Asrani Is An Exceptional Actor : जब हम दीवाली की खुशियाँ मना रहे थे तभी ,खुद को अंग्रेज़ों के ज़माने का जेलर कहकर हमारे चेहरों पर मुस्कान बिखेरने वाले असरानी, अपने सभी फैंस को अपनी आख़री दीपावली की शुभकामना देकर इस दुनिया से चले गये। और तब से उनके चाहने वालों की आँखों के सामने उनके निभाए बेमिसाल किरदार बार-बार आ रहे हैं , जिसमें उनका हँसता मुस्कुराता चेहरा कभी दोस्त के रूप में सहारा देता था तो कभी हमें हँसने पर मजबूर कर देता था ,’शोले’ फिल्म में उनका ये डायलॉग तो इतना हिट हुआ कि जहाँ एक तरफ अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की तारीफें हुईं तो वहीं असरानी के इस डायलॉग की भी खूब तारीफ़ और नक़ल हुई।
कला को ही समझना चाहते थे :-
1 जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर में जन्में असरानी जी का पूरा नाम गोवर्धन असरानी था। उनके पिता एक कार्पेट कंपनी में मैनेजर थे लेकिन फिर भी असरानी जी ने अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए जयपुर के ऑल इंडिया रेडियो में बतौर वॉइस आर्टिस्ट कुछ साल तक काम किया फिल्मों में बचपन से ही उन्हें दिलचस्पी थी विज्ञान और गणित में कम ही मन लगता था इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया जो 1960 में ही स्थापित हुआ था और असरानी इसके पहले बैच में ही शामिल हुए , उन्होंने 1960 से 1962 तक साहित्यकार कलाभाई ठक्कर से अभिनय के गुर सीखे और 1966 में अपना कोर्स पूरा किया यहाँ उन्होंने अभिनेत्री जया बहादुरी को भी पढ़ाया था जिन्हे ढूढ़ते हुए ऋषिकेश मुखर्जी आए थे और असरानी से बहोत मुतासिर हुए थे। अभिनय सीखने के बाद जब हिंदी फिल्मों में काम की तलाश में निकले तो उनको पहला ब्रेक 1967 में फिल्म “हरे कांच की चूड़ियां ” में अभिनेता विश्वजीत के दोस्त की भूमिका में मिला । इसी साल एक गुजराती फिल्म में नायक की भूमिका भी निभाई फिर अगले एक दो साल तक गुजराती फिल्मों में ही अभिनेता या सहायक अभिनेता का किरदार निभाया।
निर्देशकों ने उनके लायक भूमिकाएँ गढ़ीं :-
इसके बाद उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी ने याद किया 1969 की फिल्म ‘सत्यकाम ‘ में सहायक अभिनेता की भूमिका के लिए। ऋषिकेश मुखर्जी की ही तरह आत्मा राम और गुलज़ार जी ने भी उन्हें 1971-1974 तक कई बार कास्ट किया यहाँ तक की फिल्मों में जान डालने के लिए उनके लायक किरदार भी गढ़े और इन फिल्मों के ज़रिए उनके काम को नोटिस किया गया लेकिन उनके करियर को बूस्ट मिला फिल्म गुड्डी से और उन्हें एक के बाद एक हिट फिल्में मिलीं। आगे चलकर उन्हें सहायक और हास्य भूमिकाओं के लिए ऑफर मिलने लगे और सत्तर के दशक में उन्होंने तकरीबन 101 फिल्मों में काम किया इस बीच फिल्म ‘बावर्ची’ में राजेश खन्ना से उनकी मुलाक़ात हुई और आप दोनों इतने अच्छे दोस्त बन गए कि राजेश खन्ना न केवल उनकी एक्टिंग की तारीफ़ करते थे बल्कि निर्माताओं और निर्देशकों से कहने लगे थे कि वो असरानी जी के लिए अपनी फिल्म में कोई रोल ज़रूर रखें ताकि फिल्म शानदार बने, राजेश जी ने खुद आपके साथ 1972 से 1991 तक 25 फिल्मों में काम किया ये एक रिकॉर्ड ही है कि 1970 के दशक में 101 और 1980 के दशक में 107 फिल्मों में काम किया जिनमें 350 से ज़्यादा हिंदी फिल्में, गुजराती, पंजाबी, और 1995 की हॉलीवुड फिल्म ‘द केज ‘(1995) भी शामिल थी।
