मेजर जनरल शाबेग सिंह की कहानी: कांग्रेस की सियासत ने तोड़ा सैनिक का सम्मान

Story Of Major General Shabeg Singh In Hindi: मेजर जनरल शाबेग सिंह (Major General Shabeg Singh) भारतीय सेना (Indian Army) के एक चमकते सितारे थे, जिन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (Bangladesh Liberation War) में मुक्ति बाहिनी (Mukti Bahini) को प्रशिक्षित कर इतिहास रचा। लेकिन इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की राजनीतिक साजिशों ने उनकी जिंदगी को अपमान और त्रासदी की राह पर धकेल दिया।

इंदिरा गांधी ने ने तोड़ा सैनिक का सम्मान

Story Of Major General Shabeg Singh And Indira Gandhi: इंदिरा ने शाबेग सिंह को जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) के आंदोलन को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल करने का आदेश दिया। इस आदेश को ठुकराने पर उन्हें रिटायरमेंट से ठीक एक दिन पहले बर्खास्त कर दिया गया और फर्जी भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसाया गया। इस अपमान ने उन्हें जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) के साथ जोड़ दिया, और अंततः ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) में उनकी मृत्यु हो गई।

कौन थे मेजर जनरल शाहबेग सिंह

Who Was Major General Shabeg Singh: शाबेग सिंह का जन्म 1 मई 1924 को अमृतसर के खियाला गांव (Khiala village) में एक जाट सिख परिवार में हुआ। खालसा कॉलेज, अमृतसर (Khalsa College, Amritsar) और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज (Government College, Lahore) से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने भारतीय सेना में कदम रखा। द्वितीय विश्व युद्ध (World War II), 1947 का भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak War 1947), 1962 का भारत-चीन युद्ध (Sino-Indian War), और 1965 का भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak War 1965) में उनकी वीरता ने उन्हें सेना में सम्मान दिलाया। 1971 में, उन्होंने मुक्ति बाहिनी को गुरिल्ला युद्ध (guerrilla warfare) में प्रशिक्षित किया, जिसके लिए उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल (PVSM) और अति विशिष्ट सेवा मेडल (AVSM) से सम्मानित किया गया।

इंदिरा गांधी जयप्रकाश नारायण और शाबेग सिंह

Indira Gandhi, Jayaprakash Narayan and Shabeg Singh: 1975 में, जयप्रकाश नारायण ने बिहार में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ एक जनांदोलन (JP Movement) शुरू किया, जो भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ था। दावा है कि इंदिरा गांधी ने मेजर जनरल शाबेग सिंह, जो उस समय बरेली क्षेत्रीय मुख्यालय में तैनात थे, को आदेश दिया कि वे सेना का इस्तेमाल करके इस आंदोलन को कुचल दें और जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार करें। शाहबेग सिंह ने इस आदेश को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने इंदिरा को पत्र लिखकर कहा कि सेना का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ (political motives) के लिए करना सेना की निष्पक्षता और संवैधानिक भूमिका के खिलाफ है।

इंदिरा गांधी ने शाबेग सिंह को बर्खास्त किया

शाहबेग सिंह के इस साहसिक इनकार ने इंदिरा गांधी को क्रोधित कर दिया। दावा है कि बदले में, 1976 में उनके रिटायरमेंट से ठीक एक दिन पहले उन्हें बिना कोर्ट मार्शल (Shabeg Singh Court-martial) के सेना से बर्खास्त कर दिया गया। उन पर भ्रष्टाचार (corruption charges against Major General Shabeg Singh) के फर्जी आरोप लगाए गए, जिसमें एक जोंगा वाहन (Jonga vehicle) को प्रॉक्सी के जरिए खरीदने का मामला शामिल था। यह आरोप इतना हास्यास्पद था कि ऐसा कोई नियम पहले कभी लागू नहीं हुआ था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation, CBI) ने लखनऊ में उनके खिलाफ दो चार्जशीट दाखिल कीं।

मेजर जनरल शाहबेग सिंह बेक़सूर थे?

