दीपावली पर क्यों खानी जरूरी होता है सूरन? सेहत से जुड़ा है राज 

Suran Ki Sabji On Diwali : दीपावली का त्योहार केवल रोशनी और मिठाइयों का ही नहीं, बल्कि परंपराओं और मान्यताओं का भी प्रतीक है। इस खास दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद विभिन्न तरह के पकवान बनाने की परंपरा है, जिनमें मिठाई और मालपुए बनाएं जाते हैं। इसके साथ ही सूरन की सब्जी बनाना भी जरूरी परंपरा है।  

सूरन को ओल या जिमीकंद भी कहा जाता है, एक जड़ वाली सब्जी है जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से पकाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि दिवाली के दिन सूरन की सब्जी बनाने की परंपरा क्यों है? इसके पीछे छुपी है एक खास मान्यता और परंपरा।  

दिवाली पर सूरन खाने की परंपरा क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार, दिवाली के दिन यदि सूरन नहीं खाया जाए तो व्यक्ति अगले जन्म में नेवला या छुछुंदर के रूप में जन्म ले सकता है। हालांकि यह कहानी कल्पना पर आधारित है, लेकिन इसकी प्राचीन परंपरा आज भी जीवित है। सूरन की जड़ जमीन के अंदर उगती है और बार-बार काटने पर भी वापस उग जाती है, जो जीवन में निरंतरता और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।  

इसलिए, दिवाली के दिन सूरन की सब्जी बनाने और खाने से सुख, समृद्धि और स्थिरता का आशीर्वाद मिलता है। इसे जीवन में खुशहाली और तरक्की का प्रतीक भी माना जाता है।  

सूरन की सब्जी खाने के के फायदे

सूरन की सब्जी खाने में फायदेमंद होती है। क्योंकि सूरन में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सिडेंट गुण इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। यह त्वचा और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी है। साथ ही, वजन नियंत्रित करने में भी मददगार माना जाता है।  

दिवाली पर सूरन क्यों खाया जाता है?

सूरन कभी खराब नहीं होता और निरंतर फलने-फूलने वाला पौधा है, इसलिए इसे स्थिरता और प्रगति का प्रतीक माना जाता है। दिवाली के दिन इसे खाने से जीवन में खुशहाली और सफलता बनी रहती है।  

सूरन बनाने का सही तरीका

सूरन बहुत सख्त और खट्टा होता है, इसलिए इसे अच्छी तरह से उबालकर पकाना जरूरी है। उबालने के बाद छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तेल में भूनें। फिर प्याज और टमाटर की ग्रेवी बनाएं, उसमें उबले हुए सूरन डालें और थोड़ी देर पकाएं। अंत में, नींबू का रस डालें, जो स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ गले में खुजली को भी कम करता है।  

दिवाली पर सूरन की सब्जी बनाने और खाने की परंपरा न केवल स्वादिष्ट है बल्कि यह शुभता और समृद्धि का प्रतीक भी है। इस परंपरा का पालन कर हम जीवन में सुख-समृद्धि की कामना कर सकते हैं।  

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