EPISODE 2: हमारे कृषि आश्रित समाज के पत्थर के उपकरण FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Padmashree Babulal Dahiya

पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज हम आ पहुंचे हैं ,दूसरी कड़ी में यानी हमारे कृषि आश्रित समाज के पत्थर के उपकरण (दूसरी किस्त).

तो चलिए आज बढ़ते हैं, कल हमने इस उपकरणों के धारावाहिक में पत्थर शिल्पियों द्वारा निर्मित लोढ़ा, सिलौंटी एवं कूँड़ा की जानकारी मय चित्रों के प्रस्तुति की थी। आज उसी क्रम में कुछ अन्य प्रस्तर के बर्तनों एवं उपकरणों की जानकारी दे रहे हैं।
जिनमें पहले बात करते हैं कुंड़िया की,

अगला नाम है पथरी का


यह लगभग हाथ भर चौड़ा गोलाकार एवं 4 इंच ऊँची बाट का एक पत्थर का पात्र होता है जिसमें पहले आटा गूथ कर रोटियां बनाई जाती थीं। इसके दोनो ओर पकड़ने के लिए दो इंच उभरी हुई मूठ भी बना दी जाती थी जिससे इधर उधर लाने ले जाने में आसानी रहे। पर इस बर्तन को औंधा करके उसके नीचे बची खुची रोटियां य दूध रख देने से कुत्ते बिल्ली से उनकी सुरक्षा भी हो जाती थी। परन्तु पीतल की कोपरी आदि आटा गूथने के बर्तन आ जाने से यह अब पूर्णतः चलन से बाहर है।

अब बारी आती है चौकी की..

यह एक से डेढ़ इंच मोटा एवं 1 फीट चौड़ा गोलाकार पत्थर का पात्र होता है जिसमें बेलना से पूड़ी रोटी आदि बेली जाती थी। परन्तु वज़नी होने के कारण यह एक स्थान पर ही रखी रहती थी। अब लकड़ी की हल्की चौकी आ जाने से यह पूर्णतः चलन से बाहर है।

ऐसा ही एक नाम है होड़सा

यह डेढ़ इंच मोटा आधा फीट चौड़ा देवालय आदि में रखा रहने वाला पत्थर का एक छोटा सा पात्र होता था जिसमें पुजारियों द्वारा चन्दन घिस कर देवताओं और अपने माथे में लगाया जाता था। यह अब भी देवालयों में है।परन्तु पत्थर शिल्पी अब इसे बिल्कुल नही बनाते।
अंत में बात करते हैं खलबट्टा की,

इसे बनाने के लिए लगभग एक फीट ऊँचे चौकोर पत्थर में एक बालिन्स का होल बनाया जाता था।और प्राचीन समय में उसी में डाल कर सूखी जड़ी बूटियों को लौह पिंड य लोढ़े से कूट कर चूर्ण किया जाता था। यह दो तीन प्रकार के आकार का बनता था। परन्तु अब कम्पनियों की बनी औषधियां आ जाने से यह चलन से पूर्णतः अलग है। आज बस इतना ही फिर मिलेंगे इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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