नगड़िया, ढ़ोल के थाप पर विंध्य में गाए जाते है फाग गीत, परंपरा और लोकगीतों का है यह उत्सव

होली पर्व। विंध्य की होली यहां की परंपरा को दर्शती है तो फाग गीत में भक्ति और लोकगायन का अद्रभुद स्वर सुनाई देता है। जी है हम बात कर रहे है फाल्गुन मास में मनाए जाने वाले होली महोत्सव को लेकर। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च को मनाया जा रहा है तो फगुआ 14 मार्च को होगा। रंगपंचमी के इस उत्सव की छठा देखते ही बनती है। देशी वाद्य यंत्र नगड़िया, ढ़ोल-मजीरा की थाप पर लोकगायक फाग गीतों को पूरी मस्ती के साथ गाते हुए इस लोकगीत का पूरा आंनद उठाते है। इतना ही नही फाग गीतो को सुनने के लिए लोगो का हुजूम एकत्रित होता है।

5 दिनों तक रह गया उत्सव

विंध्य में फाग गीतों को लेकर लोगो में बढ़ा ही उत्साह रहता है, हांलाकि बदलते परिवेश में अब होली उत्सव एवं फाग महोत्सव के अयोजन महज 5 दिनो तक ही रह गए, जबकि पहले विंध्य में एक माह तक फाग महोत्सव के कार्यक्रम आयोजित होते थें। फाग मंडलिया ढ़ोल मजिरा लेकर घर-घर पहुचती थी और फाग के आयोजन पूरे उत्साह के साथ आयोजित किए जाते थें।

फाग के ऐसे होते है बोल

विंध्य क्षेत्र में गाए जाने वाले फाग गीतों के बोल न सिर्फ भक्ति से ओत-प्रोत होते है बल्कि विंध्य अंचल की संस्कृतिक धरोहरों को भी इसमें शामिल किया जाता है। इतना ही नही कई बार फाग मंडलिया तो यहां के व्यजन, रहन-सहन पर भी फाग गीतों की प्रस्तुती देती है।

फाग मंडलियों का होता है सम्मान

फाग का महत्वं तो इसी से लगाया जा सकता है कि लोगो में इस गायन विधा को लेकर पूरा उत्साह रहता है। फाग मंडलिया जब उनके दरवाजे पर पहुचती है तो उनका पूरा सम्मान होता है तो मंचासीन कार्यक्रम में आयोजक फाग मंडलियों को गुलाल लगाकर सम्मानित करते है। फाग गीतों की प्रस्तुती में प्रतिस्पर्धा भी होती है। जिसमें फाग मंडलिया सबसे आगे निकलने के लिए इस लोकगायन को पूरे जोश और उत्साह के साथ गाते हुए प्रस्तुती देती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *