लोकसभा इलेक्शन से पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने दिया इस्तीफ़ा

arun goyal

जल्द ही आचार संहिता लगने वाली है. अब चुनाव का पूरा जिम्मा मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के कंधे पर आ गया है. चुनावी तैयारियों के लिए कई राज्यों के दौरे पर अरुण गोयल मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ रहे. अब उन्होंने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उनका कार्यकाल अभी 2027 तक था.

लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरो-शोरो पर हैं. जल्द ही आचार संहिता की तारीख भी सामने आने वाली है. इसी बीच चुनाव आयुक्त अरुण गोयल (Arun Goyal) ने इस्तीफ़ा दे दिया है. उनका कार्यकाल अभी 2027 तक था. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया है. निर्वाचन आयोग में पहले से ही चुनाव आयुक्त का एक पद खाली था. चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे इस साल फरवरी में सेवानिवृति हुए थे. अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद अब केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ही बचे हैं. बता दें कि भारतीय निर्वाचन आयोग में चीफ इलेक्शन कमिश्नर के अलावा दो इलेक्शन कमिश्नर होते हैं.

चुनावी जिम्मा अब मुख्य निर्वाचन आयुक्त के कंधे पर

अब चुनावी व्यवस्था का पूरा जिम्मा मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार (Rajiv Kumar) के कंधों पर आ गया है. चुनावी तैयारियों के लिए कई राज्यों के दौरे पर अरुण गोयल (Arun Goyal) मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ-साथ रहे. अब उन्होंने अचानक अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय की इस संबंध में 9 मार्च को जारी एक गजट अधिसूचना में कहा गया ‘राष्ट्रपति ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, जो 9 मार्च 2024 से प्रभावी माना जाएगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 की धारा 11 के खंड (1) के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त, किसी भी समय राष्ट्रपति को लिखित रूप में इस्तीफ़ा सौंपकर अपना पद छोड़ सकता है. भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने से पहले अरुण गोयल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे. उनकी नियुक्ति विवादों में रही थी और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

विवादों में रही अरुण गोयल की नियुक्ति

अरुण गोयल 1985 बैच के आईएएस अधिकारी रहे हैं. उन्होंने 18 नवंबर, 2022 को वीआरएस ले लिया था. इसके अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा था ‘आख़िरकार किस बात की जल्दबाजी थी, जो स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के अगले ही दिन अरुण गोयल को इलेक्शन कमिश्नर पद पर नियुक्ति दे दी गई. कानून मंत्री ने शॉर्टलिस्ट किए गए नामों की सूची में से चार नाम चुने। फ़ाइल 18 नवंबर को विचार के लिए रखी गई उसी दिन आगे बढ़ा दी गई. यहां तक कि पीएम मोदी ने भी उसी दिन नाम की सिफारिश कर दी. हम कोई टकराव नहीं चाहते, लेकिन यह सबकुछ बहुत जल्दबाजी में किया गया.

वह 15 महीने इस पद पर रहे. सुप्रीम कोर्ट में फ़ाइल तलब होने के अलावा उनके प्रति कोई विवाद, सरकार या फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ किसी मतभेद की कोई सुगबुगाहट नहीं सुनी गई. पिछले चार साल में अशोक लवासा के बाद ये दूसरे निर्वाचन आयुक्त हैं, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. हालांकि अशोक लवासा के पद पर रहते मुख्य निर्वाचन आयुक्त साथी निर्वाचन आयुक्त के साथ उनके मतभेदों के किस्से सार्वजनिक थे. अगस्त 2020 में लवासा ने चुनाव आयुक्त पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्हें रशियन डेवलपमेंट बैंक के उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. पिछले चार महीने चर्चा थी कि सरकार निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून का प्रयोग कर सकती है. लेकिन प्रक्रिया किन्हीं कारणवश आगे नहीं बढ़ पाई. बताया गया कि निर्वाचन आयुक्तों के चयन में सीजेआई का नाम समिति की सिफारिश में नहीं रखा गया था.

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