लीक से हटके भी अपनी अलग छवि बनाई :-
असरानी जी ने फिल्म ,’मेरे अपने ‘, ‘कोशिश ‘ , ‘बावर्ची ‘, ‘परिचय ‘, ‘अभिमान ‘, ‘मेहबूबा ‘, ‘पलकों की छाँव में ‘, ‘दो लड़के दोनो कड़के ‘और ‘बंदिश ‘में सहायक अभिनेता की यादगार भूमिका निभाई लेकिन हास्य अभिनेता के रूप में उन्हें बहोत पसंद किया गया जिसमें उनकी फिल्में रहीं -‘आज की ताजा खबर ‘, ‘रोटी ‘, ‘प्रेम नगर ‘, ‘चुपके चुपके ‘, ‘छोटी सी बात ‘, ‘रफू चक्कर ‘ , ‘शोले ‘ , ‘बालिका बधु ‘, ‘फकीरा ‘, ‘अनुरोध ‘, ‘छैला बाबू ‘, ‘चरस ‘, ‘फांसी ‘, ‘दिल्लगी ‘ , ‘हीरालाल पन्नालाल ‘, ‘पति पत्नी और वो ‘और ‘हमारे तुम्हारे ‘। इन सब फिल्मों के साथ उस फिल्म को हम कैसे भूल सकते हैं जिसमें उन्होंने गंभीर किरदार निभाया जी हाँ ये फिल्म थी “खून पसीना ” ,कुछ और मुख़्तलिफ़ ,लीक से हटके किरदार उन्होंने फिल्म -‘कोशिश’ , ‘बिदाई’ ,’चैताली ‘और ‘निकाह’ में भी निभाए इसके अलावा ‘प्रेम नगर ‘में दलाल की भूमिका निभाई और ‘अब क्या होगा’ और ‘तेरी मेहरबानियाँ’ में खलनायक की भूमिकाएँ निभाईं ।
को – एक्ट्रेस से हुआ प्यार :-
‘आज की ताजा खबर ‘और ‘नमक हराम ‘ फिल्मों में आपके साथ नज़र आईं अभिनेत्री मंजू बंसल, जिनसे असरानी जी को शूटिंग के दौरान प्यार हो गया और मंजू जी के इक़रार करते ही आप दोनों ने शादी कर ली इसके बाद आपकी साथ में फिल्में आईं , ‘तपस्या ‘, ‘चंडी सोना ‘, ‘जान-ए-बहार ‘, ‘जुर्मना ‘, ‘नालायक ‘, ‘सरकारी मेहमान ‘, ‘नारद विवाह’ और ‘चोर सिपाही ‘। 1980 में असरानी द्वारा निर्देशित होम प्रोडक्शन ‘हम नहीं सुधरेंगे ‘में भी मंजू आपके साथ दिखीं। ‘आज की ताज़ा ख़बर ‘में असरानी जी ने चंपक बूमिया/अमित देसाई का किरदार निभाया था और मंजू ने केसरी देसाई का किरदार निभाया था। इस भूमिका के लिए असरानी को सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला इसके अलावा 1977 में ‘बालिका बधू ‘ में भी आपने सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे असरानी :-
1974 में, असरानी ने खुद को हीरो लेकर गुजराती में अपनी पहली फिल्म निर्देशित की, और किशोर कुमार ने उनके लिए गाना गाया “हू अमदावद नो रिक्शावालो” हालाँकि किशोर कुमार ने हिंदी में भी कई गाने गाए हैं जैसे – हमारे तुम्हारे फिल्म में “अच्छा चलोजी बाबा माफ करदो” और ये कैसा इंसाफ से “प्यार मैं करूंगा” । वो खुद भी बहोत अच्छा गाते थे और हमारे सामने अपना ये हुनर रखा “मन्नू भाई मोटर चली पम” गीत के ज़रिये जिसे उन्होंने किशोर कुमार के साथ गाया था और जिसे ऋषि कपूर और उन परही फिल्माया गया था ,ये फिल्म थी 1978 में ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ‘। ये वो दौर था जब मेकर्स उनके लिए कोई ना कोई रोल लिखवा ही लेते थे और जब साल 1975 आया तो आपको अपने करियर की सबसे बड़ी फिल्म मिली और वो फिल्म थी शोले जिसमें उन्होंने हिटलर की नकल करने वाले जेलर की भूमिका निभाई। उनके अंदर का वॉइस आर्टिस्ट हमें दिखा , ‘द लायन किंग ‘के हिंदी वर्जन में जिसमें उन्होंने ‘जूजू ‘ के किरदार को अपनी आवाज़ दी थी।
