Death Anniversary Of Music Director Jaikishanji:”जिया बेक़रार है छाई बहार है, आजा मोरे बलमा तेरा इंतज़ार है, जिया बेक़रार है……..”
ये वो गीत था जिसने एक दौर को अपनी आगो़श में ले लिया था इसके बोलों ,आवाज़ और धुन पे लाखों दिल मचल जाते थे और आज भी जब कहीं इसकी गूंज सुनाई देती है तो लोग दिल थाम के सुनते हैं ।
इस गाने की कुछ और खासियत भी हम आपको बता देते हैं, पहला तो ये कि इस गीत के साथ ही बतौर संगीतकार शंकर जयकिशन ने जोड़ी बनाई और दूसरा इसी फिल्म यानी “बरसात” से हसरत जयपुरी और शैलेंद्र ने बतौर गीतकार फिल्मी दुनिया में क़दम रखा ,यहीं से ,शंकर जयकिशन S-J बन गए ,जिन्हें राम लक्ष्मण की जोड़ी भी कहा गया।
दो महान कलाकारों का संगीत था ये :-
शंकर और जयकिशन ,आप दोनों ने 1949 से 1971 तक एक साथ काम किया
उनके संगीत की विशेषता पर ग़ौर करें तो ये “राग-आधारित” थी, जिसे आज भी इसी विशेषता के लिए याद किया जाता है। ये वो दौर था जब लोग एक दुसरे की उनकी कला की बहोत क़द्र करते थे और दोस्ती हो जाए तो आखरी सांस तक निभाते थे इसलिए शंकर जी ने जयकिशन जी को अपने साथ संगीत निर्देशन में जोड़ा और उनके इसी जज़्बे की वजह से उनका बेमिसाल संगीत बना।
शंकर रघुवंशी जी ने तबले से की शुरुआत :-
15 अक्टूबर 1922 को हैदराबाद में पैदा हुए शंकर , राम सिंह रघुवंशी जी के बेटे थे ।
शुरू में आप तबला बजाते थे जिसे आपने बाबा नासिर खान साहिब से सीखा था फिर कई सालों तक, मशहूर संगीतकार ख्वाजा खुर्शीद अनवर के शागिर्द रहे और संगीत की बारीकियां सीखते हुए उनके, आर्केस्ट्रा से भी जुड़े।
इसके बाद वे पृथ्वी थिएटर चले गए जहाँ उन्होंने तबला बजाया और नाटकों में कुछ छोटी मोटी भूमिकाएँ भी निभाईं। पृथ्वी थिएटर में ही उन्होंने सितार, अकॉर्डियन और पियानो जैसे कई अन्य वाद्ययंत्र बजाना सीखा और उनमें महारत हासिल की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने हुस्नलाल भगतराम की संगीतकार जोड़ी के, सहायक के रूप में भी काम करना शुरू किया ।
हारमोनियम मास्टर थे जयकिशन जी :-
जयकिशन दयाभाई पंचाल 4 नवंबर 1929 – को दयाभाई पंचाल के घर पैदा हुए । बचपन में वे बांसडा यानी वानसदा में रहते थे, जो वर्तमान गुजरात राज्य का एक शहर है। जयकिशन हारमोनियम बजाने में माहिर थे । इसके बाद, उन्होंने संगीत विशारद वाडीलालजी और प्रेमशंकर नायक से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की । मुंबई जाने के बाद , वे विनायक तांबे के शिष्य बन गए।
कैसे मिल गए शंकर और जयकिशन :-
हुआ यूं कि पृथ्वी थियेटर में काम करने के अलावा शंकर अक्सर गुजराती निर्देशक चंद्रवदन भट्ट के दफ़्तर जाते थे, जिन्होंने शंकर साहब को फ़िल्म निर्माण के दौरान संगीतकार के रूप में मौका देने का वादा किया था। भट्ट के दफ़्तर के बाहर ही शंकर जी ने जयकिशन जी को कई बार देखा था और एक दिन उन्होंने बातचीत शुरू की तब शंकर जी को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम वादक भी हैं और काम की तलाश में उन्हीं निर्माता के पास आते हैं, तो शंकर जी ने पृथ्वीराज कपूर से पूछे बिना , जिन्हें