसरे।
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।

सब सुख पाएँ,
सुख सरसाएँ,
कोई न कभी मिलकर बिछुड़े।
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के।

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