कई बोलियों में भी थे, माहिर :-
1970 और 1980 के दशक में गुजराती फिल्मों में मुख्य भूमिका में नज़र आए तो वहीं ,राजस्थानी और सिंधी फिल्मों में भी काम करते रहे जिनमें थीं – ‘अमदावाद नो रिक्शावालो ‘, ‘सात कैदी ‘, ‘संसार चक्र ‘, ‘पंखी नो मालो ‘, ‘जुगल जोड़ी ‘, ‘मां बाप ‘ और ‘छैल छबीलो ‘ में सफलता हासिल की । 1990 के दशक से उन्होंने मोटा घर नी वहू , पियू गयो परदेश और बाप धमाल दिखरा जैसी फिल्मों में एक हास्य अभिनेता या सहायक अभिनेता के रूप में अभिनय किया ।
निर्देशन भी किया और प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई :-
1977 में असरानी ने अपनी लिखी और निर्देशित की गई हिंदी फिल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ में मुख्य नायक की भूमिका निभाई और खूब तारीफें बटोरीं ,इसके बाद उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’, ‘हम नहीं सुधरेंगे’, ‘दिल ही तो है’ और ‘उड़ान’ जैसी फिल्में बनाई। फिर 1982 में, असरानी ने अपने साथी कलाकारों दिनेश हिंगू , हरीश पटेल और सलीम परवेज़ जी हाँ मशहूर सहायक अभिनेता यूनुस परवेज़ के बेटे के साथ मिलकर एक छोटी गुजराती प्रोडक्शन कंपनी स्थापित की लेकिन 1996 में भारी मुनाफे के साथ कंपनी बंद हो गई। 1988 से 1993 तक, वो पुणे में फिल्म संस्थान के निदेशक रहे।
ज़माना नया हो या पुराना अपनी जगह बना ही ली :-
इस के बाद कॉमेडी फिल्मों में कमी आई तो डी. रामानायडू ने 1995 की फिल्म ‘तकदीरवाला ‘में असरानी को अहम भूमिका दी फिर उन्हें 2012 तक डेविड धवन और प्रियदर्शन , निर्देशित फिल्मों में अच्छी भूमिकाएँ मिलीं। जिनकी वजह से आज वो नई पीढ़ी को भी बहोत याद आ रहे हैं कुछ फिल्में हम आपको याद दिलाए देते हैं – ‘जो जीता वही सिकंदर ‘, ‘गर्दिश ‘, ‘तकदीरवाला ‘, ‘घरवाली बाहरवाली ‘, ‘बड़े मियां छोटे मियां ‘और ‘हीरो हिंदुस्तानी ‘ फिल्मों के लिए फिर 2000 के दशक में असरानी ने हेरा फेरी , चुप चुप के , हलचल , दीवाने हुए पागल , गरम मसाला , धमाल , मालामाल वीकली , भागम भाग , भूल भुलैया , दे दना दन , बोल बच्चन और कमाल धमाल मालामाल और ‘क्यूं की ‘ में वो गंभीर भूमिका में भी नज़र आए , 2000 के बाद साजिद नाडियाडवाला और प्रियदर्शन की कॉमेडी फिल्मों का हिस्सा रहे। 2018 में असरानी ने लोकप्रिय वेब सीरीज परमानेंट रूममेट्स में मिकेश के दादा की भूमिका निभाई और 2019 में वो कुछ विज्ञापनों में भी दिखाई दिए इसके अलावा ‘पार्टनर्स ट्रबल हो गई डबल ‘में डीजीपी पुलिस महानिदेशक की भूमिका निभाई । यही नहीं 1985 में दूरदर्शन के सीरियल ‘नटखट नारद’ में नारद की भूमिका में भी सबके दिल के पास रहे।