Was Major General Shabeg Singh innocent: शाहबेग सिंह ने इस अन्याय के खिलाफ सिविल कोर्ट में लड़ाई लड़ी। 13 फरवरी 1984 को, कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया, यह साबित करते हुए कि भ्रष्टाचार के आरोप पूरी तरह फर्जी थे। लेकिन तब तक उनकी पेंशन और सैनिक सम्मान छिन चुका था। उनके छोटे भाई बेंत सिंह (Beant Singh) के अनुसार, शाहबेग ने अपनी माँ प्रीतम कौर (Pritam Kaur) से कहा, “इस अपमान का बदला लेने के लिए मैं सरकार को और बड़ा नुकसान पहुँचाऊँगा।”

कांग्रेस का सेना के साथ सियासी खेल

कांग्रेस पार्टी पर लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि उसने सेना का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ (political gains) के लिए किया। जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से लेकर इंदिरा गांधी तक, कांग्रेस नेताओं पर देश को अपनी जागीर मानने के इल्ज़ाम लगे हैं। 1987 में, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का युद्धपोत आईएनएस विराट (INS Viraat) पर छुट्टियाँ मनाने का मामला इसका एक उदाहरण माना जाता है, जब युद्धपोत को कथित तौर पर उनके निजी पिकनिक (personal picnic) के लिए इस्तेमाल किया गया। शाहबेग सिंह का मामला भी इसी सियासी दुरुपयोग का हिस्सा माना जाता है, जहाँ एक सैनिक की निष्ठा को कुचलकर उसे अपमानित किया गया।

शाहबेग सिंह भिंडरावाले से क्यों जुड़े

Why did Shabeg Singh join Bhindranwale: सेना से बर्खास्तगी और अपमान ने शाहबेग सिंह को गहरे आघात पहुँचाया। 1983 में, वे जरनैल सिंह भिंडरावाले के धर्म युद्ध मोर्चा (Dharam Yudh Morcha) से जुड़ गए, जो सिखों के अधिकारों के लिए आंदोलन चला रहा था। भिंडरावाले ने अपनी सभाओं में शाहबेग सिंह जैसे सिखों के साथ हुए अन्याय का ज़िक्र किया। दिसंबर 1983 में, अकाली दल (Akali Dal) के नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल (Harchand Singh Longowal) ने भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) में शरण लेने के लिए आमंत्रित किया। शाहबेग सिंह ने भिंडरावाले के सैन्य सलाहकार (military adviser) की भूमिका निभाई और स्वर्ण मंदिर परिसर को एक किले (fortress) की तरह मज़बूत किया। उनकी सैन्य विशेषज्ञता ने रक्षा को इतना प्रभावी बनाया कि पैदल कमांडो ऑपरेशन असंभव हो गया।

16 मई 1984 को, शाहबेग सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा, “मैं एक देशभक्त हूँ, शायद प्रधानमंत्री से भी ज़्यादा। भिंडरावाले में आध्यात्मिकता (spiritualism) है और वह सत्य के लिए खड़ा है। सरकार उसे गलत तरीके से देशद्रोही कह रही है।”

मेजर जनरल शाबेग सिंह की मौत कैसे हुई

How did Major General Shabeg Singh die: 1 जून 1984 को, इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर से भिंडरावाले और उनके समर्थकों को हटाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। शाहबेग सिंह ने परिसर की रक्षा का नेतृत्व किया, जिससे सेना को भारी नुकसान हुआ। 5 जून 1984 की रात, अकाल तख्त (Akal Takht) और दरशनी ड्योढ़ी (Darshani Deorhi) के बीच गोलीबारी में उनकी मृत्यु हो गई। 7 जून को, उनकी और भिंडरावाले की लाशें अकाल तख्त के बेसमेंट से बरामद हुईं।

शाहबेग सिंह की कहानी एक वीर सैनिक के अपमान और उसकी त्रासद यात्रा को दर्शाती है। उनके परिवार का कहना है कि वे खालिस्तान (Khalistan) के समर्थक नहीं थे, बल्कि उनका मकसद केवल अपने अपमान का बदला लेना था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद, इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या (Indira Gandhi assassination) और सिख विरोधी दंगे (anti-Sikh riots) ने देश को हिलाकर रख दिया। शाहबेग सिंह की कहानी आज भी पंजाब में चर्चा का विषय है।

कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठते हैं कि क्या सेना का बार-बार राजनीतिक दुरुपयोग सैनिकों की निष्ठा को तोड़ने का कारण बना? शाहबेग सिंह का मामला इस बात का सबूत माना जाता है कि कैसे एक सैनिक का सम्मान सियासत की भेंट चढ़ गया। उनकी कहानी हमें सेना की निष्पक्षता (neutrality) और राजनीतिक हस्तक्षेप के खतरों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *