Sheetal Devi Archer Asian Games Para Olympics 2023 Biography In Hindi: एशियाई गेम्स के बाद चीन में एशियाई पैरा ओलंपिक्स का आयोजन किया गया है.और हमेशा की तरह भारत के खिलाडी पैरा ओलंपिक्स में भी काफी अच्छा प्रदर्शन करते नजर आ रहे है.
भारत के खिलाडियों का प्रदर्शन इतना शानदार हो रहा है की भारत ने पदकों का शतक हासिल कर लिया है. और इसी के साथ इस पैरा ओलंपिक्स में एक नाम काफी चर्चा में बना हुआ है और वो नाम है शीतल देवी (Sheetal Devi) का. शीतल देवी पैरा ओलंपिक्स के एक ही सत्र में दो स्वर्ण पदक जीत चुकी है और इसी के साथ वह भारत की पहली दो स्वर्ण पदक जीतने वाली महिला बन चुकी है. तो चलिए जानते है शीतल देवी की संघर्ष की कहानी।
Asian Games Para Olympics 2023: जन्म से ही दोनों हाथों से वंचित थी शीतल देवी
शीतल देवी का जन्म जम्मू कश्मीर के किश्तवाडा जिले के गॉंव लोई धार में हुआ था. वह जन्म से ही दोनों हाथों से विकलांग थी.दरअसल जब उनका जन्म हुआ था तब वह एक ऐसे विकार से ग्रसित थी जिसके कारण उनके शरीर का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाया लेकिन विकलांग होने के बावजूद उन्होंने अपने आप को कभी भी दूसरों से अलग नहीं समझा।वह एक गरीब परिवार से थी उनके पिता किसान थे साथ ही उनकी माँ बकरियाँ चराया करती थी। बचपन में ही उन्हें सेना ने गोद ले लिए था. जब उनकी उम्र 16 वर्ष हुई तभी से उनके जीवन की नयी कहानी शुरू हुई।
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Sheetal Devi Archer Asian Games Para Olympics 2023 Biography
अफसर से तीरंदाज तक का सफर
बचपन से ही शीतल अफसर बनना चाहती थी लेकिन उनकी नियति उन्हें किसी और ही मोड़ पर ले जा रही थी. दरअसल 2021 में उन्होंने सेना के एक इवेंट में भाग लिया था. जहाँ उनकी मुलाक़ात एक एनजीओ अफसर से हुई थी. जिसके बाद एनजीओ ने शीतल के नकली हाथ लगाने के बारे में कहा लेकिन किसी कारणवश यह नहीं हो पाया।कुछ समय बाद सेना के अधिकारी ने कटरा स्थित माँ वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाज अकादमी के कोच कुलदीप विद्वान को शीतल देवी के बारे में बतया। इसके बाद शीतल ने तय किया की वह वही पर तीरंदाजी सीखेंगी।
लेकिन शारीरिक रूप से असाधारण होने की वजह से उनका मनोबल टूट गया लेकिन जब उन्होंने देखा की उनकी तरह भी कुछ ऐसे खिलाडी है जो अपने हाथों के बिना ही तीरंदाजी कर रहे है तभी से उन्होंने तय कर लिया की वह अपने पैरों की मदद से तीरंदाजी करेंगी।उनकी योग्यता को देखते हुए उनके कोच कुलदीप ने उनके लिए पैरों से चलने वाला एक विशेष धनुष तैयार करवाया। इसके बाद से ही शीतल ने अपनी मेहनत और साहस के दम पर कई प्रतियोगितओं में भाग लेना शुरू किया और यक़ीनन उन्हें सफलता भी हाथ लगी.
“गोल्डन फ़ीट गर्ल” शीतल देवी
शीतल देवी से “गोल्डन फ़ीट गर्ल” बनाने का सफर इतना आसान नहीं था. बिना हाथों के पैरों की सहायता से 27 किलो का धनुष उठाना काफी मुश्किल था लेकिन बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी उन्होंने लगातर कोशिश जारी रखी। इसके लिए वह पहले सुबह अकादमी में ट्रेनिंग के लिए जाती फिर वही से अपनी पढाई के लिए स्कूल जाती फिर स्कूल से छूटते ही अकादमी में ट्रेनिंग के लिए जाती। इसी के साथ स्कूल की जिस दिन छुट्टी रहती तो वह अपना पूरा दिन अकादमी में ही ट्रेनिंग के लिए गुजारती और उनकी इसी मेहनत का परिणाम था की वह 6 महीनो के अंदर ही तीरंदाजी में माहिर हो गयी.
देश की पहली विकलांग तीरंदाज बानी शीतल देवी
उन्होंने 2022 से खेलो में भाग लेना शुरू किया।2022 में उन्होंने पहली बार जूनियर नेशनल ओलंपिक्स में हिस्सा लिया था और इसी के साथ उनके खेल की दासता शुरू हो गयी. इसके बाद उन्होंने इसी साल जुलाई में हुए विश्व पैरा तीरंदाजी में भाग लिया। शीतल देवी ने इस बार के पैरा ओलंपिक्स में भी भाग लिया था और वह तीरंदाजी में दो सवर्ण पदक जीत कर इतिहास रच चुकी है.
दरअसल उन्होंने सिंगल कम्पाउंड और मिक्स्ड कपाउंड में गोल्ड जीता है और इसी के साथ वह ऐसा करने वाली भारत की पहली बिना हाथ वाली तीरंदाज बन चुकी है.इतना ही नहीं उन्होंने वीमेन डबलस में सिल्वर मैडल हासिल किया है.इसके बाद शीतल की नज़र 2024 में पैरिस में होने वाले पैरा ओलंपिक्स खेलो पर है।
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