Tiger state Madhya Pradesh: बीते साल मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व और वन क्षेत्रों में कई बाघों की असामयिक मौतें हुईं। आधिकारिक रूप से इन्हें “स्वाभाविक” बताया जा रहा है, मगर सच्चाई इससे परे है। प्रदेश में बाघ शिकारियों का एक खतरनाक नेटवर्क सक्रिय है, जो निजी संग्रह, काला बाजार और विदेशी मांग के लिए बाघों को निशाना बना रहा है। ये शिकारी आधुनिक हथियारों, जहर और विद्युत तारों का इस्तेमाल करते हैं. कई मामलों में रिजर्व के अंदर ही बाघों के अवशेष बरामद हुए।
Tiger state Madhya Pradesh: देश में ‘टाइगर स्टेट’ का तमगा हासिल करने वाले मध्य प्रदेश पर यह दर्जा खोने का खतरा मंडरा रहा है। प्रदेश में लगातार हो रहे बाघों की मौत के आंकड़े भयावह हैं, जिसने इन आशंकाओं को बल दिया है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के मुताबिक, मध्य प्रदेश में साल 2025 में अब तक 40 बाघों और शावकों की मौत हो चुकी है। इस मामले में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और कान्हा नेशनल पार्क अव्वल हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि मरने वाले इन बाघों में 5 से 8 साल की उम्र की 9 बाघिन भी शामिल हैं, जो आने वाले दिनों में बाघों की वंश वृद्धि में सहायक हो सकती थीं।
दुनिया भर में प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क में ही जनवरी, 2025 से अब तक 12 बाघों और तेंदुओं की मौत हुई है। भले ही कई बाघों की मौत को स्वाभाविक या आपसी संघर्ष का परिणाम बताया जा रहा हो, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश में शिकारी सक्रिय हैं। इसका प्रमाण यह है कि राष्ट्रीय उद्यान से सटे वन क्षेत्रों में दो बाघों की मौत के मामले में 9 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है, जो फिलहाल सलाखों के पीछे हैं।
सहायक प्रधान मुख्य वन संरक्षक एल कृष्णमूति भी मानते हैं कि बाघों की मौतें स्वाभाविक व आपसी संघर्ष से हुई हैं, लेकिन वे यह भी स्वीकार करते हैं कि जंगल में शिकारी सक्रिय हैं। उनके मुताबिक, बाघों को शिकार से बचाने के लिए प्रबंधन किए जा रहे हैं।
प्रदेश के कुटीर और ग्रामोद्योग मंत्री व जिला प्रभारी मंत्री ने भी बाघों की मौत पर चिंता जताते हुए आला अधिकारियों से हालात सुधारने की बात कही है। हालांकि, सरकारी दावों के बावजूद यह स्पष्ट है कि प्रदेश के बाघ शिकारियों की जद में हैं और जिम्मेदार तंत्र अक्सर उनके सामने फेल साबित हो जाता है।
