चित्रकूट के गुप्त गोदावरी की गुफा का अदृश्य है जलस्रोत, भगवान राम-सीता और लक्ष्मण से है रिश्ता

चित्रकूट। एमपी के सतना जिला स्थित चित्रकूट की गुप्त गोदावरी एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहां एक गुफा के अंदर स्थित एक नदी है, जिसके बारे में माना जाता है कि भगवान राम और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान यहां कुछ समय तक रहे है।

ऐसा है गुप्त गोदावरी का स्वरूप

गुप्त गोदावरी के स्वरूप की अगर बात की जाए तो यह एक गुफा के अंदर है, जिसमें दो गुफाएँ हैं। गुफा के अंदर एक नदी बहती है, जिसका स्रोत अज्ञात है यानि कि इस नदी का पानी कहा से निकलता है इसकी जानकारी किसी को नही है, जबकि इस गोदावारी का जल बहुत ही शीतल है। गुफा में दो प्राकृतिक सिंहासन हैं, जिन्हें राम और लक्ष्मण का सिंहासन माना जाता है। गुफा के प्रवेश द्वार पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मूर्तियाँ हैं, और गुफा के अंदर सीता माता के स्नान करने की जगह भी है।

गुप्त गोदावरी में राम-लक्ष्मण का लगता था दरवार

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान इस स्थान पर दरबार लगाया था। इतिहासकारों के अनुसार, गुफा के भीतर की चट्टानों से गहरी नदी के रूप में उभरती हुई गोदावरी नदी नीचे एक और गुफा में बहती है और फिर पहाड़ो में जाकर गायब हो जाती है। बाद में पानी को विशाल चट्टान की छत से बाहर निकलते हुए देखा जाता है। कवि और कथाकार वाल्मीकि और तुलसी ने गुफाओं के बारे में कहा कि गुफा में बहुत ही संकीर्ण रास्ते से पहुंचा जाता है। जिसमे एक समय में सिर्फ एक व्यक्ति ही जा सकता है। अंदर जाने में गुफा बड़ी होती जाती है। जहां आखिर में हमे धनुषकुंड नाम का झरना भी मिलता है। यहां कई छोटे मंदिर दिखाई देंगे। हर मंदिर का अपना एक इतिहास और कहानी है।

प्रभु के लिए गुप्त रूप से आई थी गोदावरी

गोदावरी नदी का जन्म महाराष्ट्र के नाशिक में यानि की चित्रकूट से 920 किमी. दूर हुआ था। ऐसा बताया जाता है कि देवी गोदावरी चित्रकूट में गुप्त रूप से प्रकट हुई थी ताकि वह भगवान राम के रूप के दर्शन कर सकें। ज्ञात हो कि चित्रकूट में रहकर भगवान ने अपने कई भक्तों को दर्शन दिए। उनमें से गोदावरी भी है। इसी तरह भगवान में अपनी अननः भक्त माता सती अनुसूईया, सबरी और भक्त तुलसी को भी दर्शन दिए थें। तुलसी के लिए तो राम भक्त हनुमान ने चौपाई भी पढ़ी…
चित्रकूट के घाट में भइय संतन के भीर, तुलसी दास चदन घिसे, तिलक देते रघुवीर।
इसके बाद तुलसीदास को भगवान का साक्षात हुआ और उन्होने रामचरित मानस नामक ग्रंथ की रचना किए। जिसे आज हर घर में भगवान भक्त वाचन करके प्रभु राम के जीवन दर्शन का लाभ ले रहे है।

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