न्याज़िया
बॉलीबुड। ज़माना कुछ नहीं बस मैं हूं और मेरी काबिलियत ,कोई गिराता है कोई उठाता है बस यही है दुनिया की हक़ीक़त ये फलसफा है आर डी बर्मन का, जी हां आज हम बात करेगें फिल्म संगीत में नई परंपरा का सूत्रपात करने वाले संगीतकार आर डी बर्मन की, जिनकी संगीत शैली काफ़ी अलग थी क्योंकि आर डी वर्मन हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय संगीत को एक अलग पहचान मिली पर उनके पिता सचिन देव बर्मन को पाश्चात्य संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था।
पिता से सीखीं संगीत की बारीकियां
आर डी बर्मन ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर संगीत सहायक की, शुरुआती दौर में वो अपने पिता के ही सहायक थे। उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू भी बिखेरा कुछ ,गीतो के ज़रिए ,जो आगे चलकर नायाब नग़्मों की फेहरिस्त में शामिल हुए जैसे महबूबा महबूबा और , यम्मा यम्मा। याम्मा यम्मा गीत गाते वक्त कहते हैं उनके गले में थोड़ी खराश थी लेकिन मो. रफी के कहने पर उन्होंने इस गीत का मुखड़ा गा दिया और ये गीत सुपरहिट हो गया और अब इस गीत को गौ़र से सुनने के बाद हमारे ज़हेन में एक ये भी बात आती है कि इन्हें कहते हैं पंचम दा पर ये गाते वक्त खरज का इस्तेमाल करते हैं , उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बाकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था।
इन फिल्मों का किए थें निर्देशन
संगीतकार के रूप में आर डी बर्मन की पहली फिल्म 1961 की छोटे नवाब थी जबकि पहली सफल फिल्म 1966 की तीसरी मंज़िल थी। सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन ने लता मंगेशकर , आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े कलाकारों से अपनी फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपना संगीत दिया। जिसमें कटी पतंग काफी सफल रही, फिर क्या था ,कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…दम मारो दम.. जैसे अनगिनत लोकप्रिय गानों का संगीत देने वाले राहुल देव बर्मन एक सफल संगीत निर्देशक बन गए। जिन्हें हिंदी संगीत जगत के सबसे महान और सबसे सफल संगीत निर्देशकों में से एक माना जाता है।
महज़ नौ साल की उम्र में बनाई थी मशहूर धुन
27 जून 1939 को पैदा हुए आर.डी. बर्मन मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन के बेटे थे जिससे संगीत उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिला। कोलकाता में जन्मे राहुल देव बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन को भी बॉलीवुड के महान संगीतकारों में गिना जाता है , आर डी बर्मन को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। पंचम दा जब महज नौ साल के थे तब उन्होंने अपना पहला गाना ऐ मेरी टोपी पलट के आ, कंपोज़ किया था, जिसका इस्तेमाल उनके पिता ने 1956 की फिल्म फंटूश में अपने बेटे से ये कहकर किया की मैं देखना चाहता था की लोग तुम्हारे संगीत को कितना पसंद करते हैं । एक और गीत की धुन उन्होंने बचपन में बना ली थी ,जिसे उनके पिता ने 1957 की फिल्म प्यासा में इस्तेमाल किया ,गीत था सर जो तेरा चकराए , आर डी बर्मन ने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद और समता प्रसाद से तबला बजाना सीखा वो माउथ ऑर्गन भी बहोत अच्छा बजाते थे और सलिल चौधरी को अपना गुरु मानते थे ।
