EPISODE 46: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

babu lal dahiya

पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में आज हम आपके लिए लाए हैं, किसान से इतर कुछ अन्य समुदायों में प्रयुक्त लौह उपकरण। आज हम कुछ ऐसे लौह उपकरणों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं जो सीधे किसानों के कार्यो से इतर अन्य ग्रामीण समुदाय के कार्यों से जुड़े हुए थे।

संसी

यह मुख्यतः लौह शिल्पी के उपयोग के उपकरणों में एक है जिससे गर्म लौह को पकड़ हथौड़े से कूट कर फिर तमाम प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती हैं। संसी लगभग एक हाथ लम्बी से लेकर एक बित्ते तक की कई आकार प्रकार की होती हैं परन्तु काम में लौह शिल्पी के ही आती हैं।

हथौड़ा

यह लौह कर्मी के उपयोग का लगभग चार इंच लम्बा दो इंच मोटा एक लौह पिंड होता है जिससे गर्म लौह को कूट -कूट कर अनेक तरह के औजार बनाए जाते हैं।

सरिया

यह लौह शिल्पी की एक लम्बी छड़ होती है जिसके जरिये वह भट्ठी में डाले हुए लौह को इधर उधर कर के अच्छी तरह से गर्म कर सके।

रेती

यह लौह शिल्पी का लौह से बना एक दांतेदार उपकरण है जिससे घिस कर लौह उपकरणों को चिकना किया जाता है।

निहाई

यह लौह शिल्पी का एक जमीन में गड़ा लौह पिंड जैसा उपकरण है जिसमें रख गर्म लौह को कूट कर औजार बनाए जाते हैं।

रमदा

यह काष्ठ शिल्पी का उपकरण है जिससे काष्ठ वस्तुओं को छोल कर चिकना किया जाता है।

चापा

यह खोबा औटते समय कड़ाह में गर्म दूध को चलाये जाने वाला एक उपकरण है । इससे चलाते रहने से दूध जल कर कड़ाही में नही लगता। जब पककर गाढ़ा हो जाता है तो इसी से पेड़ा बर्फी आदि भी काटकर बनाए जाते हैं।

तख्ररिया

यह ब्यापारियों के उपयोग हेतु लौह शिल्पियों द्वारा बनाया गया एक उपकरण है जिसमें दो पलड़े रहते हैं। और बीच में बैलेंस के लिए एक कांटा लगा रहता है। इसमें ब्यापारी अपना गुड़ नमक अनाज आदि तौल कर ग्राहक के देते हैं। यह कई तरह की बनती थीं पर अब आधुनिक तुला आजाने से चलन से बाहर है। आज इस श्रृंखला में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *