Pitra Paksha 2025 : पितरों को प्रसन्न करने के प्रभावी मंत्र,विधि और उपाय

Pitra Paksha 2025 : पितरों को प्रसन्न करने के प्रभावी मंत्र,विधि और उपाय – हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह सोलह दिन की अवधि हमारे पूर्वजों को स्मरण करने, उन्हें श्रद्धांजलि देने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का समय है। इस अवधि में किए गए श्राद्ध, तर्पण, दान और मंत्रजाप से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। कहा जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से धरती पर आते हैं और हमारे द्वारा किए गए कर्मों से संतुष्ट होकर हमें आशीर्वाद देते हैं। यदि पितरों का आशीर्वाद मिल जाए तो जीवन की अनेक बाधाएं दूर हो जाती हैं और घर में सुख-शांति का वास होता है। पितृपक्ष में केवल कर्मकांड ही नहीं, बल्कि शुद्ध मन और श्रद्धा भी आवश्यक है। इस लेख में हम पितृपक्ष में किए जाने वाले प्रमुख मंत्र, उनकी विधि और फल, साथ ही कुछ विशेष उपायों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

पितृपक्ष का महत्व – पितृपक्ष को “श्राद्ध पक्ष” भी कहा जाता है। यह भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलता है। पुराणों के अनुसार, जिन लोगों ने अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण या दान नहीं किया होता, उन्हें जीवन में पितृदोष का सामना करना पड़ता है। यह दोष जीवन में रुकावट, आर्थिक संकट, संतान संबंधी समस्या, मानसिक अशांति जैसी बाधाओं का कारण बन सकता है।

शास्त्रों में कहा गया है –
यत्कृतं पितृकर्माणि श्राद्धं तर्पणमेव च।
तैः पितरः प्रसीदन्ति तस्मादेतत्समाचरेत्॥”
– अर्थात, पितरों के लिए किया गया श्राद्ध और तर्पण उन्हें प्रसन्न करता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष में किए जाने वाले प्रमुख मंत्र
पितृ गायत्री मंत्र – ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृः प्रचोदयात्।
विधि – पितरों का तर्पण करते समय, जल अर्पित करते समय या श्राद्ध के अवसर पर इस मंत्र का जाप करें,मंत्र जप के समय मन को शांत रखें और पितरों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें। 11, 21 या 108 बार जप करना श्रेष्ठ माना गया है।
फल – पितरों की आत्मा को शांति मिलती है,पितृदोष का शमन होता है। जीवन की रुकावटें और बाधाएं दूर होकर परिवार में समृद्धि आती है।

पितृ देवता स्तोत्र मंत्र – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः॥
विधि – प्रतिदिन स्नान के बाद और रात में सोने से पहले इस मंत्र का जाप करें, इसे शांत वातावरण में बैठकर करें।
फल – पितरों और देवी-देवताओं दोनों की कृपा प्राप्त होती है। घर-परिवार में सकारात्मकता, शांति और सुख का वातावरण बनता है।
श्राद्ध मंत्र – ॐ श्राद्धाय स्वधा नमः।
विधि – श्राद्ध कर्म के दौरान भोजन या अर्पण करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें,इसे श्रद्धा और पूर्ण ध्यान के साथ बोलें।
फल – पितरों के प्रति आदर और कृतज्ञता व्यक्त होती है,पितृलोक में पितरों को संतोष और शांति प्राप्त होती है।

अन्य महत्वपूर्ण उपाय – श्रीमद्भागवत गीता का पाठ – गीता के सातवें अध्याय का पाठ पितृपक्ष में अत्यंत लाभकारी माना जाता है,यह पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है और पितृदोष को समाप्त करता है।

गंगा चालीसा का पाठ – गंगा चालीसा का पाठ करने से पितरों की आत्मा को विशेष शांति मिलती है,यदि संभव हो तो गंगा जल से तर्पण करें।

पंचबली दान – पितरों की तृप्ति के लिए पंचबली दान करने की परंपरा है। इसमें

  • गाय को अन्न देना
  • कुत्ते को रोटी खिलाना
  • कौवे के लिए भोजन रखना
  • चींटियों को आटा या चीनी डालना
  • पीपल वृक्ष की जड़ में जल और अन्न अर्पित करना शामिल हैं।

तामसिक भोजन से परहेज – पितृपक्ष में लहसुन-प्याज, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से बचना चाहिए। सात्त्विक भोजन करें और दूसरों को भी भोजन कराएं।

पितृपक्ष में सावधानियां – इस अवधि में विवाह, मुंडन, नया घर लेना, नए कपड़े पहनना या बड़ी खरीदारी से बचें। बाल और नाखून काटने से परहेज करें,क्रोध, झूठ और विवाद से दूर रहें।

विशेष – पितृपक्ष केवल कर्मकांड का समय नहीं है, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। जब हम श्रद्धा से पितरों को याद करते हैं, तो वे हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ गायत्री मंत्र, पितृ देवता स्तोत्र और श्राद्ध मंत्र के जप से पितरों की आत्मा तृप्त होती है। इसके साथ ही श्रीमद्भागवत गीता, गंगा चालीसा का पाठ और पंचबली दान जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं। यदि इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा, नियम और विश्वास के साथ किया जाए तो पितृदोष का निवारण होता है और घर-परिवार में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

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