गुरु को बिना देखे ही साधते रहे सुर, शब्बीर कुमार !

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Shabbir Kumar’s Melodious Singing: जिन्हें गुरु मानते थे उन्होंने सामने बैठ कर नहीं सिखाया क्योंकि, उनके गुरु थे, मोहम्मद रफी,लता मंगेशकर और किशोर कुमार जो हम सबके लिए गाते थे पर हम सबसे बहोत दूर बैठकर जिन्हें हम ,प्रसार माध्यमों से सुनते थे और उन्हें क्या खबर कि कोई उनके गाने सुनकर उनसे यूं सीख रहा है जैसे वो उनके सामने बैठे हों, और बखूबी उनके गाने के उतार चढ़ाव को हुबहू गाकर अपनी पेंटिंग में रंग भी भर रहा है जी हां ये थे शब्बीर कुमार जिनके लिए रेडियो पर मोहम्मद रफी साहब के गाने सुनना ऐसा था जैसे सांस लेना ,और इसपर अफ़सोस ये कि मो.रफी जी ने कभी उन्हें देखा भी नहीं था और दूसरी तरफ इस शिष्य के मन में उन्हें देखने की इच्छा ऐसी थी मानों कोई बरसों से प्यासा हो ये तड़प ये दीद की प्यास लिए जब शब्बीर दोस्तों के कहने पर ऑर्केस्ट्रा में गाने लगे तो उन्हें उस स्टूडियो का पता चला जहाँ, सभी गायक और संगीतकार गाने रिकॉर्ड करने जाते थे बस फिर क्या था उनके मन में दर्शन की आस जगी और शब्बीर वहाँ घंटों इस इंतज़ार में खड़े रहने लगे कि शायद कभी मो. रफी जी भी वहाँ आयेंगे और उनसे मुलाक़ात हो जाएगी और एक दिन स्टूडियो के बाहर पान वाले से उन्हें पता चला कि आज मो. रफी आए हैं तो वो घंटों बाहर खड़े रहे और किसी तरह जब उन्हें मोहम्मद रफी साहब को देखने का मौका मिला तो वो उन्हें देखते ही रह गए फिर उनके हाँथ , मन में उभरी अपने गुरु की छवि को हक़ीक़त से मिलाते हुए काग़ज़ पे उतारने लगे और जब वो तस्वीर बनकर तैयार हो गई तो अपने गुरु यानी मो. रफी साहब को सौंप दी इस वक़्त उनके दिल की ख़ुशी आँसुओं की शक्ल इख़्तेयार कर चुकी थी और उसकी धार रोके नहीं रुक रही थी ,तो मो. रफी साहब ने शफ़क़त से कहा आप शब्बीर जी हैं, मैंने सुना है आप बहोत अच्छा गाते हैं और तस्वीर देखकर बोले अरे ये तो मै हूँ और बहोत खुश होकर ऑटो ग्राफ दे दिए फिर चले गए पर उनका मुस्कुराता चेहरा दिलकश आवाज़ और लहजे में छुपी मासूम मुस्कान शब्बीर जी के दिल में हमेशा के लिए बस गई।

ऑर्केस्ट्रा में गाते – गाते मिल गया फिल्मों में गाने का मौक़ा :-

26 अक्टूबर 1954 को गुजरात के वडोदरा में पैदा हुए शब्बीर कुमार की आवाज़ में एक अलग जोश दिल को छू लेना का माद्दा है जिसे सबसे पहले उनके दोस्तों ने महसूस किया और उन्हें ऑर्केस्ट्रा तक ले आए इसके बाद वो ,”एक शाम रफी के नाम” शो में गाने लगे जहां उन्हें संगीतकार ऊषा खन्ना जी ने सुना और फिल्म ‘तजुर्बा’ में गाने का मौका दिया ,फिर क्या था जैसे ही वो बतौर पार्श्व गायक पहली बार आए तो उनकी दमदार और दिलनशीं आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया , फिर कुछ ऐसी फिल्में आईं जो शब्बीर कुमार के गीतों की वजह से हमारे मानसपटल पर अलग दौर रेखांकित करती हैं उनकी आवाज़ कुदरती तौर पर इतनी मुख़्तलिफ़ और पुर असर है कि बहुत ही कम वक्त में उन्होंने अपना नाम भारतीय सिनेमा पर स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया उनके गाए गीतों से सजी कुछ सुपर हिट फिल्मों में हमें सबसे पहले याद आती है ‘ कुली ‘ फिर ‘ बेताब ‘,’ तेरी मेहरबानियाँ ‘ ,’ प्यार झुकता नहीं ‘ और ‘ मर्द ‘ जैसी और भी सुपरहिट फिल्में।