महमूद ने दिया था पहला मौका
पिता जी के संगीतकार होने के बावजूद राहुल देव बर्मन को पहला मौका महमूद ने दिया था और स्वतंत्र संगीतकार के रूप में उन्होंन छोटे नवाब में काम किया। अपने फिल्म के गीतों को लता मंगेशकर से गवाना चाहते थे पर लता जी की उनके पिता सचिन देव से कुछ अनबन हो गई थी और वो रिहर्सल के लिए उनके घर नहीं आना चाहती थी, इसलिए उन्होंने शर्त रख दी कि वो घर के अंदर नहीं, आएंगी और मजबूरन आर डी बर्मन ने उनकी शर्त मानी फिर घर के बाहर बैठ कर गीत ,घर आजा घिर आए बदरा तैयार किया गया, आराधना फिल्म का संगीत बनाते समय सचिन देव बीमार थे और कम ही काम कर पा रहे थे ,इस वजह से राहुल जी ने बहोत योगदान दिया। फिल्म की धुनें पूरी करने में ,फिल्म का संगीत सुपर डुपर हिट रहा और आर. डी के पैर धीरे-धीरे बॉलीवुड में जमने लगे ,मेरे सपनो की रानी गीत से राजेश खन्ना और किशोर कुमार सफलता की सीधी चढ़ गए। पर जब आर डी बर्मन ने हारे रमा हरे कृष्ण फिल्म के गीत दम मारो दम का संगीत बनाया तो पिता जी स्टूडियो से बाहर चले गए उन्हें लगा की सचिन मेरी संगीत शैली नहीं अपना रहे हैं।
गुलज़ार ने एक इंटरव्यू में कहा था।
पंचम के संगीत में नवीनतम प्रयोग होते थे ,वो वेस्टर्न और अरेबिक के साथ भारतीय संगीत को मिलाकर नई धुनों को तैयार करते हैं यानी वो बेहद एक्सपेरिमेंटल रहे हैं, इसलिए आज भी उनका संगीत पुराना नहीं लगता। पर उनमें बड़ा उतावलापन था उनकी हिंदी कमज़ोर थी और मेरी पोएट्री ,एक दिन मुझसे पूछ बैठे कि तुमने ये जो गीत में लिखा है तिनकों के नशेमन में ,तो ये नशेमन किस शहर का नाम है। एक और अजीबो-ग़रीब वाक़ेआ हुआ रणधीर कपूर के साथ जब वो आर डी बर्मन के घर गए और देखा की वो अपने सहायक के साथ मिलकर आधी भरी बीयर की बोतलों में मुंह से फूक मार रहे हैं, उन्हें लगा ये तो बौरा गए हैं और वो वहां से चले आए ,कुछ दिनों बाद शोले फिल्म रिलीज़ हुई और रणधीर फिल्म देखने गए और जब महबूबा गाना शुरू हुआ तो उन्हे फौरन याद आ गया की ये तो वही आवाज़ें हैं जो आर डी उस दिन बोतलों से निकाल रहे थे। एक और किस्सा उनके प्रयोगात्मक होने का, कि आर डी, राकेश बहल के साथ रात में ट्रेवल कर रहे थे, उस वक्त मुंबई में काफी ट्रैफिक था तो गाड़ी रुक-रुक कर चल रही थी ,बार बार ब्रेक लगाना पड़ रहा था तब पंचम दा ने ब्रेक रन के साउंड को पकड़ा और गीत, तेरे बिना जिया जाए न का ओपनिंग म्यूज़िक बना दिया।
पंचम नाम के पीछे की कहानी
कहते हैं नाम में कुछ नहीं रखा होता। पर नाम ही सब कुछ होता है। आर.डी. बर्मन का नाम पंचम दा कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। वैसे आपको बता दें कि उन्हें ये नाम दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार ने दिया था। आर.डी. बर्मन जब भी किसी धुन को गुनगुनाते थे, तो वह अक्सर प शब्द का इस्तेमाल किया करते थे। उनकी इसी आदत को अशोक कुमार ने नोटिस कर लिया और सरगम में प पांचवें स्थान पर आता है। जिसके बाद अशोक कुमार ने उन्हें पंचम नाम दिया और राहुल देव पंचम दा बन गए। धीरे-धीरे ये नाम इतना लोकप्रिय हो गया कि दुनिया भर में सभी लोग उन्हें राहुल नाम से कम और पंचम दा के नाम से ज़्यादा जानते हैं पंचम नाम पड़ने के पीछे एक और भी कहानी मशहूर है वो ये कि.