विंध्य के सफेद शेर ‘पंडित श्रीनिवास तिवारी’ की कहानी

The Story Of Sriniwas Tiwari: ‘स्व पंडित श्रीनिवास तिवारी’ वो नाम है जिसे सुनते ही लोगों के सिर सम्मान में झुक जाते हैं, चाहने वालों की आंखे नम हो जाती हैं और ज़हन में सिर्फ एक नारा गूंजता है ‘दादा नहीं दऊ आए’

Biography Of Sriniwas Tiwari: मध्य प्रदेश का विंध्य दो चीज़ों के लिए जाना जाता है. पहला है सफेद बाघ मोहन और दूसरा रीवा का सफेद शेर ‘स्व पं श्रीनिवास तिवारी’. पंडित श्रीनिवास तिवारी को लोग सम्मान में ‘रीवा का सफ़ेद शेर’ और प्यार से ‘दादा’ बुलाते थे. लेकिन वे अपने चाहने वालों के लिए ‘दऊ’ यानी भगवान थे. जिस तरह भगवान की इच्छा बिना इस संसार में एक परिंदा पर नहीं मारता, ठीक वैसे ही ‘दादा’ की मर्जी के खिलाफ विंध्य में कोई इधर से उधर नहीं होता था. विंध्य की राजनीति के The Man, The Myth, The Legend ‘पंडित श्रीनिवास तिवारी’ का आज जन्मदिन है. ShabdSanchi.Com का यह लेख उन्हें समर्पित है.

दास्तान-ए-श्रीनिवास तिवारी

ये बात आज से 97 साल पुरानी है. 17 सितंबर 1926 के दिन श्रीनिवास तिवारी का जन्म अपने ननिहाल शाहपुर में हुआ था. उनका गृहग्राम रीवा जिले का तिवनी था. श्री तिवारी अपने गांव में ही पले-बढे और शहर के दरबार इंटरमीडिएट कॉलेज (वर्तमान में ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय) से वकालत की शिक्षा हासिल की. कॉलेज में पढाई करने के दौरान ही ‘दादा’ का राजनितिक सफर शुरू हो गया था. वे सामंतवाद के खिलाफ थे और गरीबों पर होने वाले अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करते थे. उन्होंने अपनी जवानी में स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सा लिया था.

विंध्य में समाजवादी पार्टी को लाए, विधायक बने

श्री निवास तिवारी जब 22 साल के थे तब उन्होंने ने ही समाजवादी पार्टी को विंध्य में पहचान दिलाई थी. 1952 में वे सपा की टिकट से पहली बार विधानसभा के सदस्य बने थे. किसी ने सोचा नहीं था कि तिवनी गांव के गरीब ब्राह्मण परिवार मंगलदीन तिवारी और कौशल्या देवी के घर में जन्मा लड़का पूरे प्रदेश की राजनीती का चमचमाता सूरज बन जाएगा।

चुनाव लड़ने के लिए पैसे ही नहीं थे

जैसा की हमने बताया, दादा के परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी. वो गरीब किसान के बेटे थे जिनकी परवरिश में ही खेती से होने वाली कमाई कम पड़ जाती थी. उनके पास चुनाव लड़ने क्या नामांकन करने के भी पैसे नहीं थे. तब गांव के ही एक सज्जन ‘कामता प्रसाद तिवारी’ ने अपने घर के पुश्तैनी जेवरात को गिरवी रख दादा को चुनाव लड़ने के लिए 500 रुपए दिए थे. और पंडित तिवारी मंगवाना विधानसभा से विधायक बने थे.

श्री निवास तिवारी को सफेद शेर क्यों कहते थे?

पंडित तिवारी का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि बड़े-बड़े मंत्री-मिनिस्ट उनके आगे नाटे हो गए थे. जब विंध्य का मध्य प्रदेश में विलय हुआ था तब दादा ने इसे रोकने के लिए जान लगा दी थी. लेकिन विंध्य के एमपी में विलय ने उनके राजनीतिक वर्चस्व का दायरा भी बढ़ा दिया था.

साल 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दादा को कांग्रेस की सदस्यता दिला दी. इंदिरा गांधी ने ही श्रीनिवास तिवारी को ‘रीवा का सफेद शेर’ का टाइटल दिया था. 6 फीटकी कद-काठी, सफेद घने बाल, भौंहों और दहाड़ सी आवाज वाले उस शख्स को कोई ‘सफेद शेर’ ना कहता तो क्या कहता?

1980 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री बने, और कुछ समय बाद उन्होंने खुद ही पद से इस्तीफा दे दिया और अर्जुन सिंह ने मतभेद के चलते सन 85 में श्री तिवारी का टिकट भी काट दिया था. तब दादा के समर्थकों ने उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए आग्रह किया, बड़ा बवाल हुआ, पंडित तिवारी ने बिना चुनाव लड़े 5 साल बर्बाद कर दिए मगर कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ी. 1990 कांग्रेस की टिकट से फिर विधायक बने. 1990 में पं तिवारी विधानसभा उपाध्यक्ष और 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष बन गए. वे दो बार विस अध्यक्ष रहे.