रफ़ी साहब की दुआ का असर थी शब्बीर कुमार की कामियाबी :-

पर शब्बीर कुमार की नज़र में ये कामियाबी उन्हें उनकी मेहनत से नहीं बल्कि रफ़ी साहब की दुआ से मिली है जो किसी करिश्में से कम नहीं है ,क्योंकि वो कहते हैं कि “सन 1980 में जब रफी साहब का इंतकाल हुआ था तब वो बड़ोदा में थे और जैसे ही उन्हें रफी साहब के गुज़रने की खबर मिली वो उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंच गए और रफी साहब को ख़ाक ए सुपुर्द करने के लिए नम आँखें लिए आगे आए उन्हें अपना होश न था कि तभी जाने कैसे उनकी घड़ी और क़लम में धक्का लगा और वो रफी साहब के साथ ही दफ्न हो गए और बस उसके बाद जैसे मेरे वक्त और तक़दीर को रफी साहब ने अपनी दुआओं से संंवार दिया इसके बाद ही मुझे ‘ एक शाम रफी के नाम ‘ शो में गाने का मौका मिला और ऊषा खन्ना जी ने मुझे अपने संगीत निर्देशन में आए गीतों को गाने के काबिल समझा,बस तब से मेरे गानों का जो सिलसिला चला वो आज तक जारी है।” वो अब भी देश विदेश में अपने शोज़ करते रहते हैं और लोग पूरी पुर जोशी से उन्हें सुनते हैं।

मोहम्मद रफ़ी पुरस्कार से मिली दिल को राहत :-

उनके आखिरी हिट गाने हैं ,’आज का अर्जुन’ (1990) से ‘गोरी है कलाइयां…. और ‘घायल’ (1990) से ‘सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा….’ । इसके बाद शब्बीर साहब स्टेज शो और अपने निजी एल्बमों पर ज़्यादा ध्यान देने लगे।
उन्होंने हिंदी, उर्दू, सहित कई भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी गाने गाए हैं ,इस तरह आपने अभी तक 1500 से अधिक फिल्मों में 6 हज़ार से अधिक गाने गए हैं। इनमें कुछ गीत तो ऐसे हैं जिन्हें आप ज़रा सा गुनगुनाएंगे तो उनकी दिलनशीं आवाज़ में खोए बिना नहीं रहेंगे क्योंकि ये हमारे नायक के हर जज़्बात को हम तक बखूबी पहुंचाने का माद्दा रखते हैं ,यक़ीन न आए तो गुनगुना के देख लीजिए – “सारी दुनिया का बोझ…” “जवाब हम देंगे ‘फिल्म से “हैरान हूं मैं. ..” , जिसमें आपका साथ दिया है ,अनुराधा पौडवाल ने , फिल्म ‘डकैत का’ “मेरे यार को मेरे अल्लाह …” , लता मंगेशकर के साथ ‘कुदरत का कानून ‘से “तुझे इतना प्यार करे. …” ‘आग ही आग’ फिल्म से “साजन आजाओ वादा ये. ..”
‘तेज़ाब’ फिल्म से “सो गया ये जहाँ” , नितिन मुकेश के साथ, फिल्म ,’हमारा खानदान’ से “मैंने भी एक गीत लिखा है. ..”
फिर फिल्म ‘आज का अर्जुन का’ “गोरी है कलाइयां। ..” , को हम कैसे भूल सकते हैं , ‘मर्द’ का ,मदीने वाले से मेरा सलाम
कहना …। ‘राधा का संगम’ फिल्म से “ओ राधा तेरे बिना…” ,’शोला और शबनम ‘से “तू पागल प्रेमी आवारा” और 2010 में रुपहले पर्दे पर आई, ‘हाउसफुल’ से “आई डोंट नो व्हाट टू डू. ..” गाने को ज़रा दिल थाम के सुनियेगा इसमें उनका अलग अंदाज़ आपको और दीवाना बना देगा ।
शब्बीर कुमार साहब के दिल के अरमान पूरे हुए जब उन्हें मोहम्मद रफ़ी पुरस्कार”, से सम्मानित किया गया इसके बाद तो , सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के रूप में कई पुरस्कारों के साथ उन्हें “कला रतन पुरस्कार” से भी नवाजा़ गया। आखिर में बस इतना कहेंगे कि , उनका ये कारवाँ यूँ ही चलता रहे और वो ऐसे ही अपने नग़्मों से हमें लुत्फ अंदोज़ करते रहें।

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