उनका नाम पहले ‘टु बलू’ था. और जब वो बचपन में रोया करते थे, तो उनके रोने का स्वर सरगम के ‘प’ की तरह सुनाई देता था. इसलिए उनकी नानी ने उनका नाम रख दिया. पंचम ,पंचम दा का फिल्मी सफर कुछ ऐसा रहा कि उन्होंने अपने समय के सर्वश्रेष्ठ निर्माता-निर्देशक और अभिनेता के साथ काम किया।
पहली फिल्म रह गई थी अधूरी
आर.डी. बर्मन को करियर का पहला ब्रेक 1959 में मिला था। उस फिल्म का नाम राज़ था। लेकिन ये पूरी न हो सकी और बीच में ही बंद हो गयी। इसके दो साल बाद फिल्म छोटे नवाब में संगीत देने का मौका मिला। बाद में 1965 में भूत बंगला में पंचम ने एक्टिंग भी की थी। लेकिन पंचम को असली पहचान फिल्म तीसरी मंज़िल से मिली। जिसका संगीत लोगों को बहुत पसंद आया। इस फिल्म के गाने लोग आज भी गुनगुनाते हैं जिनमें ओ हसीना जु़ल्फों वाली जाने जहां..ष्, ओ मेरे सोना रे…, दीवाना मुझसा नहीं. जैसे हिट गाने इस फिल्म में पंचम दा ने दिए थे। इसके बाद पंचम दा ने फिर पीछे मुड़ के नहीं देखा।
सचिन देव को पुकारा गया ,बेटे के नाम से
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले विख्यात म्यूज़िक डायरेक्टर वनराज भाटिया ने एक इंटरव्यू में कहा था, पंचम एक जीनियस म्यूज़िक डायरेक्टर थे, उनके पिता महान संगीतकार सचिन देव बर्मन मुंबई के जूहू में एक पार्क में सुबह के समय अक्सर टहलने जाया करते थे। एक दिन वो सुबह टहलकर घर आए और पंचम से बोले, पंचम, आज मैं बहुत खुश हूं, पंचम दा ने बताया था कि मैं हैरान था कि पिता जी क्या कह रहे हैं? वैसे तो रोज़ सुबह उठकर ताने देते थे कि देर तक सोता है, आज अचानक पिता जी को क्या हो गया है! तब उन्होंने आगे की बात बताई कि पिता जी ने कहा कि पंचम, जब मैं पार्क में टहलने जाता हूं तो लोग अक्सर कहते हैं कि देखो, एस डी बर्मन जा रहे हैं। लेकिन आज तो कमाल ही हो गया, लोग कह रहे थे कि देखो, आर डी बर्मन के पिता जा रहे हैं। बेटे के ज़रिए मिला ये वो सुख है जिसका अरमान हर बाप के दिल मे होता है, तीन दशकों तक हिंदी सिनेमा में अपना दबदबा बनाए रखने वाले बर्मन ने करीब 331 फिल्मों में संगीत दिया. सिनेमा में सुपरस्टार राजेश खन्ना की अदाकारी , किशोर की आवाज़ और पंचम दा के संगीत को तिकड़ी बहुत चर्चित थी. इन्होंने मिलकर करीब 32 फिल्मों में काम किया. यादों की बारात, हीरा पन्ना , अनामिका आदि जैसे बड़ी फिल्मों में उनका ही संगीत है।
आख़री सफ़र पर जाने से पहले हारी बाज़ी फिर जीत ली।
एक ऐसा गैर-गुजरा वक्त भी आया
60 से 80 के दशक में करीब 20 सालों तक फिल्म इंडस्ट्री में राज करने वाले संगीतकार पर अब वो दौर आ गया कि उनकी पहली सुपर हिट फिल्म तीसरी मंज़िल से उनका साथ देने वाले निर्माता नासिर हुसैन भी अपनी फिल्मों में उनका संगीत लेने को तैयार नही थे क्योंकि साल 1985 में आरडी बर्मन के करियर में काफी बदलाव आया। उस दौरान कई फिल्में असफल रही थी । जिसका कारण आरडी के संगीत को ठहराया गया। इसी दौरान 90 के दशक में आई फिल्म 1942 अ लव स्टोरी के लिए विधु विनोद चोपड़ा पंचम दा से