भोलेनाथ ने ली लकड़हारे की परीक्षा,फिर बरसाई कृपा: मल्लूदीन की प्रेरक कथा-The Test of Honesty and Blessings of Lord Shiva-The Inspiring Tale of Woodcutter Malludeen

The Test of Honesty and Blessings of Lord Shiva-The Inspiring Tale of Woodcutter Malludeen – यह कहानी सिर्फ एक साधारण लकड़हारे की नहीं, बल्कि एक सच्चे भक्त, मेहनतकश और ईमानदार इंसान की है, जिसकी तपस्या ने स्वयं भगवान शिव को उसकी परीक्षा लेने पर विवश कर दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि कठिनाइयां चाहे जितनी भी हों, अगर हम अपने सच्चे रास्ते और ईमानदारी पर टिके रहें, तो ईश्वर एक दिन हमारी मेहनत और ईमानदारी का सुखद फल जरूर मिलता है और भगवन भी हमसे खुस होते हैं-हमारी सुनते हैं और जीवन को सुख, समृद्धि और यश से भर देते हैं।

मुख्य कथा – एक समय की बात है, एक बेहद गरीब लेकिन ईमानदार और परम शिवभक्त लकड़हारा था, जिसका नाम था मल्लूदीन। उसके परिवार में उसकी पत्नी रैना, दोबेटियां,बड़ी और गुड्डी, और दो गायें व उनके बछड़े थे। मल्लूदीन रोज़ जंगल जाकर गायों को चारा खिलाता और लकड़ियां काटकर लाता, जिन्हें बेचकर ही उसका परिवार पलता था। जीवन बेहद कठिन था, लेकिन मल्लूदीन हर दिन शिव मंदिर में दर्शन किए बिना लौटता नहीं था। हर बार दर्शन करते समय वह भोलेनाथ से दुखड़ा रोता- “हे भोलेनाथ, मुझसे क्या ग़लती हुई जो इतना निर्धन बनाया ? न बच्चों को पेटभर रोटी दे पाता, न पत्नी को ढंग के कपड़े।” यह कहकर वह रोता और फिर अपने काम में लग जाता। एक दिन उसकी पुकार देवी पार्वती के कानों तक पहुंची,उन्होंने भगवान शिव से उसकी पीड़ा पर ध्यान देने को कहा। शिवजी ने कहा “मैं उसकी परीक्षा लूंगा, अगर वह सच्चा निकला, तो उसका जीवन बदल दूंगा। “भगवान शिव एक दिन एक साधारण व्यक्ति के रूप में जंगल के एक तालाब पर पहुंचे, जहां मल्लूदीन अपनी गायें चराने आता था। शिवजी तालाब में उतर कर कुछ ढूंढने का अभिनय कर रहे थे। मल्लूदीन ने उन्हें देखा, पर शुरुआत में अनदेखा कर अपने काम में लग गया। आधे दिन के बाद जब वह विश्राम के लिए बैठा, तो देखा कि वही आदमी अब भी पानी में कुछ खोज रहा है। मल्लूदीन ने पास जाकर पूछा “भाई, कुछ खो गया है क्या?” उस व्यक्ति ने (जो असल में शिवजी थे) जवाब दिया “मेरी कुल्हाड़ी पानी में गिर गई, वही ढूंढ रहा हूं ,मैं उसी से परिवार पालताहूं -” मल्लूदीन ने उन्हें ढांढस बंधाया और बोला “चलो हम दोनों मिलकर ढूंढते हैं” और यहीं से शिवजी ने उसकी परीक्षा शुरू कर दी। पहले एक लोहे की कुल्हाड़ी पानी से मिली, जिसे मल्लूदीन ने देखते ही कहा “ये आपकी कुल्हाड़ी है ?” शिवजी ने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया और धन्यवाद कहा। इसके बाद शिवजी ने कहा “आपने मेरी मदद की, अब मैं आपकी मदद करता हूं । “उन्होंने पानी से एक-एक कर तांबे, चांदी और सोने की कुल्हाड़ियां निकालीं और हर बार मल्लूदीन से पूछा “क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?” मल्लूदीन ने हर बार स्पष्ट इंकार किया “नहीं भाई, मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी। “शिवजी ने अंत में यहां तक कहा “अगर ये कुल्हाड़ियां तुम्हारी नहीं भी हैं, तो बेचकर पैसा बांट लेते हैं, दोनों का भला हो जाएगा।” पर मल्लूदीन ने कहा “मैं गरीब जरूर हूं लेकिन बेईमान नहीं, मेहनत करता हूं और अपने भोलेनाथ पर भरोसा रखता हूं। यह कुल्हाड़ियां आपकी ही होंगी, आप इन्हें रख लीजिए। “इतनी ईमानदारी देखकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपना असली स्वरूप प्रकट किया। मल्लूदीन उनकी दिव्यता देखकर भावविभोर हो रो पड़ा और कहा “आप मेरे आराध्य हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं सका।”
शिवजी ने मुस्कराते हुए कहा “अगर तुम्हारी ईमानदारी डगमगाती, तो भक्त और भक्ति पर से मेरा विश्वास उठ जाता। लेकिन तुमने सच्ची परीक्षा पास की है। अब जाओ, तुम्हारा जीवन वैसा होगा जैसा तुमने कभी कल्पना की थी। अब कोई दुख, व्याधि या गरीबी तुम्हारे द्वार नहीं आएगी।”
विपत्ति से वैभव की ओर –
जब मल्लूदीन अपने घर लौटा, तो देखा कि उसकी झोपड़ी आलीशान महल में बदल चुकी है, आंगन में घोड़े-गाड़ियां हैं, पत्नी रैना आभूषणों से सजी है, बच्चे सुनहरी पोशाक पहनकर खेल रहे हैं, और नौकर-चाकर सेवा में लगे हैं। मल्लूदीन ने अपनी पत्नी को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और भगवान शिव का आभार व्यक्त किया ,लेकिन सबसे प्रेरणादायक बात यह रही कि इतने वैभव के बावजूद मल्लूदीन ने अपना काम नहीं बदला, बल्कि पशुपालन, डेयरी और लकड़ी की टाल खोल कर हज़ारों लोगों को रोज़गार दिया और अपने गांव का जीवन भी समृद्ध बना दिया।
कहानी का संदेश – ईमानदारी की परख भले समय लेती है, लेकिन उसका फल अवश्य मिलता है। जब तक भरोसा, मेहनत और सच्चाई साथ हैं, तब तक ईश्वर भी देर-सवेर आपकी पुकार सुनते हैं। “धैर्य रखो, कठिन समय में भी अपने आदर्शों से न डगमगाओ सफलता एक दिन जरूर कदम चूमेगी।”

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