SHARDEY NARAT 2025:”अर्गला”स्तोत्र देवी दुर्गा के अतिप्रिय स्तोत्र से करें मां को प्रसन्न

SHARDEY NARAT 2025 – “अर्गला” स्तोत्र देवी दुर्गा के अतिप्रिय स्तोत्र से करें मां को प्रसन्न – दुर्गा सप्तशती हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें देवी दुर्गा की महिमा और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन है। इस ग्रंथ का एक अत्यंत शक्तिशाली हिस्सा है अर्गलास्तोत्र, जो देवी के प्रति आह्वान और स्तुति का रूप है। यह स्तोत्र बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर कर सफलता, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

अर्गलास्तोत्र का महत्व
एक शक्तिशाली आह्वान – अर्गलास्तोत्र केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का आह्वान है। इसके पाठ से साधक के जीवन में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है और वह मानसिक व आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है।

करता है बाधाओं का निवारण – ‘अर्गला’ शब्द का अर्थ है ‘बाधा’। इस स्तोत्र का पाठ जीवन की सभी प्रकार की रुकावटों को दूर करता है, चाहे वे भौतिक हों, मानसिक हों या कर्मजनित।

मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए है शक्तिशाली – नियमित रूप से अर्गलास्तोत्र का पाठ करने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

नेगेटिविटी से हैं तंग तो सकारात्मक ऊर्जा देने वाला – यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मकता का संचार करता है, जिससे मन शांत और स्थिर रहता है।

दुर्गा सप्तशती का अभिन्न भाग – अर्गलास्तोत्र को दुर्गा सप्तशती का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। चंडी पाठ से पहले इसका पाठ करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है।

अर्गलास्तोत्र के पाठ के लाभ
आर्थिक समृद्धि और सफलता-धन, यश और प्रचुरता प्रदान करता है, नौकरी या व्यवसाय में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं।
मानसिक शांति और स्वास्थ्य – दिमाग को तेज करता है, मानसिक तनाव कम करता है और शरीर को स्वस्थ रखता है।
शत्रु और क्लेशों का नाश – शत्रुओं पर विजय दिलाता है और जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
सभी कार्यों में विजय – कार्यों में सफलता और किसी भी कार्य की सिद्धि प्रदान करता है।

इस मंत्र से करें ध्यान
ॐ बन्धूक कुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीं।
स्फुरच्चन्द्रकलारत्न मुकुटां मुण्डमालिनीं।।
त्रिनेत्रां रक्त वसनां पीनोन्नत घटस्तनीं।
पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात्।।
दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानितां।

संपूर्ण अर्गलास्तोत्र मंत्र
“अस्यश्री अर्गला स्तोत्र मंत्रस्य विष्णुः ऋषि: अनुष्टुप्छन्द:,श्री महालक्षीर्देवता,श्रीजगदम्बा,प्रीत्यर्थे सप्तशती पठां गत्वेन जपे विनियोग:।।
( हाथ में जल लेकर संकल्पित कार्य का स्मरण करें और ऊपर लिखा मंत्र पढ़ें फिर जल जमीन पर गिरा कर पूरा स्त्रोत पढ़ें)

ॐ नमश्चण्डिकायै मार्कण्डेय उवाच – ( घंटा – घड़ियाल ,शंख , बजाकर इसे पढ़ें )

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी-दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।1।।
ॐ जयत्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि-जय सर्वगते देवि काल रात्रि नमोस्तुते ।।2।।

मधुकैठभविद्रावि विधात्रु वरदे नमः -रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।3।।
महिषासुर निर्णाशी भक्तानां सुखदे नमः – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।4।।


धूम्रनेत्र वधे देवि धर्म कामार्थ दायिनि – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।5।।
रक्त बीज वधे देवि चण्ड मुण्ड विनाशिनि – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।6।।


 निशुम्भशुम्भ निर्नाशि त्रैलोक्य शुभदे नमः – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।7।।
 वन्दि ताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्य दायिनि – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।8।।


 अचिन्त्य रूप चरिते सर्व शतृ विनाशिनि-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।9।।
 नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।10।।


स्तुवद्भ्योभक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधि नाशिनि-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।11।।
चण्डिके सततं युद्धे जयन्ती पापनाशिनि-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।12।।


देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवी परं सुखं-रूपं धेहि जयं देहि यशो धेहि द्विषो जहि।।13।।
 विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियं-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।14।।


 विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।15।।
 सुरासुरशिरो रत्न निघृष्टचरणेम्बिके-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।16।।


 विध्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।17।।
 देवि प्रचण्ड दोर्दण्ड दैत्य दर्प निषूदिनि-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।


 प्रचण्ड दैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणतायमे-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।19।।
 चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र संस्तुते परमेश्वरि-रूपं देहि जयं देहि यशो
देहि द्विषो जहि।।20।।


 कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।21।।
 हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि-रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।22।।


 इन्द्राणी पतिसद्भाव पूजिते परमेश्वरि ,रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।23।।
 देवि भक्तजनोद्दाम दत्तानन्दोदयेम्बिके ,रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।24।।

भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीं – तारिणीं दुर्ग संसार सागर स्याचलोद्बवे।। 25।।

इदंस्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः- सतु सप्तशतीं संख्या वरमाप्नोति सम्पदाम।।26।।
(भार्या के स्थान पर लड़के-लड़कियां इच्छा यानी मनोकामना-विवाह हेतु इच्छित वर या कन्या का नाम लें )
 ।।इति श्री अर्गला स्तोत्रं समाप्तम्।।

अर्गलास्तोत्र के पाठ की विधि
संकल्प और ध्यान – सबसे पहले स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। देवी दुर्गा का ध्यान करें, दीपक जलाएं और संकल्प लें।
नियमितता – नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से इसका पाठ करें या रोज़ाना समय निकालकर इसका नियमित जाप करें।
योग्य आचार्य से पाठ – यदि आप स्वयं नहीं कर सकते, तो किसी योग्य आचार्य से करवाना भी शुभ फल देता है।

विशेष – अर्गलास्तोत्र न केवल एक आध्यात्मिक साधना है बल्कि जीवन में सफलता और मानसिक शांति प्राप्त करने का शक्तिशाली माध्यम है। इसका नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शक्ति और आत्मबल का संचार करता है। यदि आप अपने जीवन में बाधाओं को दूर कर सकारात्मकता लाना चाहते हैं, तो अर्गलास्तोत्र का नियमित जाप या श्रवण आपके लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है।

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