Saphala Ekadashi 2024: कब है सफला एकादशी? जानें महत्व और मुहूर्त

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Saphala Ekadashi 2024: प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने से जातक को जीवन में चल रही समस्याओं से छुटकारा मिलता है साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं सफल एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में.

Saphala Ekadashi 2024: सनातन धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के लिए समर्पित है. साल में कुल 24 एकादशियां मनाई जाती हैं। शास्त्रों में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी तिथि पर सच्चे मन से श्रीहरि और माता लक्ष्मी का व्रत करने से इंसान को जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है. प्रत्येक वर्ष पौष माह में सफला एकादशी (Saphala Ekadashi 2024) मनाई जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सफला एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है. तो चलिए आज हम आपको इसका महत्व, मुहूर्त आदि के बारे में बताएंगे।

सफला एकादशी 2024 मुहूर्त

Saphala Ekadashi 2024 Muhurat: हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 29 मिनट पर (Saphala Ekadashi 2024 kab hai) होगी। वहीं एकादशी तिथि की समाप्ति 27 दिसंबर की रात 12 बजकर 43 मिनट पर होगी। लेकिन व्रत 26 दिसंबर को ही रखा जाएगा। सफला एकादशी का पालन करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है. साथ ही भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी की व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी अत्यंत पुण्यकारी होता है. यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति देता है. बता दें कि सफला एकादशी को साल की अंतिम एकादशी (2024 ki last ekadashi) होती है.

सफला एकादशी व्रत कथा

Saphala Ekadashi Vrat Katha: पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा महिष्मान के 4 पुत्र थे. उनमें से एक पुत्र बेटा दुष्ट और पापी था. साथ ही वह बुरे कामों में लिप्त रहता था, जिसकी वजह से उसे राजा ने राज्य से निकाल दिया था. इसके बाद वह जंगल में जाकर मांस का सेवन करने लगा था. वह एकादशी के दिन जंगल में संत की कुटिया पर पंहुचा तो उसे संत ने अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद उसके चरित्र में बदलाव (Saphala Ekadashi Vrat Katha in hindi) आने लगा. संत के कहने पर उसने एकादशी व्रत किया और फिर संत ने लुम्पत के पिता महिष्मान का वास्तविक रूप धारण किया। इसके बाद लुम्पत पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी का व्रत करने लगा.

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