पं श्रीनिवास तिवारी की उपलब्धियां

  • 24 की उम्र में पहली बार विधायक बने. जबकि चुनाव लड़ने की उम्र 25 वर्ष होती है. लेकिन कोर्ट में उन्होंने साबित कर दिया कि वे 25 साल के ही हैं क्योंकि 9 महीने उन्होंने अपनी मां के गर्भ में भी तो बिताए थे.
  • विधानसभा अध्यक्ष रहते कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी भी रहे, कहा कि पार्टी की वजह से विधायक बना और विधानसभा अध्यक्ष। ऐसा करने वाले इकलौता विधानसभा अध्यक्ष रहे.
  • श्री तिवारी ने सदन में एक बार 7 घंटे तक भाषण देकर कीर्तिमान रच दिया था.
  • श्री तिवारी के विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए देश में पहली बार विधानसभा के भीतर मुख्यमंत्री प्रहर कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें सीएम को अनिवार्यरूप से जवाब देना होता था.
  • रीवा में विंध्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल ‘SJMH’ का निर्माण उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए किया गया था. दादा जब बीमार पड़े तब इसी अस्पताल में इलाज कराने की जिद पड़के हुए थे.
  • विश्वसनीयों की माने तो श्री तिवारी कभी भी विन्ध्यवासियों को छोड़ना नही चाहते थे, इस कारण उन्होने देश स्तर की राजनीति से तौबा कर रखा था.

दादा नहीं दऊ आए वोट द देबे तउ आए

‘दादा नहीं दऊ आए वोट द देबे तउ आए’ ये नारा उनके समर्थकों ने तब दिया था जब श्री निवास तिवारी 2008 में कांग्रेस में रहते हुए पहली बार चुनाव हारे थे. लेकिन इस हार से उनकी लोकप्रियता और वर्चस्व प्रभावित नहीं हुआ था. आज भी यह नारा लोगों के ज़हन में गूंजता है.

”दादा नहीं दऊ आए वोट द देबे तउ आए” का मतलब है ”दादा नहीं भगवान हैं, वोट नहीं मिले फिर भी भगवान हैं”

सिद्धांतों पर अटल थे

उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि- श्रीनिवास तिवारी अपने सिद्धांतों से समझौता करने वाले नेता नहीं था. कांग्रेस में रहने के बावजूद वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े हो जाते थे. जिस मंत्री पद के लिए नेता, हाईकामनों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं दादा ने उस पद को सिर्फ और सिर्फ अपने सिद्धांतों के लिए लात मार दी थी. वे अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ बोलने में झिझकते नहीं थे. जो गलत है तो गलत है बात खतम…

श्रीनिवास तिवारी के चर्चित बयान

  • विंध्य प्रदेश की जनता का मौलिक अधिकार है कि वह अपने भाग्य का निर्णय कर सकें। 
  • जवानी उम्र से नहीं भावनाओं से आंकी जाती है।
  • हां प्रदेश में कांग्रेस की समानांतर अमहिया सरकार है और मैं उसका सीएम हूं।
  • अर्जुन सिंह से मतभेद था, मनभेद नहीं। 

जब अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा- सुना है यहां शेर रहता है?

एक बार पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी रीवा की धरती में आए. उन्हें देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ जमा हुई. तब सभा को संबोधित करने के दौरान उन्होंने मंच से कहा ”सुना है यहां कोई शेर रहता है?” फिर क्या अटल बिहारी बाजपेयी की जनसभा ‘दादा’ का नाम सुनते ही बावली हो गई, उनकी तालियों की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी.

लोग बताते हैं कि श्रीनिवास तिवारी किसी खास वर्ग के लोगों के हिमायती या दुश्मन नहीं थे. उनके चाहने वालों में हर जाति के लोग थे. या यूं कहें कि किसी की मजाल नहीं थी कि ‘दऊ’ के खिलाफ जाए.

शायद यम भी उनके वश में थे

82 साल की उम्र में चुनाव हारने के बाद भी ना तो श्री निवास तिवारी ने राजनीती छोड़ी ना राजनीती ने उन्हें. वो तामउम्र कांग्रेस के लिए जनसभा करते रहे. यूं तो सब कुछ दादा के कंट्रोल में था, 85-90 की उम्र में भी श्री निवास तिवारी को देखकर लोग यही कहते थे कि इन्होने ‘यम’ को भी वश में कर लिया है.

जब खूब रोया विंध्य

19 जनवरी 2018 को 92 की उम्र में दादा के प्राणों ने देह त्याग दी. मृत्यु अटल सत्य है ये सब जानते थे लेकिन किसी को इस बात का यकीन नहीं हो रहा था कि ‘दऊ’ भी भला मर सकता है? शायद ही कोई बचा होगा जिसने उस ‘महान व्यक्तित्व’ की फूलों से सजी अंतिम यात्रा के दर्शन न किए होंगे। शायद ही कोई रहा होगा जिसकी आंखों से आंसू ना छलके होंगे। जंगल के आखिरी शेर की मौत होने पर कुदरत भी रोती है.

विंध्य के सफेद शेर स्व पंडित श्रीनिवास तिवारी को ShabdSanchi.Com का शत शत नमन…

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