प्यार से ‘पापाजी’ कहा जाता था उनके लिए ,बतौर वादक जयकिशन जी को चुन लिया और उनसे कहा अब आपकी नौकरी पक्की हालांकि पापाजी ने शंकर साहब के चयन का सम्मान किया और पृथ्वी थिएटर में जयकिशन साहब हारमोनियम बजाने लगे जल्द ही दोनों के बीच इतनी गहरी दोस्ती हो गई कि लोग उन्हें ‘राम-लक्ष्मण’ कहके पुकारने लगे। अपने संगीत के शौक को आगे बढ़ाने के अलावा वो कई नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ भी निभाते थे, जिसमें प्रसिद्ध नाटक था “पठान “।
कैसे बनीं संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन :-
शंकर जयकिशन की ,उस वक़्त फिल्म “बरसात” के संगीत निर्देशक रहे राम गांगुली से अच्छी बनती थी इसलिए उनकी कुछ धुनों को संवारने में भी आप दोनों उनका साथ दे रहे थे लेकिन रिकॉर्डिंग के दौरान , राज कपूर का राम गांगुली के साथ कुछ गंभीर मतभेद हो गया और उन्होंने इसका संगीत शंकर साहब को सौंपने का फैसला कर किया, और शंकर जी ने बतौर साथी जयकिशन जी को फिर चुन लिया। इस तरह संगीत निर्देशक की नई जोड़ी “शंकर जयकिशन” बनी जो कुछ वक्त बाद राज कपूर की फिल्मों के संगीत पर अपनी विशिष्ट छाप के लिए मशहूर हो गई।
कैसे बन गई पूरी टीम :-
आप दोनों और मुकेश के गुरु एक ही थे तो राज कपूर ने संगीतकार शंकर और जयकिशन की इस नई टीम को गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी के साथ जोड़ दिया फिर शंकर जी के कहने पर, उन्होंने उभरती हुई गायिका लता मंगेशकर को अपने साथ जोड़ा बस फिर क्या था
‘बरसात” के रूप में हमें इन सब सितारों के संयोग से एक अनमोल कृति मिल गई इसी फिल्म से जहां शीर्षक गीत का चलन शुरू हुआ, गीत ,”बरसात में हमसे मिले तुम सजन …”के ज़रिये तो वहीं कैबरे भी एक नई झंकार लेके हमारे सामने पेश किया गया जी हां गीत के बोल थे – “पतली कमर है”, जिसे शैलेन्द्र ने लिखा था ।
इसके बाद शंकर जयकिशन ने अपनी दिलकश धुनों के लिए बतौर गुलूकार अपनी टीम में शामिल किया
मोहम्मद रफी , और आशा भोसले को ।
एसजे के दो और आजीवन साथी थे उनके सहायक ,दत्ताराम वाडकर और सेबस्टियन डिसूजा फिर इतनी खूबसूरत टीम से मन्ना डे कैसे अछूते रहते तो वो भी इस टीम का हिस्सा बनें और राज कपूर के लिए मुकेश की रेशमी आवाज़ तो मानों उनकी पहचान ही बन गई । आप सब फनकारों के साथ ये बहुत ही दिलनशीं कारवां था जो बेहद दिलकश नग़्मों के साथ हमारे दिलों में उतरता गया ।
ये अपनहियत की इंतहा थी:-
12 सितम्बर 1971 में जयकिशन जी इस दुनिया को छोड़कर चले गए और उनके जाने के बाद भी , शंकर जी अकेले ही संगीत निर्देशन करते रहे पर कभी भी अपना नाम अकेले नहीं लिखा इस एकल करियर के दौरान, भी उनके संगीत को ‘शंकर-जयकिशन’ के नाम से श्रेय दिया गया।
शंकर-जयकिशन ने कई और कलाकारों के साथ मिलकर भी 50,60 और 70 के दशक की शुरुआत में “अनंत” और “अमर धुनों” की रचना की और फिर हमारे दिलों में अपने संगीत की अमिट छाप छोड़कर 26 अप्रैल 1987 को शंकर जी भी इस फानी दुनिया को अलविदा कह कर अपने दोस्त के पास चले गए पर अपनी बेमिसाल धुनों के ज़रिए वो हमेशा हमारे दिलों पे राज करेंगे ।