संगीत बनवाना चाहते थे लेकिन म्यूज़िक कंपनी एच एम वी के अधिकारियों ने मना कर दिया पर निर्माता विधु अड़े रहे और पंचम दा ने नाइन टीज़ के लटकों झटकों से भरी तड़कती भड़कती धुन तैयार कर दी पर वो धुन विधु को पसंद नहीं आई और पंचम काफी निराश हो गए तब उन्होंने कहा अगर मैं अभी भी इस फिल्म का संगीत दे रहा हूं तो मुझे एक मौका और दे दीजिए और उन्हें जो जवाब मिला वो हम आपको बता ते हैं क्योंकि इस जवाब में वो हाँस्ला अफजा़ई थी जिसने पंचम को खुद पंचम से उस वक्त मिलवाया जब वो खुद को भूल चुके थे अंदर से टूट चुके थे निराश हो चुके थे ,विधु ने कहा आप साल ले लीजिए मगर वो संगीत दीजिए जो केवल पंचम ही दे सकता है और ऐसा हुआ भी उन्होंने नए सिरे से इस फिल्म का संगीत बनाया और ये फ़िल्म सबसे बड़ी म्यूज़िकल हिट साबित हुई और फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी अपने अपने नाम किया पर पंचम ये सम्मान नहीं ले सके ,क्योंकि साल 1988 में ही आर डी बर्मन को दिल का दौरा पड़ा था। जिसके बाद लंदन में उनका इलाज कराया गया। इलाज के दौरान भी आर डी बर्मन ने कई धुनें बनाईं पर दिल की बीमारी के चलते 54 साल की उम्र में,वर्ष 1994 में महान आर डी बर्मन नई सुर लहरियों को तलाशते हुए इस दुनिया से दूर चले गए। पर वो अपने गीतों के ज़रिए हमेशा हमारे दिल के क़रीब रहेंगे ।
चर्चित रही ये फिल्में
आर डी वर्मन ने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया जिसे हमारी युवा पीढ़ी भी पसंद करती है। आज भी फिल्म उद्योग में उनके संगीत को बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। राहुल देव बर्मन की संगीत यात्रा को उनकी फिल्मों के ज़रिए अगर हम याद करें तो कुछ फिल्मे फौरन ही हमारे ज़हेन में दस्तक देती हैं जैसे 1966 की तीसरी मंज़िल् ,1968 की पड़ोसन, 1971 की,हरे रामा हरे कृष्ना, 1971 की अमर प्रेम, 1972 की सीता और गीता ,1972 की ही मेरे जीवन साथ ,1975 की शोले, 1975 की ही दीवार, 1979की नौकर, 1977 हम किसी से कम नहीं ,1980 खूबसूरत, 1981 कालिया , 1981 की ही नरम गरम, 1982 नमकीन, 1982 की ही तेरी कसम, 1983 पुकार ,1989 परिन्दा और 1994 अ लव स्टोरी।
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों की बात करें तो आप
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक चुने गए 1983 में फिल्म – सनम तेरी कसम के लिए, 1984 – में – मासूम के लिए और 1995 – में -मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया। 1942 अ लव स्टोरी फिल्म के लिए उनकी याद में, 27 जून 2016 को उनके 77वें जन्मदिन की सालगिरह पर, ळववहसम ने अपने भारतीय होम पेज पर आरडी बर्मन का डूडल बनाया था ।
ये फिल्मे कहती हैं कि,पंचम दा सिर्फ़ संगीतकार नहीं संगीत जगत के भगवान हैं, आज के अत्याधुनिक स्टूडिओ अगर उनके टाइम पर होते तो क्या मालूम वो क्या और कुछ नायाब रच देते आज के समय में अत्याधुनिक संगीत के साज़ ओर रिकॉर्डिंग स्टूडियो हैं मगर पंचम दा जैसा संगीत नहीं ,उनके चाहने वाले आज भी उनकी धुनों के मुक़ाबिल किसी और धुन को नहीं रख पाते तो आइए उनकी एक ऐसी ही दिलनशी धुन को गुनगुनाते हैं और खो जाते हैं उनकी धुनों की उड़ान में मौसिकी के दिलकश संसार में ।